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होली पर मुस्लिम शायरों की लिखी बेहतरीन नज़्में जो ज़रूर सुनी जानी चाहिये

locationवाराणसीPublished: Mar 02, 2018 06:25:05 pm

मुस्लिम शायरों की ये नज़्में ये भी दिखाती है गुज़रे दौर की होली सौहार्द्र की मिसाल थी।

Holi Celebration

होली

वाराणसी. होली हिन्दुओं का त्योहार है, पर इसके उल्लास ने दूसरे मज़हब के लोगों को भी अकर्षित किया है। आज के दौर में सांप्रदायिकता का उभार चरम पर है और लोगों के बीच अपसी भाईचारे की जगह दूरियां लगातार बढ़ाती जा रही हैं। ऐसे समय में ये त्योहार हमें क़रीब लाने का बेहतरीन ज़रिया बन सकते हैं। ये ख़याल कोइ नया नहीं, बल्कि उतना ही पुराना है जितनी पुरानी हमारी साथ मिलजुलकर रहने की तहज़ीब है। गुज़रे ज़माने में न सिर्फ ऐसा सोचा गया बल्कि इस पर अमल भी किया गया। लखनऊ के नवाब से लेकर कई मुस्लिम राजा महाराजा अपसी सौहार्द्र के लिये ख़ुद भी होली के त्योहार में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे।
मुस्लिम शायरों ने भी दूसरे मज़हब के तीज त्योहारों पर उतना ही अच्छा लिखा है जितना अपने पर्वों पर। होली पर तो मुस्लिम शायरों ने एक से बढ़कर एक नज़्में लिखी हैं। नज़ीर अकबराबादी से लेकर नज़ीर बनारासी तक सबने होली को लेकर उम्दा नज़्में लिखी हैं। आज के दौर में जब त्योहारों में मिठास घोलने के लिये राशन की दुकान पर बढ़ी हुई चीनी नहीं मिलती बल्कि ज़्यादा से ज़्यादा पुलिस लगा दी जाती है कि कहीं कोई विवाद न हो जाय, तो ऐसे में इन शायरों की ये नज़्में हमें राह दिखा सकती हैं। बशर्ते कि हम अपनी तहज़ीब को समझें और उसे बचाने के लिये कोशिश करें।

अगर आज भी बोली-ठोली न होगी
तो होली ठिकाने की होली न होगी


बड़ी गालियाँ देगा फागुन का मौसम
अगर आज ठट्ठा ठिठोली न होगी


वो खोलेंगे आवारा मौसम के झोंके
जो खिड़की शराफ़त ने खोली न होगी

है होली का दिन कम से कम दोपहर तक
किसी के ठिकाने की बोली न होगी


अभी से न चक्कर लगा मस्त भँवरे
कली ने अभी आँख खोली न होगी


ये बूटी परी बन के उड़ने लगेगी
ज़रा घोलिए फिर से घोली न होगी

इसी जेब में होगी फ़ित्ने की पुड़िया
ज़रा फिर टटोलो टटोली न होगी


‘नज़ीर’ आज आएँगे मिलने यक़ीनन
न आए तो आज उन की होली न होगी
नज़ीर बनारासी

कहीं पड़े न मोहब्बत की मार होली में
अदा से प्रेम करो दिल से प्यार होली में
गले में डाल दो बाँहों का हार होली में
उतारो एक बरस का ख़ुमार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में

लगा के आग बढ़ी आगे रात की जोगन
नए लिबास में आई है सुब्ह की मालन
नज़र नज़र है कुँवारी अदा अदा कमसिन
हैं रंग रंग से सब रंग-बार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में

हवा हर एक को चल फिर के गुदगुदाती है
नहीं जो हँसते उन्हें छेड़ कर हंसाती है
हया गुलों को तो कलियों को शर्म आती है
बढ़ाओ बढ़ के चमन का वक़ार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में

ये किस ने रंग भरा हर कली की प्याली में
गुलाल रख दिया किस ने गुलों की थाली में
कहाँ की मस्ती है मालन में और माली में
यही हैं सारे चमन की पुकार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में

तुम्हीं से फूल चमन के तुम्हीं से फुलवारी
सजाए जाओ दिलों के गुलाब की क्यारी
चलाए जाओ नशीली नज़र से पिचकारी
लुटाए जाओ बराबर बहार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में

