पौराणिक मान्यताएं कहती हैं कि होली से 8 दिन पूर्व अर्थात फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से प्रकृति में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है। इस कारण कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। होलाष्टक को लेकर पौराणिक मान्यता है कि दैत्य राज हिरण्यकश्यप ने फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को भक्त प्रह्लाद को बंदी बनाकर यातनाएं दी। होलिका ने भी प्रह्लाद को जलाने की तैयारी इस दिन से शुरू कर दी थी और खुद होलिका दहन के दिन भस्म हो गई जिसके बाद रंगोत्सव मनाया गया है।
होलिका की कहानी
ऐसी भी कथा है कि भगवान शिव ने होलाष्टक के दिन कामदेव को भस्म कर दिया था जिससे प्रकृति में शोक की लहर फैल गई थी और लोगों ने शुभ कार्य करना बंद कर दिया था। होली के दिन भगवान शिव से कामदेव के वापस जीवित होने का वरदान मिल जाने से बाद प्रकृति आनंदित हो गई। इसलिए होलाष्टक से होलिका दहन के बीच का समय शुभ नहीं माना जाता है।
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से ही होलिका दहन के लिए स्थान का चयन कर लिया जाता है। पूर्णिमा के दिन सांयकाल के शुभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है। साथ ही यह भी जाना जाता है कि अगला साल कैसा रहेगा।