शास्त्री ने कहा कि जीवन में ज्ञान और शक्ति दोनों की आवश्यकता होती है। भगवान शिव के धाम में विशेष बाल क्रीड़ा दोनों बालकों ने की है। इन बाल क्रीड़ाओं के माध्यम से जगद के माता पिता भवानी शंकर यह संदेश देना चाहते हैं कि जिस प्रकार बालक निर्विकार मान-अपमान से परे हो कर अपने निज आनंद में मस्त रहता है उसी तरह सभी संसार के मनुष्य़ प्राणियों को अपने कर्म में स्थिर रह कर निर्विकार एवं सम भाव में बने रहना चाहिए। ऐसा होने पर ही परिवार, समाज व देश का भला होता है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान कलिकाल में भगवान गजानन सभी के लिए भक्ति सुलभ हैं। वैसे कहा जाता है कि भगवती लक्ष्मी अति चंचल हैं और हर मनुष्य की अभिलाषा रहती है कि लक्ष्मी हमारे घर स्थिर भाव से रहें। यही कारण है कि चंचलता की स्थिरता गणेश पूजन के साथ ही आती है। विशेषकर भगवान गणेश दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी जी के साथ प्रतिष्ठित होते हैं। श्री का मतलब शोभा, सौंदर्य व कांति से है, हमारे घर की भी शोभा लक्ष्मी से बढती है।
कथा श्रवण में श्री चिंतामणि गणेश मंदिर के महंत चल्ला सुब्बा राव, चल्ला गणेश, चल्ला अन्मपूर्णा, राज, नरेंद्र ओझा आदि मौजूद रहे।