आंकड़ों की बात करें तो उत्तर प्रदेश का जेंडर रेशियो प्रति हजार 913 है तो वाराणसी का 908 प्रति हजार होने का दावा किया जा रहा है। जिम्मेदारों का दावा है कि साल भर में प्रति हजार 23-24 बच्चियों के जन्म का अनुपात बढ़ा है। लेकिन इस मुद्दे के जानकारों का दावा है कि बनारस में पिछले साल भर में जेंडर रेशियो गिर कर 817 पहुंच गया है। यह पिछले साल 822 था। अब इसमें कौन सच है यह कहना भले मुश्किल हो पर यह जरूर है कि इस शहर में अजन्मी बच्चियों की हत्या का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। यही वजह है कि डॉ संतोष ओझा को आगमन नामक संस्था शुरू कर कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान शुरू करना पड़ा है। आगमन संस्था ने महिला दिवस को उस बच्ची के नाम समर्पित किया जिसने स्कूल में लगातार हो रहे छेड़छाड़ से तंग आ कर खुदकुशी कर ली।
जहां तक बच्चियों और किशोरियों के संग होने वाली छेड़छाड़ और रेप का मामला है तो 2016 में आईपीसी क्राइम अगेंस्ट वूमेन के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में दहेज हत्या 2473 केस, खुदकुशी के 2478 के मामले दर्ज किए गए। वहीं रेप के मामलों की बात करें तो 4816 दर्ज हैं। बनारस की बात करें तो फरवरी-मार्च में ही दो मामले ऐसे सामने आए हैं जिन्हें जघन्य ही माना जाएगा। सातवीं और चौथी कक्षा की छात्रा से रेप और छेड़खानी की कोशिश। इस सूरत लोगों का कहना है कि साल में एक दिन दिवस मनाने और महिलाओं के सम्मान की बात करने से काम नहीं चलने वाला। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नारे को सार्थक रूप में साबित करने की जरूरत है।