शिव की नगरी काशी की यह परम्परा बहुत अनोखी है। महाश्मशान घाट पर होने वाली मसाने की होली में भक्त चिता की भस्म, अबीर व गुलाल से होली खेलते हैं। सुबह से ही भक्तों में मसाने की होली को लेकर जमकर उत्साह था। मणिकर्णिका घाट पर एक तरफ चिता चल रही थी तो दूसरी तरफ चिता की राख लिए बाबा विश्वनाथ के भक्त होली खेल रहे थे। श्मशान में एक तरफ चिता में लगी आग की लपटे निकल रही थी तो दूसरी तरफ चिता की राख के साथ अबीर व गुलाल उड़ रहे थे। बाबा के भक्तों द्वारा लगाये जा रहे हर-हर महादेव के नारे से पूरा घाट गुंजयमान हो गया था। देश व विदेश से आये लोग अनोखी परम्परा को देख कर दंग रह गये थे। मणिकर्णिका घाट पर मसाने की होली पर ऐसा महौल बन गया था जैसा लग रहा था कि खुद बाबा विश्वनाथ अपने भक्तों के साथ मसाने की होली खेल रहे हैं।
गौरा का गौना करा कर आते हैं महादेव, इसके बाद खेली जाती है मसाने की होली
काशी में बसंत पंचमी से ही बाबा विश्वनाथ का वैवाहिक कार्यक्रम शुरू हो जाता है। बसंत पंचमी पर महादेव का तिलकोत्सव होता है और महाशिवरात्रि के दिन शिव व माता पार्वती का विवाह। इसके बाद रंगभरी एकादशी के दिन गौरा की विदाई होती है इसके दूसरे दिन मसाने की होली होती है। धार्मिक मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ महाश्मशान पर दिंगबर रुप में अपने भक्तों के साथ होली खेलते हैं।
काशी में बसंत पंचमी से ही बाबा विश्वनाथ का वैवाहिक कार्यक्रम शुरू हो जाता है। बसंत पंचमी पर महादेव का तिलकोत्सव होता है और महाशिवरात्रि के दिन शिव व माता पार्वती का विवाह। इसके बाद रंगभरी एकादशी के दिन गौरा की विदाई होती है इसके दूसरे दिन मसाने की होली होती है। धार्मिक मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ महाश्मशान पर दिंगबर रुप में अपने भक्तों के साथ होली खेलते हैं।
350 साल पुरानी है यह परम्परा
काशी में मसाने की होली की परम्परा लगभग 350 साल पुरानी है। पहले सन्यासी व गृहस्थ मिल कर मसाने की होली का आयोजन करते थे बीच में कुछ वर्षों के लिए यह परम्परा बंद हा गयी थी। लगभग 30 साल पहले मणिकर्णिका घाट के लोग व श्मशानेश्वर महादेव मंदिर के लोगों ने मिल कर इस परम्परा को फिर शुरू किया है जो अब लगातार जारी है।
काशी में मसाने की होली की परम्परा लगभग 350 साल पुरानी है। पहले सन्यासी व गृहस्थ मिल कर मसाने की होली का आयोजन करते थे बीच में कुछ वर्षों के लिए यह परम्परा बंद हा गयी थी। लगभग 30 साल पहले मणिकर्णिका घाट के लोग व श्मशानेश्वर महादेव मंदिर के लोगों ने मिल कर इस परम्परा को फिर शुरू किया है जो अब लगातार जारी है।