scriptश्री काशी विश्वनाथ के गौना बारात में इस बार यह होगा खास | Kali Vishwanath will play Holi 05 Quintal Gulal on 17 march | Patrika News

श्री काशी विश्वनाथ के गौना बारात में इस बार यह होगा खास

locationवाराणसीPublished: Mar 15, 2019 12:40:25 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

17 मार्च को निकलेगी, बाबा विश्वनाथ और गौरा की गौना बारात।

बाबा विश्वनाथ का गौना पर्व (फाइल फोटो)

बाबा विश्वनाथ का गौना पर्व (फाइल फोटो)

वाराणसी. काशी पुराधिपति श्री काशी विश्वनाथ, माता गौरा (पार्वती) को ले जाएंगे गौने। रंगभरी एकादशी यानी 17 मार्च को निकलेगी बाबा और गौरा की गौना बारात। इस दिन से ही काशी में शुरू हो जाएगा होली का हुड़दंग। कारण बाबा विश्वनाथ इसी दिन भक्तों संग होली खेलेंगे। यह परंपरा करीब साढ़े तीन सौ साल से चली आ रही है। हर काशीवासी को इस दिन का खास इंतजार रहता है।
बाबा विश्वनाथ यूं तो हर साल भक्तों संग होली खेलते हैं। इसके लिए महंत परिवार की ओर अबीर गुलाल का इंतजाम किया जाता है। विश्वनाथ मंदिर से महज 50 गज की दूरी पर स्थित महंत डॉ कुलपति तिवारी के आवास तक का रास्ता अबीर गुलाल से पट जाता है। इसी दिन बाबा की सपिरवार रजत चल प्रतिमा निकलती है। लेकिन इस बार महंत डॉ तिवारी ने पांच क्विंटल हर्बल गुलाल का इंतजाम किया है। यह हर्बल गुलाल गुलाब की पंखुड़ियों से तैयार हुआ है। पूरी तरह से हर्बल। इसका किसी के ऊपर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
रंगभरी एकादशी की शाम बाबा की रजत पालकी उठने से पहले भभूत की होली होगी। यह होली महंत डॉ तिवारी के आवास पर ही होगी। इसके बाद ही बाबा की गौना बारात निकलेगी जो मंदिर के गर्भ गृह तक जाएगी। हर-हर महादेव का उद्घोष और हवा में उड़ते अबीर गुलाल से काशी पुराधिपति का स्वागत होगा। मंदिर के गर्भ गृह में प्रतिमा रखने के बाद फिर एक बार होली होगी। उसके बाद होगी सप्तश्री आरती। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण भी गोपियों संग टेसू के फूल से होली खेलते हैं।
इस संबंध में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डॉ कुलपति तिवारी ने पत्रिका को बताया कि यह 345वां वर्ष है। लगातार महंत परिवार बाबा के गौने की परिपाटी निभाता चला आ रहा है। मंहत परिवार दरअसल कन्या पक्ष से है। लिहाजा पूरी तैयारी भी हम लोग ही करते हैं। उन्होंने बताया कि 1934 में पंडित जवाहर लाल नेहरू की मां स्वरूप रानी नेहरू आई थीं, उन्होंने तत्काली महंत पंडित महावीर प्रसाद तिवारी से मिलीं। साथ ही मंदिर के रजिस्टर में उन्होंने एक प्रार्थना की, जिसके तहत उन्होंने अनुरोध किया कि बाबा को खादी का वस्त्र पहनाया जाए, तभी से बाबा विश्वनाथ को खादी का ही वस्त्र पहनाया जाता है।
उऩ्होंने बताया कि तैयारी पूरी हो चुकी है। गुजरात से खादी का कुर्ता-धोती आ गई है। पगड़ी भी आई है लेकिन परंपरागत रूप से वाराणसी के गयासुद्दीन की पगड़ी ही बाबा को पहनाई जाती है और इस बार भी वही होगा। उन्होंने बताया कि वसंत पंचमी से बाबा के विवाह की प्रक्रिया शुरू होती है पहले तिलक चढ़ता है फिर महाशिवरात्रि को पूरी रात मंदिर के गर्भ गृह में विवाहोत्सव मनाया जाता है और रंगभरी एकादशी जिसे अमला एकादशी भी कहते हैं को गौना होता है। इसके अंतर्गत महिलाएं जुटती हैं। मां से अखंड सौभाग्य का वर मांगती हैं। लोक परंपराओं के तहत विदायी के समय वो रोती भी हैं। कुंवारी लड़कियां योग्य वर की कामना से माता के गौने में शामिल होती है।
रंगभरी एकाशी को पहले महंत निवास से बाबा का शिवाल गर्भगृह में पहुंचाया जाएगा। फिर शाम को बाबा विश्वनाथ, माता पार्वती के गोद में बैठे श्री गणेश की चल प्रतिमा निकलेगी। होली मनाई जाएगी। फिर मंदिर के गर्भगृह में गौने की रस्म पूरी की जाएगी।
इस पावन मौके पर बाबा राजसी वस्त्र धारण करेंगे। परंपरागत रूप से खादी का होगा वह वस्त्र। बाबा का वस्त्र तैयार करने वाले दर्जी, किशन लाल ने अबकी बार रुपली जरी के किनारों से सुसज्जित कुर्ता और माता पार्वती के लिए जरी के किनारे वाली साड़ी तैयार की है। साथ ही बाबा का साफा (पगड़ी) भी तैयार हो चली है।

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