वाराणसी. काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी प्रकरण में द्वारिकापीठ शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के मुख्य शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को पक्षकार बनाया जाएगा या नहीं इसकी तस्वीर आठ मार्च को साफ हो सकती है। वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक) आशुतोष तिवारी की आदालत ने शनिवार को इसपर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। केस की अगली सुनवाई आठ मार्च को है।
शनिवार को हुई सुनवाई में अविमुक्तेश्वरानंद की प्रकरण में पक्षकर बनाए जाने की अर्जी का विरोध वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद, और सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से किया गया। स्वामी अविमुकतेश्वरानंद की ओर से बहस करते हुए अधिवक्ता चंद्रशेखर सेठ और जीतनारायण सिंह ने अपनी दलील में अतिरिक्त वादमित्र बनाना न्यायोचित बताया। उनका कहना थाा कि उनके पास कई ऐसे साक्ष्य हैं जो प्रकरण के लिये अहम हैं। उधर वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी की ओर से कहा गया कि ये अर्जी केवल राजनीतिक उद्देश्यों के लिये दी गई है। वन बाई वन (अतिरिक्त) के तहत वादमित्र बनने के लिये दी जा रही दलील कहीं से न्यायसंगत नहीं।
अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के अधिवक्ता का कहना था कि 30 साल बाद एक वादमित्र होते हुए अतिरिक्त वादमित्र नहीं बनाया जा सकता। उन्होंने भी कहा कि वादमित्र बनने की गुहार राजनीतिक उद्देश्य के लिये है। सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से अभय यादव व तौहीद खान ने भी इसका विरोध करते हुए अपने तर्क दिये।