-काशी की पंचक्रोशी परिक्रमा है विख्यात-पंचक्रोशी परिक्रमा का पहला पड़ाव है कर्दमेश्वर मंदिर -यहां है कर्दमेश्वर महादेव का शिवलिंग-मंदिर से सटा है मनोरम सरोवर
Kardameshwar Mahadev
वाराणसी. मोक्ष दायिनी काशी में सिर्फ मृत्यु के बाद मोक्ष मिलता हो ऐसा नहीं है, यहां तो विभिन्न ऋण व दोष से भी मुक्ति मिलती है। इसके लिए स्वर्ग लोक से देवताओ को भी आना पड़ता है। यहां एक से बढ कर एक प्राचीन मंदिर है। मंदिरों सटे सरोवर हैं जिनका उल्लेख अगर रामायण काल में मिलता है तो महाभारत काल में। यहां विभिऩ्न दोष से मुक्ति के लिए विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम को भी आना पड़ता है। यही वह नगरी है जहां देव ऋण से भी मुक्ति मिलती है। ऐसा ही एक मंदिर है कर्दमेश्वर महादेव का मंदिर।
वाराणसी के दक्षिणी छोर पर स्थित कन्दवा पोखरे के किनारे बसा कर्दमेश्वर महादेव मंदिर काशी के प्राचीन शिव मंदिरों में बहुत ही महत्वपूर्ण है, जिसका उल्लेख काशी खंड और पंचक्रोशी महात्म्य में मिलता है। काशी की धार्मिक और महत्वपूर्ण पंचक्रोशी यात्रा का यह प्रथम विश्रामस्थल भी है। यहां श्रद्धालु अपनी पंचक्रोशी यात्रा के दौरान एक दिन विश्राम करते हैं।
मान्यता है कि कर्दम ऋषि ने मंदिर में शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की। यही वजह है कि इसे कर्दमेश्वर महादेव नाम से जाना जाता है। कहा यह भी जाता है कि चंदेल राजाओं ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। कर्दम ऋषि ने यहां तपस्या की थी। उनकी तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए। मंदिर से जुड़े पुरनिये बताते हैं कि कर्दम ऋषि जब तपस्या में लीन थे तो किसी बात पर उनकी आंखों में आंसू आ गए और उन आंसुओं ने ही सरोवर का रूप ले लिया। ऐसे में मान्यता है कि सरोवर में जिसका प्रतिबिंब दिख जाए उसकी आयु बढ़ जाती है।
प्रचलित कथा के अनुसार एक दिन प्रजापति कर्दम ऋषि शिव की पूजा में ध्यानमग्न थे तब उनका पुत्र कर्दमी अपने मित्रों के साथ तालाब में स्नान करने गया उसी समय घड़ियाल उनके पुत्र को खींच ले गया जिससे कर्दमी के मित्र भयभीत होकर कर्दम ऋषि के पास गए और उनसे यह बात बताई लेकिन कर्दम ऋषि इस बात से प्रभावित नहीं हुए वे ध्यानमग्न ही रहे। ध्यानावस्था में ही वे संसार की सारी गतिविधियों को देख सकते थे। उन्होंने देखा की उनका पुत्र जल्देवी द्वारा सुरक्षित रूप से बचाकर समुद्र को सौप दिया गया है, समुद्र ने उसे आभूषनो से सुसज्जित कर शिवगणों को सौंपा जिसे शिवगणों ने शिव की आज्ञा से पुनः यथास्थान पंहुचा दिया। प्रजापति कर्दम ने जब अपने नेत्र खोली तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सम्मुख पाया। उसके पश्चात कर्दम ऋषि के पुत्र पिता की आज्ञा से वाराणसी चले आए। कर्दमी ने एक शिवलिंग स्थापित कर कई वर्षों तक तपस्या की जिससे भगवान् शिव ने प्रसन्न होकर प्रत्येक स्तोत्र का स्वामी घोषित किया। ऐसी कथा भी प्रचलित है कि कर्दम ऋषि ने यहां कई वर्षीं तक तपस्या की जिससे भगवान् विष्णु ने प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा कर्दम ऋषि ने पुत्र रत्न की इच्छा प्रकट की उसके उपरांत कर्दम ऋषि ने कर्दम कूप बनवाया जिसमे अपनी पत्नी देहुती के साथ स्नान किया किंवदंतियों के अनुसार स्नान के बाद पति-पत्नी युवा हो गए जिससे उनके पुत्र कपिलमुनि का जन्म हुआ।
