दी क्लाइमेट एजेंडा की सीनियर कार्यकर्ता का कहना है किभारत में छोटे बच्चे वायु प्रदूषण के घातक कण पी एम (पार्टिकुलेट मीटर) 2.5 के समक्ष आकर 98 प्रतिशत तक प्रभावित हैं, जिसके कारण अस्थमा, फेफड़े से संबंधित जानलेवा बीमारी। हृदय रोग, मानसिक क्षति, जन्मजात विकृति आदि खतरनाक बिमारियों की गिरफ्त में आ रहे है। बताया कि पीएम 2.5 प्रदूषण के इतने छोटे कण होते हैं जो सीधे रक्त प्रवाह में शामिल हो जाते हैं।
कहा कि बहुत सी ऐसी बीमारियां हैं जिनके प्रसार से न केवल शहरों की सार्वजनिक स्वास्थ्य स्थितियां बद्दतर हुई हैं बल्कि ऐसी स्थितियों ने इन शहरों की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित किया है। यही कारण है कि शहरों को साफ सुथरा रखने के लिये किये जाने वाले अपशिष्ट प्रबंधन को स्वच्छ भारत मिशन के माध्यम से फिर से जन-चेतना का केंद्र बनाया गया। इसका उद्देश्य आम-जन को अपने आस-पास के वातावरण को साफ सुथरा रखने के लिये प्रेरित करना है। हालांकि, यह अभियान झाडू के साथ शुरू होकर कूड़े के डिब्बे तक ही सीमित रह गया। इसके द्वारा कोई विशेष उपलब्धि हासिल नहीं की जा सकी। इसकी शुरुआत तो बहुत प्रभावी हुई, लेकिन इसकी निरंतरता वैसी नहीं रह सकी जैसी कि इससे उम्मीद की गई थी।
पिछले कुछ समय में ठोस कचरे की विभिन्न धाराओं में प्रसंस्करण और उपचार संबंधी चुनौतियां तथा वैज्ञानिक भूमिगत क्षेत्रों में अवशेषों का सुरक्षित निपटान चर्चा का कारण बना हुआ है। हालांकि इस संबंध में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ये सभी मुद्दे स्वास्थ्य संबंधी परिप्रेक्ष्य में नहीं, बल्कि नगरपालिका द्वारा ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में बरती गई लापरवाही के कारण हैं। जैसे कचरों का खुले में जलना, स्पष्ट है कि यदि हम अपशिष्ट प्रबंधन के संबंध में कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं करते हैं तो न तो हम एक स्वच्छ एवं स्वस्थ शहर ही बना पाएंगे।
इस संबंध में सबसे अहम् समस्या यह है कि हमारा ध्यान स्वास्थ्य हेतु कचरे का प्रबंधन किये जाने पर केंद्रित होने के बजाय ऊर्जा के लिये कचरे के भंडारण एवं प्रयोग कर केंद्रित हो गया है।
स्पष्ट रूप से इस प्रक्रिया में हमारे द्वारा आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि से महंगे समाधानों जैसे कि अत्यधिक पूंजी-सघन होने के बावजूद पौधों को जलाए जाने के विकल्प को चुना गया। हालांकि, राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) न तो मिश्रित कचरे को जलाए जाने की अनुमति ही देता है और न ही किसी भी कंपोस्ट योग्य अथवा पुनर्नवीनीकरण को इस प्रकार निस्तारित करने की अनुमति देता है। इसका कारण यह है कि इस प्रकार की प्रक्रियाओं का प्रवर्तन स्वयं में एक बहुत बड़ी चुनौती है। जहां एक ओर इससे पर्यावरण को हानि पहुंचती है वहीं दूसरी ओर इससे उत्सर्जित होने वाले ज़हरीले धुएं से स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचता है।