इस शुभ मुहूर्त में करें चंद्रमा का दर्शन, खोले व्रत
संकष्टी चतुर्थी व्रत शाम को चंद्रमा के दर्शन के बाद ही खोला जाता है। इस बार का रात 09:20AM पर चांद का दर्शन कर व्रत को खोलें। इस शुभ मुहूर्त में व्रत खोलने से पति की आयु लम्बी होती है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत शाम को चंद्रमा के दर्शन के बाद ही खोला जाता है। इस बार का रात 09:20AM पर चांद का दर्शन कर व्रत को खोलें। इस शुभ मुहूर्त में व्रत खोलने से पति की आयु लम्बी होती है।
पूजन विधि
सबसे पहले सुबह स्नान कर साफ और धुले हुए कपड़े पहनें. पूजा के लिए भगवान गणेश की प्रतिमा को ईशानकोण में चौकी पर स्थापित करें. चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा पहले बिछा लें। भगवान के सामने हाथ जोड़कर पूजा और व्रत का संकल्प लें और फिर उन्हें जल, अक्षत, दूर्वा घास, लड्डू, पान, धूप आदि अर्पित करें. अक्षत और फूल लेकर गणपति से अपनी मनोकामना कहें, उसके बाद ओम ‘गं गणपतये नम:’ मंत्र बोलते हुए गणेश जी को प्रणाम करें। इसके बाद एक थाली या केले का पत्ता लें, इस पर आपको एक रोली से त्रिकोण बनाना है। त्रिकोण के अग्र भाग पर एक घी का दीपक रखें. इसी के साथ बीच में मसूर की दाल व सात लाल साबुत मिर्च को रखें। पूजन उपरांत चंद्रमा को शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें. पूजन के बाद लड्डू प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें।
संकष्टी व्रत कथा
सतयुग में एक धर्मात्मा युवनाश्व राजा था। उसके राज्य में वेदपाठी धर्मात्माविष्णु शर्मा ब्राह्मण रहता था। उसके सात पुत्र थे और सभी अलग अलग रहने लगे। विष्णु शर्मा क्रम से सातों के यहाँ भोजन करता हुआ वृद्धावस्था को प्राप्त हुआ। बहुएं अपने ससुर का अपमान करने लगी। एक दिन गणेश चौथ का व्रत करके अपनी बड़ी बहू के पास घर गया और बोला बहू आज गणेश चौथ हैं, पूजन की सामग्री इकठ्ठी कर दो। बहू बोली घर के काम से छुट्टी नही हैं। तुम हमेशा कुछ न कुछ लगाये रह्ते हो अभी नही कर सकते ऐसे अपमान सहते हुए अंत में सबसे छोटी बहू के घर गया और पूजन की सामग्री की बात कही तो उसने कहा आप दु:खी न हो मैं अभी पूजन सामाग्री लाती हूं।
सतयुग में एक धर्मात्मा युवनाश्व राजा था। उसके राज्य में वेदपाठी धर्मात्माविष्णु शर्मा ब्राह्मण रहता था। उसके सात पुत्र थे और सभी अलग अलग रहने लगे। विष्णु शर्मा क्रम से सातों के यहाँ भोजन करता हुआ वृद्धावस्था को प्राप्त हुआ। बहुएं अपने ससुर का अपमान करने लगी। एक दिन गणेश चौथ का व्रत करके अपनी बड़ी बहू के पास घर गया और बोला बहू आज गणेश चौथ हैं, पूजन की सामग्री इकठ्ठी कर दो। बहू बोली घर के काम से छुट्टी नही हैं। तुम हमेशा कुछ न कुछ लगाये रह्ते हो अभी नही कर सकते ऐसे अपमान सहते हुए अंत में सबसे छोटी बहू के घर गया और पूजन की सामग्री की बात कही तो उसने कहा आप दु:खी न हो मैं अभी पूजन सामाग्री लाती हूं।
वह भिक्षा मांग कर सामान लाई, स्वयं व अपने ससुर के लिए सामग्री इकठ्ठा कर दोनों ने भक्ति-पूर्वक विघ्ननाशक की पूजा की। छोटी बहू ने ससुर को भोजन कराया और स्वयं भूखी रह गई। आधी रात को विष्णु शर्मा को उल्टी होने लगी, दस्त होने लगे। उसने अपने ससुर के हाथ पांव धोये। साड़ी रात दु:खी रही और जागरण करती रही। प्रात:काल हो गया श्री गणेश की कृपा से ससुर की तबियत ठीक हो गई और घर में चारो ओर धन ही धन दिखाई देने लगा जब और बहुओं ने छोटी बहू का धन देखा तो उन्हें बड़ा दु:ख हुआ उन्हें अपनी गलती का भान हुआ वे भी क्षमा मागते हुए गणेश व्रत की और वे भी सपन्न हो गई।