राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह दूर की कौड़ी हो सकती है। सपा हो या बसपा, यानी मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव और मायावती फिलहाल बीजेपी यानी नरेंद्र मोदी और अमित शाह से कोई पंगा नहीं लेना चाहते। उन्हें भय सता रहा है कि अगर एकजुटता की बात की जाती है और उसमें कांग्रेस को भी शामिल किया जाता है तो नुकसान उनका ही होगा। खास तौर पर मुलायम सिंह और मायावती पर। उनके खिलाफ डब्बे में बंद फाइलें कभी भी खुल सकती है। लिहाजा कांग्रेस से दूरी बनाना ही श्रेयस्कर होगा।
राजनीतिक विश्लेषक यह भी बताते हैं कि इस बीच दोनों ही दल अकेले-अकेले चुनाव लड़ कर अपनी ताकत का अंदाजा भी लगा लेंगे। फिर अगर गठबंधन बनता भी है तो ये अपनी-अपनी हैसियत के मुताबिक दावा करेंगे। ऐसे में यह नूरा कुश्ती भी हो सकती है। लेकिन सबसे बड़ा मसला इनकी पिछली फाइलें ही हैं। वो कहते हैं कि अभी ही जिस तरह से यूपी सरकार ने जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्रियों से आवास खाली कराने का सिलसिला शुरू कराया और अखिलेश यादव पर जिस तरह से आरोप लगे उसे वो पीएम मोदी, अमित शाह की रणनीति का ही हिस्सा मान रहे हैं।
ऐसे में यह बिखराव कम से कम तब तक दूर नहीं होता दिखेगा जब तक कि लोकसभा चुनाव की घोषणा नहीं हो जाती है। ये भी रणनीति हो सकती है कि एक बारगी चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद सरकार कुछ खास कर नहीं पाएगी और तब गठबंधन करने में कोई हर्ज नहीं होगा। तब तक हर दल को अपनी अपनी ताकत का एहसास भी हो चुका होगा। ऐसे में टिकट बंटवारे में भी कोई खास दिक्कत नहीं होगी।