फ़िल्मी है इस अपराधी की कहानी
बीते 26 जून की सुबह अरुण वाराणसी एसटीएफ के हत्थे कानपुर से चुराई हुई संग चढ़ गया। डब्बू के खिलाफ मध्य प्रदेश पुलिस ने 25 हजार रुपये का इनाम घोषित किया था। उसके खिलाफ, महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार समेत उत्तर प्रदेश के कई जिलों में मुकदमे दर्ज हैं। वर्ष-2013 में सुधीर भदौरिया गैंग द्वारा खंडवा के व्यवसायी राजेश जैन के अपहरण के मुख्य आरोपित अरुण की कहानी भी अन्य हार्डकोर अपराधियों की तरह फ़िल्मी है। कई राज्यों की पुलिस से बचने के लिए अरुण वाराणसी के फूलपुर स्थित नकटी भवानी में अपने पुश्तैनी गांव में छिपा था। यहां से वह कई प्रदेशों में वाहन चोरी का रैकेट चला रहा था। पूछताछ में अरुण ने ऐसी जानकारियां दीं कि एसटीएफ के अफसरों ने भी दांतों तले उंगली दबा ली।
बीते 26 जून की सुबह अरुण वाराणसी एसटीएफ के हत्थे कानपुर से चुराई हुई संग चढ़ गया। डब्बू के खिलाफ मध्य प्रदेश पुलिस ने 25 हजार रुपये का इनाम घोषित किया था। उसके खिलाफ, महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार समेत उत्तर प्रदेश के कई जिलों में मुकदमे दर्ज हैं। वर्ष-2013 में सुधीर भदौरिया गैंग द्वारा खंडवा के व्यवसायी राजेश जैन के अपहरण के मुख्य आरोपित अरुण की कहानी भी अन्य हार्डकोर अपराधियों की तरह फ़िल्मी है। कई राज्यों की पुलिस से बचने के लिए अरुण वाराणसी के फूलपुर स्थित नकटी भवानी में अपने पुश्तैनी गांव में छिपा था। यहां से वह कई प्रदेशों में वाहन चोरी का रैकेट चला रहा था। पूछताछ में अरुण ने ऐसी जानकारियां दीं कि एसटीएफ के अफसरों ने भी दांतों तले उंगली दबा ली।
प्रापर्टी डीलर बनकर किया था अपहरण अरुण ने भदौरिया गैंग के लिए प्रापर्टी डीलर बनकर राजेश जैन को मिलने बुलाया था। खंडवा से राजेश का अपहरण कर वह इंदौर ले गया और उसे सुधीर भदौरिया के सुपुर्द कर दिया। मामले में मध्य प्रदेश पुलिस ने फरीदाबाद में आपरेशन चलाकर सुधीर भदौरिया के पूरे गिरोह को गिरफ्तार कर लिया। गिरोह के पास एके-47 समेत कई असलहे और दस हैंड ग्रेनेड भी मिले थे।
छह भाषाएं, छह नाम
महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान से लेकर आसाम और नागालैंड तक गिरोह फैलाने वाला अरुण छह से ज्यादा भाषाओं का जानकार है। पुलिस से बचने के लिए उसने अलग-अलग राज्यों में अपने अलग-अलग नाम भी रख लिए थे। जांचकर्ता सन्न रह गए जब उसने अपने छह नाम बताए। यह नाम हैं, अरुण कुमार तिवारी उर्फ डब्बू तिवारी उर्फ धनन्जय उर्फ आदित्य तिवारी उर्फ दिनेश सिंह उर्फ नरेन्द्र महेश्वरी।
महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान से लेकर आसाम और नागालैंड तक गिरोह फैलाने वाला अरुण छह से ज्यादा भाषाओं का जानकार है। पुलिस से बचने के लिए उसने अलग-अलग राज्यों में अपने अलग-अलग नाम भी रख लिए थे। जांचकर्ता सन्न रह गए जब उसने अपने छह नाम बताए। यह नाम हैं, अरुण कुमार तिवारी उर्फ डब्बू तिवारी उर्फ धनन्जय उर्फ आदित्य तिवारी उर्फ दिनेश सिंह उर्फ नरेन्द्र महेश्वरी।
