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सबरीमाला और धारा 497 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला नारी-पुरुष समानता के हक में

locationवाराणसीPublished: Oct 06, 2018 10:27:56 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

बोले बीएचयू के विधि वेत्ता प्रो एमपी सिंह, 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं पर रोक लगाने की परंपरा, अवैध, असंवैधानिक और मनमाना है।

सबरीमाला और धारा 497 पर परिचर्चा

सबरीमाला और धारा 497 पर परिचर्चा

वाराणसी. बीएचयू विधि संकाय के वरिष्ठ प्रो एमपी सिंह का कहना है कि वैवाहिक कानून में बदलाव और सबरीमाला के मुद्दे पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला नारी-पुरुष समानता के हक में हैं। प्रो सिंह भगत सिंह-आम्बेडकर विचार मंच और परिवर्तनकामी विद्यार्थी मोर्चा द्वारा सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों पर आयोजित चर्चा को संबोधित कर रहे थे।
प्रो सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अहम फ़ैसले में केरल के सबरीमाला मंदिर को महिला श्रद्धालुओं के लिए खोलने का आदेश दिया है, जहां विशेष आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर रोक थी। कोर्ट ने कहा है कि 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं पर रोक लगाने की परंपरा, अवैध, असंवैधानिक और मनमाना है। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य फैसले के जरिए 1860 में बने 158 साल पुराने वैवाहिक क़ानून में तब्दीली करते हुए व्यभिचार से संबंधित आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अडल्ट्री तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन अपराध नहीं।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए बीएचयू के पूर्व छात्रनेता सुनील यादव ने कहा कि समलैंगिकता, आरक्षण, सबरीमाला मंदिर में महिला प्रवेश और वैवाहिक कानून में बदलाव जैसे संवेदनशील सवालों पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों ने भारतीय समाज में एक तरह से सामाजिक-सांस्कृतिक-वैचारिक हलचल का वातावरण बना दिया है। इन संवेदनशील सवालों पर समझ बनाने के लिए हमारी कोशिश होगी कि संवाद का यह सिसिला जारी रहे।
संवाद में एसपी राय, कुलदीप मीणा, प्रवीण नाथ, भुवाल यादव सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं और बनारस के नागरिकों ने भागीदारी की।

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