न जाने कब देखूंगा घाट की सुबह पत्रिका से बातचीत में राम नारायण त्रिपाठी कहते हैं की इतने ही दिनों में लगने लगा है जैसे बनारस की सुबह देखे सालों बीत गए हैं। वो घाट की सीढ़ियों पर सुबह का टहलना। साथियों के बीच ठिठोली, मन को पुलकित कर देने वाली सूर्य की लालिमा, सुबह के हवाओ की ताजगी, जैसे सब कुछ कोई छीन ले गया हो। त्रिपाठी कहते है की बनारस जैसी सुबह कहीं और नही हो सकती। काशी की दिव्यता अद्भुत है हमें इंतज़ार है जल्द कोरोना के संकट से प्रभू बाहर निकालें।
जैसे बुला रहा है कचौड़ी जलेबी की स्वाद महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के रिसर्च स्कॉलर डॉ. जावेद अहमद कहते हैं की बनारस की कचौड़ी -सब्जी और जलेबी का स्वाद लाजवाब होता है। जावेद कहते हैं हमारी तो बचपन से आदत है, दिन में एक बार खा न लें तो जैसे मिजाज ही नहीं बनता। पर अब कई दिन हो गए हैं बस ऐसा लग रहा जैसे शंम्भू और श्रीराम की दुकान बुला रही है।
चाय नहीं जैसे सालों का इश्क छूट गया हो जीवन के सात दशक पार कर चुके राम नवल पांडेय कहते है की बनारस में एक कहावत है, ‘मैं तुम्हें कुल्हड़ वाली चाय पिला सकता हूं, जुगनू, चांद, सितारे ये सब झूठी बातें हैं। राम नवल बताते हैं कि बनारस की कुल्हड़ वाली चाय औऱ कुल्हड़ वाली चाट दोनों का कोई मुकाबला नहीं है। दीना चाट, काशी चाट, पप्पू की अड़ी ये सब लॉकडाउन मे छूटा है लग रहा जैसे सालों का इश्क छूट गया हो।
करोड़ों में कारोबार प्रभावित व्यापार मंडल वाराणसी के नेता अखिलेश सिंह कहते हैं बनारस पूरे पूर्वांचल का हृदय है। यहां से ही सभी जिलों का कारोबार है। सब्जी, लोहा, मेवा, मसाला, कपड़ा, धागा, खाद्य सामग्री, फलों की मंडियां हैं। इस लॉकडाउन ने बाजार को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया है। हर रोज करोड़ों का कारोबार जा रहा है। पर्यटक आने वाले दिनों में भी दूर रहेगा जो बनारस के लिए प्रमुख है। ऐसे में अभी लंबे समय तक हमें इंतज़ार करना होगा।