इंदिरा गांधी की सोच को परवान चढाया राजीव गांधी ने बता दें कि सर्वप्रथम 1979-80 तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मन में गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का विचार आया था। इसके लिए उन्होंने विस्तृत सर्वेक्षण योजना बनवाई। उस सर्वेक्षण के बाद केंद्रीय प्रदूषण-नियंत्रण बोर्ड द्वारा दो विस्तृत प्रतिवेदन तैयार किए गए। ये ही दो प्रतिवेदन गंगा के प्रदूषण-नियंत्रण के लिए गंगा कार्य योजना के आधार बने। जिसकी आधारशिला भारत रत्न स्व राजीव गांधी ने रखी। इसके लिए शुरूआत में 293 करोड़ रुपये का इंतजाम किया गया। लेकिन मार्च 1994 के अंत तक इस परियोजना पर 450 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके थे। गंगा सफाई अभियान के प्रथम चरण का सारा खर्च केंद्र सरकार ने ही वहन किया। गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण की शुरुआत 14 जनवरी, 1986 को हुई और 31 मार्च, 2000 को इसे समाप्त घोषित किया गया। इस दौरान इस योजना पर 901.71 करोड़ रुपये खर्च हो गए। राजीव गांधी द्वारा शुरू गंगा कार्य योजना के कार्य को कालांतर में अन्य प्रधानमंत्रियों ने भी जारी रखा। दूसरे चरण की स्वीकृति कई चरणों में दी गई जिसकी शुरुआत सन 1993 में ही हो गई थी। इस परियोजना पर कुल 496.90 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया गया। इस खर्च का 85 प्रतिशत भाग (लगभग 427.73 करोड़ रुपए) केंद्र सरकार द्वारा वहन किया गया जबकि शेष 15 प्रतिशत भाग (अर्थात 69.17 करोड़ रुपए) राज्य सरकार द्वारा। इस परियोजना में प्रदूषण-नियंत्रण के साथ-साथ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाले गंदे जल का उपयोग सिंचाई के लिए करने का लक्ष्य रखा गया। इसी के तहत सबसे पहले काशी के दीनापुर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण हुआ। शोधित जल आस-पास के गांवों में जाने लगा खेती के लिए। हालांकि उसका विरोध भी बहुत हुआ। यहां तक कहा गया कि यह शोधित जल नहीं, इससे होने वाली पैदावार इंसानों के लिए घातक है। लेकिन ऐसा प्रमाणित नही हो सका। इसी योजना के तहत खिड़किया घाट पर पंपिंग स्टेशन बना, राजेंद्र प्रसाद घाट पर भी पंपिंग स्टेशन का निर्माण हुआ। लेकिन ढाल की जानकारी न होने के चलते योजना का उस स्तर पर लाभ नहीं मिल सका जितनी उम्मीद की गई थी। खिड़किया घाट के पंपिंग स्टेशन पर बिजल न रहने की सूरत में वह काम करना बंद कर देता था। ऐसे में गंदा पानी सीधे गंगा में ही गिरता रहता था। इसका भी बीजेपी के लोगों ने जम कर विरोध किया।
ये भी पढ़ें- काश कि गंगा प्रेमी की अंतिम इच्छा पूरी हो जाती डॉ मनमोहन सिंह ने घोषित किया राष्ट्रीय नदी इस कड़ी में 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया। बावजूद इसके गंगा का प्रदूषण घटने की बजाए लगातार बढ़ता ही गया। हाल यह कि 2000 से 2010 के बीच 2800 करोड़ रुपए की गंगा सफाई परियोजना के पूरा हो जाने के बाद भी गंगा के प्रदूषण के स्तर में कोई फर्क नहीं आया। वर्ष 2011 में राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण के निर्देशन में विश्व बैंक की सहायता से गंगा के प्रदूषण नियंत्रण के लिए चलने वाली परियोजना की स्वीकृति दी गई। इस पर लगभग 70 अरब रुपए खर्च आने का अनुमान लगाया गया था। इसमें विश्व बैंक द्वारा एक अरब अमरीकी डॉलर की सहायता प्रदान करने का प्रावधान था। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य है प्रदूषण नियंत्रण के लिए बुनियादी ढांचा (इंफ्रास्ट्रक्चर) तैयार करना था। विश्व बैंक द्वारा स्वीकृत इस ऱाशि में से 80.1 करोड़ डलर इंटरनेशनल बैंक फॉर रीकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट द्वारा कर्ज के रूप में उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई थी। शेष 19.9 करोड़ अमरीकी डॉलर इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन द्वारा प्रदान किया जाना था।
नरेंद्र मोदी ने दी नमामि गंगे योजना इस बीच 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जब नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पद सम्भाला तो उन्होंने गंगा की सफाई तथा उसके बढ़ते प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण के लिए जुलाई 2014 में ‘नमामि गंगे’ नामक परियोजना शुरू करने की घोषणा की। इसके लिये 10 जुलाई, 2014 को वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा प्रस्तुत किये गए बजट में 6300 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान रखा गया। इस धनराशि में से 2037 करोड़ रुपए गंगा की सफाई तथा प्रदूषण-नियंत्रण पर खर्च होना था जबकि 4200 करोड़ रुपए नेविगेशन कॉरीडोर के विकास पर। इसके अतिरिक्त तकरीबन 100 करोड़ रुपए घाटों के विकास तथा उसके सौन्दर्यीकरण पर खर्च होने थे। पैसा जुटाने के लिए एनआरआई फंड तक बनाने की बात कही गई। ‘नमामि गंगें’ परियोजना को लागू करने की दिशा में प्रथम कदम के रूप में गंगा किनारे स्थापित 48 औद्योगिक इकाइयों को बन्द करने का आदेश जारी किया गया लेकिन ऐसा अब तक पूर्ण रूपेण हो नहीं सका है। दरअसल मोदी सरकार ने 2014 में जो 20 हजार करोड़ सिर्फ गंगा सफाई के लिए घोषित किया था इन चार वर्षों में ना तो कोई खास पैसा खर्च हो पाया, ना ही पैसे के वितरण की कोई निगरानी ही हुई। अलबत्ता योजनाओं के नाम पर भगवान शंकर के माथे पर रहने वाली मां गंगा का दर्शन भगवान विश्वनाथ को कराने के लिए गंगा पाथ वे योजना ऐलान जरूर हो गया। भले उसके लिए सैकड़ों प्राचीन भवनों और मंदिरों को गिरा दिया जाए।