इस रसूख की जंग ने ही हाईकमान के उस फैसले को वापस लेने को मजबूर कर दिया जिसके तहत पार्टी को प्रदेश में जिंदा करने की रणनीति बनाई गई थी। कहा गया था कि पार्टीजन आम जनों की समस्या से जुड़ें। उनके सरोकारों से जुड़ें। जो कांग्रेस से लगाव तो रखते हैं पर विकल्प के रूप में उस पर विश्वास नहीं जमा पा रहे उनमें विश्वास जताना था। इसके लिए आम जन की जरूरतों को पूरा करने के लिए आंदोलन की रणनीति बनाई गई थी, लेकिन इस रणनीति को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। बता दें कि इस रणनीति के तहत ही हाईकमान के निर्देश पर सूबे में जनांदोलन समिति गठित की गई। प्रदेश अध्यक्ष के अधीन काम करने वाली इस समिति के प्रभारी नियुक्त किए गए। यह सिलसिला प्रदेश से जिला स्तर तक चला। सूत्र बताते हैं कि जब इस समिति ने काम करना शुरू किया तो वाराणसी सहित आसपास के कई जिलों में इसका विरोध होने लगा। ऐसे में पहले जनांदोलन समिति से समिति शब्द को हटा दिया गया। कहा गया कि समिति के प्रभारी और सह प्रभारी जिलाध्यक्ष के साथ मिल कर आंदोलन करेंगे। जिलध्यक्ष के साथ बैठ कर आंदोलन की रणनीति बनाएंगे। कुछ दिनों तक वह भी चला लेकिन वह भी रास नहीं आया। सूत्र बताते हैं कि तब कहा गया कि जनांदोलन से जुड़े लोग जिला कमेटी के समानांतर काम कर रहे हैं। बात प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर से लेकर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी तक पहुंची। जब कई जिलों से जिला कमेटी के समानांतर जनांदोलन के सक्रिय होने की शिकायतों का अंबार लग गया तो प्रदेश नेतृत्व ने फिलहाल इस जनांदोलन को ही रोक दिया।
बता दें कि कम से कम बनारस में इस जनांदोलन समिति और कांग्रेस जनांदोलन ने निकाय चुनाव को लेकर अच्छी खासी रणनीति तय की थी। तय हुआ था कि नवरात्र से वार्ड परिक्रमा शुरू होगी। जनता के सरोकारों से जुड़ा जाएगा। उनकी समस्या को लेकर आंदोलन होगा। एक-एक बिंदु पर पार्टी संघर्ष करेगी। लेकिन वह सब ठप्प हो गया। आलम यह कि जहां सपा, भाजपा, बसपा निकाय चुनाव की तैयारी में जी जान से जुट गए हैं। वहां कांग्रेस की गतिविधि नजर ही नहीं आ रही।
वैसे यह हाल कमोबेश प्रदेश भर में है। प्रदेश स्तर पर अध्यक्ष पद को लेकर खींचतान चल रही है। बता दें कि पत्रिका ने पहले ही खबर दी थी कि हाईकमान यह चाहता है कि प्रदेश को चार भाग में बांट कर अलग-अलग प्रभारी बनाए जाएं जैसा राष्ट्रीय छात्र संगठन और युवक कांग्रेस में चल रहा है। यहां यह भी बता दें कि एनएसयूआई हो या युवक कांग्रेस संगठन में बदलाव पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की ही देन है। इसी तर्ज पर वह मूल संगठन को भी चलाना चाहते हैं। इसके पीछे सोच उत्तर प्रदेश का विशाल भू-भाग है। ऐसे में यूपी को पूर्वी जोन, पश्चिमी जोन,सेंट्रल जोन और बुंदेलखंड जोन में बांटने की तैयारी है। हालांकि प्रदे नेतृत्व को लेकर भी खींच तान जारी है। यह तब है जब 25 अक्टूबर तक निकाय चुनाव के लिए अधिसूचना जारी हो सकती है। इसी के मद्देनजर समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने जिला व महानगर कमेटियों को सख्त निर्देश दिया है कि हर हाल में 23 अक्टूबर तक प्रत्याशियों की सूची तैयार कर प्रदेश मुख्यालय को भेज दिया जाए ताकि उसे अंतिम रूप देते हुए उन्हें समय रहते पार्टी सिंबल जारी किया जा सके। उधर बीजेपी है कि प्रदेश मंत्री से लेकर संगठन के पदाधिकारी लगातार अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर निकाय चुनाव में फतह हासिल करने की रणनीति तय करने में जुटे हैं। प्रत्याशियों की सूची फाइनल की जा रही है। लेकिन कांग्रेस को इससे सरोकार नहीं। यह तब है जब 1995 से लेकर अब तक प्रदेश के अधिकांश नगर निगमों में बीजेपी का कब्जा रहा है। जिन कुछ मेयर की सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार जीते भी थे वो अब बीजेपी की उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं।