विकास बागी
वाराणसी. छुकछुक करती हजारों रेलगाडिय़ां प्रतिदिन नदियों, जलाशयों को पार करती हैं। आपने देखा होगा कि जैसे ही ट्रेन, बस या किसी गाड़ी में मौजूद बुर्जुग नदियों को पुल करते हैं उनके हाथ अपने आप जुड़ जाते हैं। नदियों को मां मानने वाले लोग श्रद्धा के रूप में जेब में मौजूद कुछ सिक्के नदियों में उछाल देते हैं। यहां तक की पवित्र नदियों में स्नान के बाद भी श्रद्धालु सिक्के अर्पित करते दिख जाएंगे। क्या आपने कभी सोचा कि इन आस्था के सिक्कों से गंगा समेत अन्य नदियां जहरीली हो रही रही हैं। कभी सोचा कि इस तरह पानी में सिक्के डालना आस्था का प्रतीक है या अंधविश्वास।
वैज्ञानिक दृष्टि पर नजर दौड़ाएं तो विभिन्न धातुओं के मिश्रण से पानी की शुद्धता बरकार रहती है। मानव जीवन के लिए जड़ी-बुटी या धातुओं की आवश्यकता बहुत जरूरी है। पूर्व में इस परम्परा से जलाशयों के पानी में लौह, तांबा व पीतल के तत्व समाहित होते होते थे। आज भी कई दुलर्भ धातुओं के भस्मों से गम्भीर बीमारी का उपचार किया जाता है। यह तब की बात है जब देश में तांबा, चांदी और स्वर्ण मुद्राएं प्रचलन में थी आज की मुद्राएं ऐसी धातुओं से निर्मित होते हैं जो गंगाजल के लिए जहरीला है।
कैंसर को जन्म दे सकती है आपकी आस्था
यूपी कालेज में रसायन शास्त्र पढ़ाने वाली सुप्रिया सिंह ने बताया कि भारत में प्रचलित वर्तमान सिक्के 83त्न लोहा और 17 त्न क्रोमियम के बने होते है। आप सबको ये पता होगा कि क्रोमियम एक भारी जहरीला धातु है। क्रोमियम दो अवस्था में पाया जाता है, एक Cr (III) और दूसरी Cr (IV)। पहली अवस्था जहरीली नही मानी गई बल्कि क्रोमियम (IV) की दूसरी अवस्था 0.05त्न प्रति लीटर से ज्यादा हमारे लिए जहरीली है। जो सीधे कैंसर जैसी असाध्य बीमारी को जन्म देती है। सुप्रिया सिंह आगाह करती हैं कि नदी में पैसे नहीं डालने चाहिए। सोचो एक नदी जो अपने आप में बहुमूल्य खजाना छुपाये हुए है उसे हम अपनी नासमझी के चलते जहरीला कर रहे हैं।
प्राचीन काल से परंपरा
नदियों में मुद्राएं अर्पित करने का प्रचलन प्राचीन काल से चला आ रहा है। माना जाता है कि जब रामचंद्र चौदह वर्ष का वनवास काटकर लौटे थे तब सीता मां ने सरयू नदी में स्वर्ण मुद्राएं अर्पित किया था। तब से यह प्रथा चली आ रही है। नदियों में सिक्के डालने का प्रचलन मुगलकाल में भी शुरू होने के प्रमाण मिले हैं। मुगलकाल में एक बार नदियों का पानी इस कदर दूषित हो गया था कि स्नान मात्र से ही तमाम बीमारियां घेर लेती थीं। जहरीले हो चुके पानी को शुद्ध करने के लिए मुगल शासकों ने जनता से नदियों, तालाब, जलाशयों में तांबे, चांदी के सिक्के डालने का हुक्म दिया था ताकि धातुओं के मिश्रण से नदियों का पानी शुद्ध हो जाए।
अर्पित करें तांबा
स्वच्छ गंगा अभियान से जुड़े गुलशन कपूर का कहना है कि श्रद्धालुओं को गंगा समेत अन्य नदियों में वर्तमान भारतीय सिक्के डालने से बचना चाहिए। यदि उन्हें नदियों को मुद्राएं अर्पित ही करनी है तो तांबा, चांदी अथवा स्वर्ण भेंट करें ताकि प्रदूषित हो रही नदियां शुद्ध हो सकें। गंगाजल आचमन योग्य बनाना है तो मां गंगा को तांबा-चांदी-स्वर्ण चढ़ाएं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तांबे का सिक्का पानी में डालने से सूर्य देव अनुकुल होते हैं और पितरों की कृपा प्राप्त होती है। बदलते दौर में तांबे के सिक्कों का प्रचलन समाप्त होने से स्टेनलेस स्टील के सिक्के उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अब लोग पानी में फेंकते हैं जो गलत है।
नदियों की तलहटी में भारत का खजाना
प्रतिदिन नदियों में सिक्के फेंके जाते हैं। अगर रोज के सिक्कों के हिसाब से गढऩा की जाये तो ये रकम कम से कम दहाई के चार अंको को तो पार करती होगी। इस हिसाब से देश की नदियों की तलहटी में देश का अरबो रुपयों दबा पड़ा है। नदियों में रोज भारतीय मुद्रा ऐसे फेक दी जाती इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान पहुँचता होगा।