बताते चलें काशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण में वाराणसी की अदालत में सुनवाई चल रही है। इसी बीच स्वमी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की ओर से वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट में खुद को अतिरिक्त वादमित्र के रूप में नया पक्षकार बनाने की अर्जी दी गई थी। जिसपर ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर दोनाें ओर के पक्षकारों ने इसका विरोध किया।
काशी विश्वनाथ मंदिर के वादमित्र वकील विजय शंकर रस्तोगी का कहना था कि काशी विश्वनाथ मंदिर का वादमित्र उन्हें बनाया गया है और किसी अन्य को वादमित्र बनने का अधिकार नहीं है। इसलिए उनकी ओर से वादमित्र बनने के प्रार्थना पर आपत्ति करते हुए कहा गया कि एक वादमित्र के रहते दूसरा कैसे हो सकता है ? उधर अंजुमन इंतजामिया मसाजिद और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से भी इसपर आपत्ति की गई।
बीते छह मार्च को हुई सुनवाई में स्वामी अविमुकतेश्वरानंद की ओर से बहस करते हुए अधिवक्ता चंद्रशेखर सेठ और जीतनारायण सिंह ने अपनी दलील में अतिरिक्त वादमित्र बनाना न्यायोचित बताया। उनका कहना था कि उनके पास कई ऐसे साक्ष्य हैं जो प्रकरण के लिये अहम हैं।
उनकी अर्जी का विरोध करते हुए पक्षकारों की ओर से अर्जी को राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित बताया गया था। वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी की ओर से कहा गया था कि वन बाई वन (अतिरिक्त) के तहत वादमित्र बनने के लिये दी जा रही दलील कहीं से न्यायसंगत नहीं। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से कहा गया था कि एक वादमित्र होते हुए 30 साल बाद अतिरिक्त वादमित्र नहीं बनाया जा सकता। सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से अभय यादव व तौहीद खान ने भी अर्जी के विरोध करते हुए अपने तर्क दिये थे। कोर्ट ने इसपर फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए अविमुक्तेश्वरानंद की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया है। साथ ही पुरातात्विक सर्वेक्षण मामले में सुनवाई के लिये कोर्ट ने 15 मार्च की तारीख नीयत की है।