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बनारसी इस खबर से बेखबर, लगातार तीसरे साल गंभीर संकट से गुजर रहा है शहर

locationवाराणसीPublished: Jun 07, 2019 12:33:46 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

पिछले सालों में भी रही यही स्थितिफिर भी न चेत रहा शासन न प्रशासन
 

बनारस के भदैनी स्थित रॉ वाटर पंपिग स्टेशन की पाइप और गंगा

बनारस के भदैनी स्थित रॉ वाटर पंपिग स्टेशन की पाइप और गंगा

वाराणसी. कुछ ही दिन पहले की बात है जब मां गंगा को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जा रही थीं। दरअसल, तब दुनिया भर के लोग, आस्थावानो का जमावड़ा लगा था प्रयागराज में। मौका था अर्द्ध कुंभ का जिसे महाकुंभ मेला नाम दिया गया था। कहा गया था कि ऐसा निर्मल जल तो हाल के वर्षो में दिखा ही नहीं। इतना ही नहीं प्रयागराज से काशी तक गंगा में कई क्यूसेक पानी भी छोड़ा गया था। लेकिन दिन बीते, पारा चढ़ा और हालात जस के तस। लेकिन अब भी कम से कम बनारसी इस खबर से बेखबर हैं कि आने वाला समय बेहद संकटपूर्ण है। अगर समय से मानसून सक्रिय नहीं हुआ तो पीने के पानी के लाले पड़ जाएं तो अतिशयोक्ति नहीं।
वाराणसी में उत्तर वाहिनी गंगा घाटों को तो पहले ही छोड़ चुकी थीं। अब जलस्तर घटने से पेयजल का संकट का खतरा आसन्न है। जलस्तर घटने से पेयजल की पाइप का गंगा से नाता टूटता दिख रहा है। फिलहाल तकनीक के सहारे गंगा का पानी पाइप तक पहुंच तो रहा पर यह आसन्न बड़े संकट का साफ संकेत है।
यह पहली बार नहीं हुआ है। पिछले साल भी अप्रैल मई में तत्कालीन डीएम योगेश्वर राम मिश्र ने सिंचाई विभाग को पत्र लिख कर गंगा में पानी छोड़ने का अनुरोध किया था। उससे पहले यानी 2017 में भी यही स्थिति रही। 2017 में तो सिंचाई विभाग ने गंगा में पानी छोड़ा भी था लेकिन 2018 में ऐसा नहीं हुआ था। यह गनीमत रही कि मानसून जल्द आ गया जिससे पेयजल का संकट पैदा नहीं हो सका। लेकिन इस बार जैसा मौसम विज्ञानी बता रहे हैं उसके अनुसार बनारस में मानसून लेट है। ऐसे में शहर गंभीर संकट की ओर बढ़ रहा है।
घाटों की पट्टी में सिल्‍ट और रेत के टीले उभरे दिखाई पड़ रहे हैं। गंगा में रेत का दायरा बढ़ने से न सिर्फ लोगों की आस्था बल्कि जनजीवन पर भी संकट के बादल घिरते नजर आने लगे हैं। लगातार घटते जलस्तर को देखते हुए जलकल विभाग ने पेयजल के संकट से निपटने की जरूरी तैयारियों को लेकर अलर्ट जारी किया है। इसके अलावा बांध और बैराज से गंगा का पानी छोड़ने के लिए चीफ इंजिनियर को पत्र भेजा गया है।
गंगा की निर्मलता और अविरलता को लेकर सरकारी दावों और आंकड़ों के ठीक उलट स्थिति काशी में दिखाई दे रही है। सिकुड़ती गंगा में जलस्‍तर लगातार गिरने से शहरी इलाके में सामने घाट से लेकर राजघाट तक रेत का मैदान बढ़ता जा रहा है। आलम यह है कि जिस अस्‍सी घाट पर सुबह-ए-बनारस और शाम को गंगा आरती देखने के लिए बड़ी संख्‍या में पर्यटक जुटते हैं वहां गंगा का प्रवाह घाट से 15 मीटर से ज्‍यादा दूर हो चुका है। प्रमुख दशाश्‍वमेध और राजेंद्र प्रसाद घाट पर भी गंगा किनारा छोड़ काफी आगे बह रही हैं।
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गंगा पार भी रेत के फैलाव से खतरे की घंटी बज चुकी है। लंबे समय से अविरल और निर्मल गंगा के लिए काम कर रहे संकटमोचन फाउंडेशन के चेयरपर्सन प्रो. विश्‍वंभर नाथ मिश्र का कहना है कि वर्तमान स्थिति चिंताजनक है और तत्‍काल कदम नहीं उठाए गए तो आगे और भयावह तस्‍वीर सामने आ सकती है।
गंगा में रेता
बनारस शहर के अधिकांश इलाके में प्रतिदिन 276 एमएलडी पेयजल आ‍पूर्ति का मुख्‍य स्‍त्रोत गंगा ही हैं। भदैनी स्थित रॉ-वॉटर पंपिंग स्‍टेशन से जलकल के भेलूपुर परिसर में बने भूमिगत जलाशय में आपूर्ति की जाती है। पंपिंग स्‍टेशन पर गंगा का वर्तमान जलस्‍तर 192 फुट है जो न्‍यूनतम चेतावनी बिंदु से बस तीन फुट ही ज्‍यादा है। ऐसे में शहर की जलापूर्ति पर असर पड़ने को देखते हुए वैकल्पिक तैयारियों पर विचार शुरू हो गया है।
लगातार घटते जलस्‍तर की वजह से भदैनी में लगे दो में से एक पंप को बंद कर दिया जाएगा। जलकल के महाप्रबंधक नीरज गौड़ का कहना है कि गंगा के जलस्‍तर में तेज गिरावट को देखते हुए संबंधित अधिकारियों को पत्र लिखा गया है।
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प्रवाह कम होने के साथ ही शहर का सीवेज नालों के जरिए सीधे नदी में जाने से गंगा का प्रदूषण खतरनाक स्‍तर तक पहुंच गया है। घाट किनारे फीकल कोलिफॉर्म और बायलॉजिकल ऑक्‍सिजन डिमांड (बीओडी) तेजी से बढ़ने से जल से होने वाली बीमारियों के फैलने के साथ जीवों के जीवन पर संकट खड़ा हो गया है। फीकल कोलिफॉर्म 500 प्रति 100 मिली लीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए जबकि संकटमोचन फाउंडेशन द्वारा संचालित स्‍वच्‍छ गंगा रिसर्च लेबोरेट्री के आंकड़ों के मुताबिक कई घाटों पर यह लाख से भी ज्‍यादा है।
जल वैज्ञानिकों की बात तो दूर अब तो आम आदमी भी चिंतित है। वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी एके लारी सोशल साइट पर गंगा की भयावह तस्वीरों को शेयरर कर आसन्न खतरे की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ठ कराने में जुटे है। शायद शासन प्रशासन की तंद्रा टूटे।
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