आलम यह है कि चाहे पांडेयपुर का नाला हो या सिगरा चौराहे से डबल्यूएच स्मिथ होते महमूरगंज जाने वाला नाला या रथयात्रा से महमूरगंज जाने वाला नाला हो या संकटमोचन से सुदरपुर तक जाने वाला नाला, सभी में ऊपर तक सील्ट जमा है। नालों के इर्द-गिर्द झाड़-झंखाड़ हो गए हैं। पॉलीथिन और कचरों ने नालों को जाम कर रखा है। नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सेवानिवृत्त अधिकारी बताते हैं कि नालों की सफाई का काम तो अप्रैल में शुरू हो जाता था। मार्च अंत तक कार्ययोजना तैयार हो जाया करती थी। यह तो 2012 से इसमें गड़बड़ी आनी शुरू हुई और अब तो दिन ब दिन हालत बद से बदतर होती जा रही है। नालों की सफाई ही नहीं होगी तो जलजमाव तो होना ही है। चाहे वह सिगरा, रथयात्रा, गोदौलिया, गिरिजाघर, नई सड़क, रेवड़ी तालाब और इधर पांडेयपुर, तेलियानाला, दारानगर, पीलीकोठी, आदमपुर, जगतगंज, मैदागिन इलाके ऐसे हैं जहां जलजमाव होना तय है।
इसमें नगर निगम कार्यकारिणी का गठन न होना, सदन न चलना भी कम जिम्मेदार नहीं। कार्यकारिणी और सदन की बैठक होने की सूरत में पार्षद इसके लिए दबाव बनाते रहे। लेकिन अब वो भी नहीं हो पा रहा है। 2012 से जो परंपरा शुरू हुई वह अनवरत जारी है। इसका खामियाजा शहर के नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है। पार्षद हैं कि वो सदन चलाने की मांग कर रहे हैं तो मेयर अधिकारियों के कहने पर काम कर रही हैं। हालत यह कि सदन चलाने के लिए मेयर एक स्थान तय करती है और वहां अधिकारी तोड़फोड़ शुरू करा देते हैं जिसकी जानकारी तक मेयर को नहीं देते। एक तरह से नगर निगम पूरी तरह से अफसरों के कब्जे में चला गया है। और अधिकारी हैं कि वो निरंकुश हो गए हैं।
नालों के आंकड़े
छोटे-बड़े कुल 70 नाले
लंबाई-42 हजार 132 मीटर
70 में से 35 का टेंडर नहीं हो पाया है
35 के लिए ही आईं निविदाएं