वैसे भी प्रियंका के नेतृत्व में यूपी कांग्रेस लगातार भाजपा पर हमले कर रही है। यूपी सरकार पर वार करने का एक भी मौका वह नहीं चूक रही। हर मुद्दे को पहले लपकना फिर बीजेपी सरकार पर करारी चोट करना प्रियंका और उनकी टीम का एक मात्र लक्ष्य है। वो किसी राष्ट्रीय मुद्दे पर बात भी कम ही कर रही हैं। निशाना पूरी तरह से यूपी के सिंहासन पर है।
कांग्रेस ने मंगलवार को जिन 48 जिला व 3 शहर अध्यक्षों की पहली सूची जारी की है वह भी प्रियंका और यूपी कांग्रेस की रणनीति का खुलासा करता है। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि इस पूरी सूची पर गौर फरमाया जाय तो एक बात तो स्पष्ट है कि कांग्रेस के निशाने पर सपा-बसपा नहीं बल्कि केवल भाजपा है। राजनीतिक पंडित कहते हैं कि कांग्रेस की यह सोच हो सकती है कि अगर 2022 में सत्ता पर काबिज होने के लिए अगर कुछ सीटों की जरूरत पड़े तो सपा-बसपा से चुनाव बाद गठबंधन कर लिया जाए। इसी सोच के साथ सिर्फ भाजपा पर ही टार्गेट किया जा रहा है।
राजनीतिक पंडित बताते हैं कि इस 51 अध्यक्षों की सूची जारी की है उसे देखने से साफ लगता है कि कांग्रेस का सारा जोर उसी वोट बैंक पर है जिसे साध कर भाजपा ने पिछले 6 सालों में केंद्र से लेकर राज्य तक की सत्ता हासिल की है। कांग्रेस न मुसलमानों को विशेष तरजीह दे रही है न यादव और न ही दलितों को। उसके निशाने पर वो अदर बैकवर्ड हैं जो भाजपा के नए वोटबैंक के रूप में तब्दील हुए हैं।
यही वजह है कि 51 अध्यक्षों की सूची में मुसलमानों को इस बार कांग्रेस ने विशेष तरजीह नहीं दी है। 51 में महज 6 मुसलमान ही हैं जिन्हें जिला या शहर की कमान सौंपी गई है। सवर्णों की संख्या भी ज्यादा नहीं है। महज 8 ब्राह्मण हैं जिन्हें नेतृत्व सौंपा गया है। यादवों की संख्या भी गिनी चुनी ही है। लेकिन अदर बैकवर्ड भरे पड़े हैं। इसकी शुरूआत प्रियंका ने अजय कुमार लल्लू को प्रदेश की कमान सौंपते हुए की। उसके बाद जिला और शहर कमेटियों की कमान भी लोधी, कटियार, चौधरी, शाक्य, खटिक, कोरी, पासवान, गोंड, पटेल, निषाद आदि जातियों को सौंपी गई है।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि अगर प्रियंका और कांग्रेस अपनी इस रणनीति में सफल हो जाती है तो यह भाजपा के लिए बड़ा झटका होगा। ये ही वो वोटबैंक हैं जिनके दम पर भाजपा का वोट शेयर भी बढ रहा है। वो कहते हैं कि पहले भी ये ही वोटर रहे जिनके दम पर कांग्रेस अपना परचम लहराती रही है।