शुभ मुहूर्त
हरतालिका तीज पूजा मुहूर्त- सुबह 8 बजकर 27 मिनट से 8 बजकर 37 मिनट तक
प्रदोष काल हरतालिका पूजा मुहूर्त – शाम 6 बजकर 39 मिनट से रात 8 बजकर 56 मिनट तक
तृतीया तिथि प्रारंभ- सुबह 8 बजकर 27 मिनट से (1 सितंबर 2019 )
तृतीया तिथि समाप्त- अगले दिन सुबह 4 बजकर 47 मिनट तक (2 सितंबर 2019)
हरतालिका तीज पूजा मुहूर्त- सुबह 8 बजकर 27 मिनट से 8 बजकर 37 मिनट तक
प्रदोष काल हरतालिका पूजा मुहूर्त – शाम 6 बजकर 39 मिनट से रात 8 बजकर 56 मिनट तक
तृतीया तिथि प्रारंभ- सुबह 8 बजकर 27 मिनट से (1 सितंबर 2019 )
तृतीया तिथि समाप्त- अगले दिन सुबह 4 बजकर 47 मिनट तक (2 सितंबर 2019)
हरतालिका तीज व्रत
माता पार्वती अपने कई जन्मों से भगवान शिव को पति के रूप में पाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने माता पार्वती ने हिमालय पर्वत के गंगा तट पर बाल अवस्था में अधोमुखी होकर तपस्या की। माता पार्वती ने इस तप में अन्न और जल का भी सेवन नही किया था। वह सिर्फ सूखे पत्ते चबाकर ही तप किया करती थी। माता पार्वती को इस अवस्था में देखकर उनके माता पिता अत्यंत ही दुखी रहते थे। एक दिन देवऋषि नारद भगवान विष्णु की तरफ से पार्वती जी के विवाह को प्रस्ताव लेकर उनके पिता के पास गए। पार्वती जी के पिता ने तुरंत ही इस प्रस्ताव के लिए हां कर दी। जब माता पार्वती को उनके पिता ने उनके विवाह के बारे में पता चला तो वह काफी दुखी हो गई और रोने लगीं। उनकी एक सखी से माता पार्वती का यह दुख देखा नहीं गया और उन्होंने उनकी माता से इस विषय में पूछा। जिस पर उनकी माता ने उस सखी को बताया कि पार्वती जी शिव जी को पति रूप में पाने के लिए तप कर रही हैं। लेकिन उनके पिता चाहते हैं कि पार्वती का विवाह विष्णु जी से हो जाए। इस पर उनकी उस सहेली ने माता पार्वती को वन में जाने कि सलाह दी। जिसके बाद माता पार्वती ने ऐसा ही किया और वो एक गुफा में जाकर भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गई थी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का बनाया और शिव जी की स्तुति करने लगी। पार्वती जी ने रात भर भगवान शिव का जागरण किया। इतनी कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को दर्शन दिए और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया। तबसे हरतालिका तीज मनाया जाने लगा। जो कुंवारी लड़किया इस व्रत को करती है उसे मनचाहा वर प्राप्त होता है। वहीं महिलाओं के पति की आयु लम्बी होती है।
माता पार्वती अपने कई जन्मों से भगवान शिव को पति के रूप में पाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने माता पार्वती ने हिमालय पर्वत के गंगा तट पर बाल अवस्था में अधोमुखी होकर तपस्या की। माता पार्वती ने इस तप में अन्न और जल का भी सेवन नही किया था। वह सिर्फ सूखे पत्ते चबाकर ही तप किया करती थी। माता पार्वती को इस अवस्था में देखकर उनके माता पिता अत्यंत ही दुखी रहते थे। एक दिन देवऋषि नारद भगवान विष्णु की तरफ से पार्वती जी के विवाह को प्रस्ताव लेकर उनके पिता के पास गए। पार्वती जी के पिता ने तुरंत ही इस प्रस्ताव के लिए हां कर दी। जब माता पार्वती को उनके पिता ने उनके विवाह के बारे में पता चला तो वह काफी दुखी हो गई और रोने लगीं। उनकी एक सखी से माता पार्वती का यह दुख देखा नहीं गया और उन्होंने उनकी माता से इस विषय में पूछा। जिस पर उनकी माता ने उस सखी को बताया कि पार्वती जी शिव जी को पति रूप में पाने के लिए तप कर रही हैं। लेकिन उनके पिता चाहते हैं कि पार्वती का विवाह विष्णु जी से हो जाए। इस पर उनकी उस सहेली ने माता पार्वती को वन में जाने कि सलाह दी। जिसके बाद माता पार्वती ने ऐसा ही किया और वो एक गुफा में जाकर भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गई थी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का बनाया और शिव जी की स्तुति करने लगी। पार्वती जी ने रात भर भगवान शिव का जागरण किया। इतनी कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को दर्शन दिए और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया। तबसे हरतालिका तीज मनाया जाने लगा। जो कुंवारी लड़किया इस व्रत को करती है उसे मनचाहा वर प्राप्त होता है। वहीं महिलाओं के पति की आयु लम्बी होती है।