Jiutia vrat-2019: सबसे कठिन माना गया है खर जीउतिया का व्रत अनुष्ठान-आश्विन शुक्ल अष्टमी को रखा जाता है यह व्रत, नवमी तिथि लगने पर ही होता पारन-काशी के सरोवरों पर सुबह से ही लग गई है श्रद्धालु महिलाओं की भीड़-सबसे ज्यादा भीड़ है महालक्ष्मी मंदिर के समीप लक्ष्मी कुंड पर
Jiutia vrat-2019 पर काशी के गंदे सरोवरों में पूजन को बाध्य श्रद्धालु महिलाएं
वाराणसी. बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना से रखे जाने वाले खर जिउतिया व्रत पर काशी के प्रायः सरोवर पर श्रद्धालु माताओं की भीड़ सुबह से ही लग गई है। माताओं की आस्था है कि वो इन गंदे, बदबूदार पानी वाले जिसमें मोटी-मोटी काई जमी है के किनारे पूजन-अर्चन को जुटी हैं। ये हाल है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय इलाके का। बता दें कि काशी ही नहीं बल्कि समूचे पूर्वांचल का यह प्रमुख पर्व है। लेकिन शासन-प्रशासन की ओर से इस तरफ तनिक भी ध्यान नहीं दिया गया है। नतीजा पूरे आस्तिक मनोभाव और आस्था से लबरेज माताएं मजबूरी में इन सरोवरों के किनारे बैठ कर। ये अति पवित्रता वाले पर्व पर पूजन से पहले सरोवरों की सीढियों की सफाई तक करने को विवश हैं ये महिलाएं।
ये हाल तब है जब काशी के प्रायः सभी कुंड व सरोवर केंद्र सरकार की हृदय योजना में शामिल हैं। लेकिन योजना के तहत सरोवरों और कुंडों की रेलिंग लगा दी गई। लाइट लग गई। लेकिन साफ-सफाई का कोई इंतजाम नहीं किया गया। सरोवरों के पानी की सफाई पर पिछले 5 साल में कभी भी ध्यान नहीं दिया गया। हर साल इसी तरह से इसी गंदगी में बैठ कर महिलाएं पूजन-अर्चन करती हैं। इन्हीं सरोवरों में गणेश और माता दुर्गा व सरस्वती की प्रतिमाएं विसर्जित की जाती हैं। लेकिन शासन-प्रशासन ने इस तरफ कभी गौर नहीं फरमाया। स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने भी इस पर कभी कोई ध्यान नहीं दिया। ऐसे में आस्थावान महिलाएं गंदगी में पूजन को मजबूर हैं।
बता दें कि पूर्वांचल के इस प्रमुख पर्व की प्रक्रिया पिछली रात से ही शुरू हो जाती है। व्रती महिलाएं घर की रसोई को साफ-सुथरा कर विविध पकवान पकाती हैं। खास तौर पर सतपुतिया की सब्जी और मीठी पूड़ी बनाई जाती है। इन पकवानों को चील्ह व सियार (चील्हो-सियारो) के नाम से निकाला जाता है। इसके बाद यही प्रसाद महिलाएं ग्रहण करती हैं, उसके बाद से शुरू हो जाता है जिउतिया का खर उपवास। ऐसा उपवास जो आश्विन शुक्ल अष्टमी को रख कर अगले दिन जब तक नवमी तिथि नहीं लग जाती तब तक पारन करने की मनाही है।
इस खर उपवास में महिलाएं अष्टमी के रोज नित्य कर्म से निवृत्त हो कर स्नान-ध्यान कर पूजन में जुट जाती हैं। सरोवरों के किनारे पूजन के लिए साफ-सफाई कर पूजा की वेदी बनाई जाती है। उस पर केले की पत्ती या गन्ने का मंडप बनाया जाता है, फिर शुरू होता है जिउतिया माई के पूजन का सिलसिला। पूजन के पश्चात जीमुत वाहन वर्त कथा का श्रवण किया जाता है।
जीमुत वाहन व्रत कथा गन्धर्वों के एक राजकुमार थे जिनका नाम था ‘जीमूतवाहन’। वह बहुत उदार और परोपकारी थे। अल्प आयु में ही उन्हें सत्ता मिल गई थी लेकिन वह उन्हें मंजूर नहीं था। उनका मन राज-पाट में नहीं लगता था। ऐसे में वे राज्य छोड़ अपने पिता की सेवा के लिए वन में चले गए। वहीं उनका मलयवती नामक राजकन्या से विवाह हुआ।
एक दिन जब वन में भ्रमण करते हुए जीमूतवाहन ने वृद्ध महिला को विलाप करते देखा। उसका दुख देखकर उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने वृद्धा की इस अवस्था का कारण पूछा। इस पर वृद्धा ने बताया, ‘मैं नागवंश की स्त्री हूं और मेरा एक ही पुत्र है। पक्षीराज गरुड़ के सामने प्रतिदिन खाने के लिए एक नाग सौंपने की प्रतिज्ञा की हुई है, जिसके अनुसार आज मेरे ही पुत्र ‘शंखचूड़’ को भेजने का दिन है। आप बताएं मेरा इकलौता पुत्र बलि पर चढ़ गया तो मैं किसके सहारे अपना जीवन व्यतीत करूंगी।
यह सुनकर जीमूतवाहन का दिल पसीज गया। उन्होंने कहा कि वे उनके पुत्र के प्राणों की रक्षा करेंगे। जीमूतवाहन ने कहा कि वह खुद को लाल कपड़े में ढककर वध्य-शिला पर लेट जाएंगे। जीमूतवाहन ने ऐसा ही किया। ठीक समय पर पक्षीराज गरुड़ भी पहुंच गए और वे लाल कपड़े में ढके जीमूतवाहन को अपने पंजे में दबोचकर पहाड़ के शिखर पर जाकर बैठ गए।
गरुड़जी यह देखकर आश्चर्य में पड़ गए कि उन्होंने जिन्हें अपने चंगुल में गिरफ्तार किया है उसके आंख में आंसू और मुंह से आह तक नहीं निकल रहा है। ऐसा पहली बार हुआ था। आखिरकार गरुड़जीने जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछा। पूछने पर जीमूतवाहन ने उस वृद्धा स्त्री से हुई अपनी सारी बातों को बताया। पक्षीराज गरुड़ हैरान हो गए। उन्हें इस बात पर सहज विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई किसी की मदद के लिए ऐसी कुर्बानी भी दे सकता है।