ये और कोई नहीं बल्कि पद्मश्री अवार्ड से सम्मानीत तीन बार की एवरेस्ट विजेता आईटीबीपी की पूर्व लेफ्टिनेंट कमांडेंट संतोष यादव हैं। नामांकन दाखिले के अंतिम दिन वह कलेक्ट्रेट पहुंची। यह दीगर है कि ज्यादातर लोगों ने उन्हें खास तवज्जो नहीं दी। एक किनारे जमीन पर बैठ कर उन्होंने नामांकन संबंधी कागजात तैयार किए। उनके साथ बहुत बड़ा अमला फैला भी नहीं था। उन्हें जमीन पर बैठा देख एक सज्जन ने वहां मौजूद प्रशासनिक अधिकारियों का ध्यान आकृष्ठ कराया लेकिन प्रशासनिक अफसरों ने भी कोई तवज्जो नहीं दी। हालांकि संतोष यादव को इससे कोई शिकायत नहीं। उल्टे वह तो उनके प्रति सहानुभूति दिखाने वालों को ही समझाने लगीं।
उनका कहना था कि वह किसी की मुखालफत करने में विश्वास नहीं रखती। यहां चुनाव लड़ने आई हूं तो इसका यह मतलब नहीं कि मै, नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने आई हूं। मैं लोगों को जागरूक करने निकली हूं। पैसे की बर्बादी को रोकने के लिए। सदाचार के लिए।वैमनष्यता फैलाना गलत है। अगर हम किसी को चंदा देते हैं तो यह देखें कि किसे चंदा दे रहे हैं। क्यों दे रहे हैं। इसका उपयोग क्या होगा।
पद्मश्री संतोष ने अपने कागाजात जमीन पर बैठ कर भरे। जमीन पर ही बैठी रहीं। लेकिन इससे उन्हें गुरेज नहीं। यह मसला उठा तो उन्होंने कहा कि शासन-प्रशासन किसी को कुर्सी देता है दे, मैं तो जमीन से जुड़ी हूं। देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर मुस्तैदी से ड्यूटी दी है। मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता कि मुझे कुर्सी मिली या नहीं।
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