बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सरसुंदर लाल चिकिस्ताल के गैस्ट्रोलॉजी विभाग के चिकितस्कों का कहना है कि इस वक्त फैटी लीवर गंभीर समस्या को दावत दे रहा है। वो कहते हैं कि इसकी कारगर दवा न होने से बचाव ही एक मात्र उपाय है। गैस्ट्रोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रो सुनित शुक्ला, सीनियर प्रो वीके दीक्षित और डॉ. देवेश यादव का कहना है कि यहां गैस्ट्रो की ओपीडी में आने वाले 20 फीसदी मरीज फैटी लीवर की समस्या से ग्रसित हैं। इसमें भी 30 से 40 वर्ष तक के मरीजों की तादाद ज्यादा है।
चिकित्सकों का कहना है कि गलत खान-पान और कार्यशैली फैटी लीवर के लिए जिम्मेदार हैं। मोटापा और पेट निकलने के साथ शुरू होने वाली इस समस्या से लीवर सिरोसिस व कैंसर की आशंका बढ़ जाती है। कहा कि सिरोसिस का पता चलने तक लीवर का 90 फीसदी भाग क्षतिग्रस्त हो गया होता है। इसका इलाज लीवर ट्रांसप्लांट से किया जाता है। जो महंगा व जटिल है। उन्होंने बताया कि हाल के दिनों में पाया गया है कि इस समस्या से ऐसे लोग भी ग्रसित हो रहे है जो शराब का सेवन नहीं करते। उनकी जीवन शैली व खान-पान की विसगतियां इसके लिए जिम्मेदार है।
उन्होंने बताया कि खान-पान में फल, सब्जी तथा अंकुरित अनाज का सेवन कर इस समस्या से बचा जा सकता है। मधुमेह के रोगियों को भी फैटी लीवर की समस्या होती है। उन्होंने कोल्ड ड्रिंक्स व तला भुना खाने से परहेज करने की सलाह दी। बताया कि इसमें वसा की मात्रा ज्यादा होती है। सलाह दी कि प्रतिदिन 50 मिनट व्यायाम कर पसीना बहा कर भी इस बीमारी से बचा जा सकता है।