मिले हो बारा महीनों की देख-भाल के ब’अद
ये दिन सितारे दिखाते हैं कितनी चाल के ब’अद
ये दिन गया तो फिर आएगा एक साल के ब’अद
निगाहें करते चलो चार यार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में

बुराई आज न ऐसे रहे न वैसे रहे
सफ़ाई दिल में रहे आज चाहे जैसे रहे
ग़ुबार दिल में किसी के रहे तो कैसे रहे
अबीर उड़ती है बन कर ग़ुबार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में

हया में डूबने वाले भी आज उभरते हैं
हसीन शोख़ियाँ करते हुए गुज़रते हैं
जो चोट से कभी बचते थे चोट करते हैं
हिरन भी खेल रहे हैं शिकार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
नज़ीर बनारासी
आ धमके ऐश ओ तरब क्या क्या जब हुस्न दिखाया होली ने
हर आन ख़ुशी की धूम हुई यूँ लुत्फ़ जताया होली ने
हर ख़ातिर को ख़ुरसंद किया हर दिल को लुभाया होली ने
दफ़ रंगीं नक़्श सुनहरी का जिस वक़्त बजाया होली ने
बाज़ार गली और कूचों में ग़ुल-शोर मचाया होली ने

या स्वाँग कहूँ या रंग कहूँ या हुस्न बताऊँ होली का
सब अब्रन तन पर झमक रहा और केसर का माथे टीका
हँस देना हर-दम नाज़-भरा दिखलाना सज-धज शोख़ी का
हर गाली, मिस्री, क़ंद-भरी, हर एक क़दम अटखेली का
दिल शाद किया और मोह लिया ये, जौबन पाया होली ने

कुछ तबले खटके ताल बजे कुछ ढोलक और मुर्दंग बजी
कुछ झड़पें बीन रबाबों की कुछ सारंगी और चंग बजी
कुछ तार तम्बूरों के झनके, कुछ ढमढी और मुँह-चंग बजी
कुछ घुँगरू खटके झम-झम-झम कुछ गत गत पर आहंग बजी
है हर दम नाचने गाने का ये तार बँधाया होली ने

हर जागह थाल गुलालों से, ख़ुश-रंगत की गुल-कारी है
और ढेर अबीरों के लागे, सो इशरत की तय्यारी है
हैं राग बहारें दिखलाते और रंग-भरी पिचकारी है
मुँह सुर्ख़ी से गुलनार हुए तन केसर की सी क्यारी है
ये रूप झमकता दिखलाया ये रंग दिखाया होली ने

हर आन ख़ुशी से आपस में सब हँस हँस रंग छिड़कते हैं
रुख़्सार गुलालों से गुल-गूँ, कपड़ों से रंग टपकते हैं
कुछ राग और रंग झमकते हैं कुछ मय के जाम छलकते हैं
कुछ कूदे हैं, कुछ उछले हैं, कुछ हँसते हैं, कुछ बिकते हैं
ये तौर ये नक़्शा इशरत का हर आन बनाया होली ने
नज़ीर अकबराबादी
फ़स्ल-ए-बहार आई है होली के रूप में
सोला-सिंघार लाई है होली के रूप में


राहें पटी हुई हैं अबीर-ओ-गुलाल से
हक़ की सवारी आई है होली के रूप में


पिचकारियाँ लिए हुए देवी नशात की
हर घर में आज आई है होली के रूप में

सिन्दूर है इक हात में इक हात में गुलाल
तक़दीर मुस्कुराई है होली के रूप में


वो हम से मुजतनिब नहीं होली के नाम पर
हम ने मुराद पाई है होली के रूप में

होली ने उन को और भी दीवाना कर दिया
दीवानों की बन आई है होली के रूप में


रंगों की लहर लहर में पिचकारियाँ लिए
क़ौस-ए-क़ुज़ह ख़ुद आई है होली के रूप में

देखो जिसे वो ग़र्क़ है रंग-ओ-सुरूर में
इक मैं नहीं ख़ुदाई है होली के रूप में


‘साग़र’ नवेद-ए-दावत-ए-आब-ओ-हवा लिए
बाद-ए-बहार आई है होली के रूप में
साग़र निज़ामी

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