आपके मन में हमेशा यह सवाल उठता होगा कि पर्यावरण दिवस के लिए 5 जून का दिन ही क्यों तय है। 1972 में संयुक्त राष्ट्र में 5 से 16 जून तक मानव पर्यावरण पर शुरू हुए सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र आम सभा और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के द्वारा कुछ प्रभावकारी अभियानों को चलाने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना हुई।
इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का जन्म हुआ तथा प्रति वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस आयोजित करके नागरिकों को प्रदूषण की समस्या से अवगत कराने का निश्चय किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाते हुए राजनीतिक चेतना जागृत करना और आम जनता को प्रेरित करना था। तबसे लेकर आज तक 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।
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बचे हुए प्राक्रतिक जंगलों को , उनकी सरहदों पर कंटीले तारों की बागड़ से घेरा जा सकता है। पेड़ों के छोटे से छोटे झुरमुट को भी इसी तरह बचाया जा सकता है। क्योंकि प्राकृतिक जंगलों का कोई विकल्प नहीं होता।
वृक्ष गणना अभियान चलाया जा सकता है। वृक्षों के तनों पर फ्लोरसेंट रंगों में अंकों की पट्टियां लगाई जा सकती हैं ताकि पता चल सके कि कहां कितने और किस प्रजाति के वृक्ष मौजूद हैं।
इस गणना कार्य हेतु रिमोट सेंसिंग की अत्याधुनिक तकनीक से धरती के चप्पे-चप्पे का “हरित मेप” बनाया जा सकता है।
बिजली और दूरभाष की समस्त लाइनों को जमीन के अन्दर संजाल बिछा कर फैला दिया जाए तो पेड़ों की केनोपी बेतरतीब कटिंग से बचाई जा सकती है जिससे उनका पूर्ण सौन्दर्य भी दिखाई दे, छाया भी अच्छी मिले और उनके फूल फल भी पूरी तरह लग पाएं।
बिजली और दूरभाष की समस्त लाइनों को जमीन के अन्दर संजाल बिछा कर फैला दिया जाए तो पेड़ों की केनोपी बेतरतीब कटिंग से बचाई जा सकती है जिससे उनका पूर्ण सौन्दर्य भी दिखाई दे, छाया भी अच्छी मिले और उनके फूल फल भी पूरी तरह लग पाएं।