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भाजपा से पुरानी दोस्ती के कारण इस दिग्गज नेता ने अपनी कुर्सी का दिया था बलिदान, इनकी उपेक्षा बीजेपी को पड़ेगी भारी

locationवाराणसीPublished: Mar 13, 2018 12:03:40 pm

यही होती है राजनीति, यहां ना कोई सगा होत हैना कोई पराया…

वाराणसी. यही होती है राजनीति, यहां ना कोई सगा होत हैना कोई पराया। हम बात कर रहें हैं पूर्व मंत्री यशवंत सिंह की, जिन्होंने अभी कुछ महीने पहले सीएम योगी को विधान परिषद भेजने के लिए अपनी कुर्सी का बलिदान दे दिया था। जबकि अगर वे चाहते तो अगले पांच साल तक विधान परिषद में बने रह सकते थे, लेकिन उन्होंने बीजेपी के साथ अपनी पुरानी दोस्ती निभाई। इसके बाद से माना जा रहा था कि, यूपी की सत्ता में प्रचंड बहुमत से आयी बीजेपी यशवंत को ईनाम के रूप में राज्यसभा भेजेगी। राज्यसभा के लिए प्रत्याशियों की घोषणा से पहले ही यशवंत समर्थक जश्न की तैयारी में थे। खुद यशवंत भी लखनऊ में जमें हुए थे, लेकिन प्रत्याशियों की सूची से यशवंत का नाम गायब देख समर्थक हैरान है। वे इसे बीजेपी का विश्वासघात मान रहे हैं और इसके लिए डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा को जिम्मेदार मान रहे हैं। यशवंत की यह उपेक्षा आने वाले चुनाव में बीजेपी पर भारी भी पड़ सकती है।

बता दें कि यशवंत सिंह की गिनती जिले के कद्दावर नेताओं में होती है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह के करीब यशवंत सिंह की राजनीति में गहरी पैठ है। यशवंत वर्ष 1989 में जनता दल के टिकट पर पहली बार मुबारकपुर से विधानसभा से विधायक चुने गए थे। वर्ष 1996 में यशवंत ने बसपा का दामन थाम लिया था। प्रदेश में बसपा और भाजपा की गठबंधन सरकार बनी तो इन्हें मंत्री बनाया गया। समझौते के अनुसार छह माह बाद बीजेपी का सीएम होना था लेकिन मायवती नहीं मानी और गठबंधन टूट गया। उस समय यशवंत सिंह ने बसपा के तीन दर्जन से अधिक विधायकों को तोड़कर जनतांत्रिक बसपा का गठन किया और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। भाजपा सरकार में भी वे आबकारी मंत्री रहे। इसी बीच वर्ष 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के सिंबल पर यशंवत सिंह आजमगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद फिर उन्हेंने सपा का दामन थाम लिया।
यशवंत सिंह को मुलायम सिंह का काफी करीबी माना जाता है। इसकी बानगी भी देखने को मिली थी। वर्ष 2004 में मुलायम सिंह यादव ने पहली बार यशवंत सिंह को एमएलसी बनाया था। इसके बाद उन्हें फिर 2010 और 2016 में एमएलसी बनाया गया। अभी यशवंत सिंह का कार्यकाल 2022 तक था। यशवंत सिंह पिछले कुछ वर्षो से सपा के अलग थलग पड़ गये थे। मुलायम सिंह से उनके संबंध काफी अच्छे थे लेकिन जिले के कद्दावर मंत्री बलराम यादव और कुछ अन्य यादव नेताओं से उनका छत्तीस का आंकड़ा था। मुलायम सिंह को अध्यक्ष पद से हटाये जाने के बाद यशवंत सिंह और भी अलग थलग पड़ गये थे। ठाकुर लाबी में उनकी स्थित काफी मजबूत थी लेकिन यादव लाबी उन्हें पसंद नहीं करती थी। यही वजह थी कि जब यूपी में प्रचंड बहुमत से बीजेपी की सरकार बनी तो उन्होंने फिर बीजेपी की तरफ रूख किया और सीएम योगी आदित्यनाथ को विधान परिषद भेजने के लिए खुद एमएलसी पद से त्यागपत्र दे दिया। जबकि उनका कार्यकाल करीब पांच साल बाकी है। उनके इस त्याग की काफी चर्चा रही।

यशवंत के समर्थक यह मान कर चल रहे थे कि प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई बीजेपी इस त्याग का ईनाम यशवंत को राज्यसभा में भेजकर देगी। यही वजह थी कि राज्यसभा चुनाव की घोषणा के बाद से ही उनके समर्थक काफी उत्साहित थे। सभी को उम्मीद थी कि पार्टी उनके नाम की घोषणा करेगी लेकिन जब प्रत्याशियों की सूची आयी तो उनका नाम गायब था। समर्थक इसे पचा नहीं पा रहे है और सोशल मीडिया पर भाजपा और उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। समर्थकों का आरोप है कि दिनेश शर्मा के चहेते को राज्यसभा में भेजने के लिए यशवंत के साथ विश्वासघात किया गया है, जिसका खामियाजा पार्टी को आने वाले चुनाव में भुगतना पड़ेगा।
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