पर्यावरण संरक्षण की यह पहल निश्चित रूप से दूसरों के लिए भी एक सीख है। वजह होलिका के मौके पर हर साल कई क्विंटल जल जाती रही है। दूसरे लकड़ी जलने से निकलने वाला धुएं से प्रदूषण भी होता रहा है। वैसे भी काशी की आबो हवा दिल्ली एनसीआर से कहीं ज्यादा बिगड़ चुकी है। ऐसे में शहर के कई इलाकों में गोबर के उपले (गोइंठा) सजाए गए। इस तरह की होलिका सजाने वालों का कहना है कि यह प्रयास काशी की खराब हो रही हवा को बेहतर करने का काम करेगा वही तेजी से घट रहे पेड़ों को भी बचाया जा सकेगा।
उधर जिला प्रशासन ने भी होलिका दहन की तैयारी पूरी कर ली है। अधिकारियों का कहना है कि जिले में 2193 होलिकाएं हैं। पुलिस के रिकार्ड के मुताबिक इनमें 67 अतिसंवेदनशील व 200 संवेदनशील हैं। इन स्थानों की जिम्मेदारी संबंधित क्षेत्र के थाना प्रमुखों व प्रभारियों पर रहेगी। क्षेत्राधिकारियों की आठ मोबाइल टीमें त्वरित कार्रवाई बल के साथ बराबर चक्रमण करेगी। दंगा नियंत्रण वाहन व उपकरण, वीडियो कैमरा से लैस पुलिसकर्मी शरारती तत्वों पर नजर रखेंगे। शराब व तीन सवारी बाइकर्स के खिलाफ अभियान चलाकर कार्रवाई होगी। सादे वेश में खुफिया तंत्र का भी जाल बिछाया गया है। हर होलिका पर कम से कम एक सिपाही व एक होमगार्ड तैनात कर दिए गए हैं।