बचता रहा अरुण सुधीर भदौरिया गैंग के संपर्क में आने से पहले अरुण मुंबई में छोटा राजन और गुरु साटम गैंग का करीबी रहा था। उसने बताया कि 1995 में फूलपुर में ही पड़ोसी गांव में एक क्रिकेट मैच के दौरान वह उदयभान सिंह के संपर्क में आया। तब उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उदयभान उसे अपने साथ मुंबई ले गया और राजन गिरोह से जोड़ा। शुरुआत में इन गिरोहों को असलहे सप्लाई करने के बाद अरुण गुरु साटम गैंग के राजू सोनी से जुड़ गया और कुछ ही दिनों में गिरोह का कर्ताधर्ता बन बैठा। गिरोह में उसे ‘गुरू’ नाम से जाना जाता था। इन गिरोहों के कमजोर होने के बाद उसने महाराष्ट्र छोड़ा और सुधीर गिरोह से जा मिला। उदयभान को जनवरी-2016 में वाराणसी एसटीएफ ने गिरफ्तार किया था।
दाऊद का पता लगाने गया था पाकिस्तान 1995 से लगभग पांच साल तक छोटा राजन गिरोह के साथ काम करने वाला अरुण सरगना का बेहद करीबी हो चुका था। वह छह से ज्यादा भाषाओं का जानकार था और अंग्रेजी पर भी अच्छी पकड़ रखता था। बेहद शातिर अरुण उर्फ डब्बू को राजन ने वर्ष-2000 में फर्जी पासपोर्ट और वीजा पर पाकिस्तान भेजा था। यहां उसे दाऊद के बारे में पता लगाना था। मुंबई में गिरोहों के साथ काम के दौरान उसने महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, नागालैण्ड आदि प्रदेशों में नेटवर्क खड़ा कर लिया।
दिल्ली से चोरी, नागालैंड में रजिस्ट्रेशन राजेश जैन अपहरण कांड के बाद दबाव बढ़ा तो अरुण फूलपुर में अपने गांव भाग आया। कुछ समय बाद उसने वाहन चोरी का धंधा शुरू किया। बरेली के गुड्डू, सरताज(मूल निवासी हल्द्ववानी उत्तराखण्ड) एवं बिहार के मुकेश एवं मिथिलेश उसके पुराने गुर्गे हैं। गुड्डू, सरताज, मुकेश व मिथिलेश का गैंग दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ आदि क्षेत्रों से वाहन चुराते थे। गिरोह वाहन चुराकर निश्चित स्थान पर छोड़ देता था। यहां से अरुण या इसके लोग वाहन उठा लिया करते थे। नागालैंड में अजय और अमांग के माध्यम से वाहनों का नया रजिस्ट्रेशन कराकर इन्हें बेच दिया जाता था। नागालैंड के अवैध असलहा एवं गांजा तस्करों से मिलकर गिरोह तस्करी भी करने लगा था। पहली बार यह वर्ष 2009 में वाहन चोरी के प्रकरण में थाना फूलपुर, वाराणसी से जेल गया था। वाहन कानपुर, आगरा एवं पानीपत से चुराये गये थे, उसे कानपुर जेल में भी रहना पड़ा था। कुछ दिनों में उसके द्वारा कोलकाता के ‘माई-नूडल्स’ के प्रदेश स्तर की डिस्ट्रीब्यूटरशिप की लॉचिंग की जाने वाली थी। आरोपित के खिलाफ मध्य प्रदेश के भिंड, जबलपुर, दमोह, कटनी तथा झारखण्ड एवं बिहार में मुकदमों की जानकारी मिली है।