काशी नगरी जहां मलमास में, सावन में पंचक्रोशी यात्रा की जाती है। इस पंचक्रोशी यात्रा की शुरूआत तो होती है मणिकर्णिका तीर्थ पर गंगा की पावन जलधारा में स्नान के साथ। उससे पूर्व श्री काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित व्यास पीठ पर संकल्प के साथ। बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद से। इस यात्रा का पहला पड़ाव है कंदवा स्थित कर्दमेश्वर महादेव मंदिर। पौराणिक कंदवा सरोवर में स्नान के पश्चात श्रद्धालु कर्दमेश्वर महादेव का दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं।
मान्यता है कि कर्दमेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से देव ऋण से मुक्ति मिल जाती है। इतना ही नहीं कहा यह भी जाता है कि रामायण काल में भगवान श्री राम ने जब महापंडित रावण का वध किया तो उन पर ब्रह्मदोष लगा। तत्कालीन ऋषि-मुनि कोई श्री राम को ब्रह्म दोष से मुक्त कराने को तैयार नहीं था। तब गुरु वशिष्ट ने भगवान राम को काशी जाने की सलाह दी। गुरु वशिष्ठ के आदेश पर वह सपरिवार काशी आए और कर्दमेश्वर महादेव का दर्शन किया। महादेव की सपत्नीक परिक्रमा की तब जा कर उन्हें ब्रह्म दोष से मुक्ति मिली। मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि तभी से यहां परिक्रमा की परंपरा चली आ रही है।
ऐतिहासिक दृष्टि से यह मंदिर लगभग 12वीं शताब्दी में निर्मित हुआ जिसका निर्माण गढ़वाल राजाओं ने किया। काशी खंड और तीर्थ विवेचन खंड भी यह दर्शाते हैं कि इस मंदिर का वरुनेशलिंग गढ़वाल काल का है। नागर शैली में निर्मित यह मंदिर पंचरथ प्रकार का है। इसके में चौकोर गर्भगृह, अंतरा और अर्ध्मंड़प है, मंदिर के ऊपरी भाग में नक्काशीदार कंगूरा और आमलक सहित सजावटी शिखर है। मंदिर की भित्तियों के बारे में चर्चा करें तो उत्कीर्ण मूर्तियों में वामन, अर्धनारीश्वर, ब्रह्मा और विष्णू आदि कई देवी देवता हैं। इस मंदिर के किनारे ही कंदवा पोखरा है। मंदिर के निकट ही विरूपाक्ष की मूर्ती स्थापित है जिसके समीप कर्दम कूप भी है। मंदिर के बाईं ओर कुछ दूरी पर पंचक्रोशी यात्रियों के लिए धर्मशाला भी है जिसमे पंचक्रोशी के यात्री विश्राम करते हैं|
वर्तमान में इस मंदिर की देखरेख का जिम्मा उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई वाराणसी को दिया गया जिससे इसकी उचित देखभाल हो पा रही है। कर्दमेश्वर महादेव मंदिर काशी के प्राचीन और प्रमुख मंदिरों में से एक है जो आज भी अस्तित्व में है, जिसका वर्णन पुराणों और प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में है। इसके अलावा पंचक्रोशी यात्रा का पहला पड़ाव होने के कालं इस मंदिर का महात्म्य और भी बढ़ जाता है। इस तरह से कर्दमेश्वर महादेव मंदिर ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।
क्षेत्रीय पुरातत्व विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक कर्दमेश्वर मंदिर पंचरथ प्रकार का मंदिर है। इसका तल छंद योजना में एक चौकोर गर्भगृह, अंतराल और चतुर्भुजाकार अर्द्धमंडप है। मंदिर का निचला भाग अधिष्ठान, मध्य भित्ति क्षेत्र मांडोवर भाग है। इस पर अलंकृत ताखे बने हैं। ऊपरी भाग में नक्काशीदार कंगूरा वरादिका व आमलक आदि सजावटी शिखर है।