scriptहरियाली तीज 2017: महिलाओं को सौभाग्यवती का वरदान तो कुंवारी कन्याओं को मिलेगा मनचाहा वर, जानिए क्या है शुभ मुहुर्त | Hartalika Teej Vrat Shubh muhurt puja vidhi story in india | Patrika News

हरियाली तीज 2017: महिलाओं को सौभाग्यवती का वरदान तो कुंवारी कन्याओं को मिलेगा मनचाहा वर, जानिए क्या है शुभ मुहुर्त

locationवाराणसीPublished: Aug 16, 2017 01:15:00 pm

Submitted by:

sarveshwari Mishra

शिव को पाने के लिए मां पार्वती ने किया था हरतालिका तीज व्रत

वाराणसी. हरतालिका तीज इस बार 24 अगस्त को मनाई जाएगी। संकल्प शक्ति का प्रतीक और अखण्ड सौभाग्य की कामना का परम पावन व्रत हरतालिका भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होता है। जिसे हरतालिका तीज कहा जाता है। उत्तर भारत की स्त्रियों का यह प्रिय पर्व केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं बल्कि प्रकृति का उत्सव मनाने का भी दिन है। बारिश के इस मौसम में वन-उपवन, खेत आदि हरियाली की चादर से लिपटे होते हैं। संपूर्ण प्रकृति हरे रंग के मनोरम दृश्य से मन को तृप्त करती है। इसलिए सावन महीने का यह त्योहार हरियाली तीज कहलाता है।
इस व्रत को कुंवारी कन्या भी करती हैं । क्योंकि यह त्योहार मनचाहा वर मांगने का है। इसमें विधि विधान से पूजन कर कन्याएं अपना मनचाहा वर मांगती हैं।
क्यू पड़ा हरतालिका नाम
माता गौरी के पार्वती रुप में वे शिवजी को पति रुप में चाहती थी। जिसके लिए उन्होंने काफी तपस्या की थी उस वक्त पार्वती की सहेलियों ने उन्हें अगवा करना एवम् आलिका मतलब सहेली अर्थात सहेलियों द्वारा अपहरण करना हरतालिका कहलाता है। कहा जाता है कि शिव रुपी पति पाने के लिए कुंवारी कन्याएं तीज व्रत रहती हैं।
प्रात: काल हरतालिका तीज- 5.58 -8.32 -2 घंटा 35 मिनट
प्रदोष काल हरतालिका तीज- 18:47-20: 27 – 1 घंटा 39 मिनट तक शुभ मुहूर्त है।
हरतालिका तीज का शुभ मुहुर्त
वाराणसी के ज्योतिषाचार्य ऋषि द्विवेदी ने बताया कि हरतालिका तीज की तृतीया तिथि 23 अगस्त की रात्रि 9.41 मिनट पर लगेगी और 24 अगस्त की रात्रि 9 बजकर 16 मिनट पर खत्म होगी। इस शुभ घड़ी में महिलाएं पूजा-पाठ कर सकती है। इससे महिलाओं को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
हरतालिका तीज का नियम
हरतालिका व्रत पर महिलाएं निर्जला उपवास रहती हैं। अर्थात पूरे दिन अगले सूर्योदय तक वे जल ग्रहण नहीं करती।
यह व्रत सौभाग्यवती महिलाएं औऱ कुंवारी कन्याएं करती हैं।
हरतालिका व्रत एक बार शुरू करने के बाद छोड़ा नहीं जाता। इस हर वर्ष पूरे नियमों के साथ किया जाता है।
हरतालिका व्रत के दिन रतजगा किया जाता है। महिलाए सोलहों श्रृंगार करती हैं और पति के लम्बी उम्र की कामना करती हैं।
हरतालिका तीज व्रत कथा
लिंग पुराण की एक कथा के अनुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। काफी समय सूखे पत्ते चबाकर काटी और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे।
इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी। फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई। 
भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वह अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं। साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बरकरार रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों में इस दिन मेहंदी लगाने और झुला-झूलने की प्रथा है।
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