क्रिकेट की दीवानगी भारतीयों के सिर चढ़कर बोलती है। क्या बूढ़ा, क्या बच्चा सब इसके रंग में रंगे हुए हैं। संस्कृत विद्यालयों में पढ़ने वाले बटुक भी क्रिकेट के आकर्षण से अछूते नहीं। क्रिकेट का जादू इनके सिर भी चढ़ा पर यहां आते ही क्रिकेट का अंदाज ही बदल गया। परंपरा, नियम और अनुशासन के साथ जब बटुक क्रिकेट मैदान पर उतरे तो क्रिकेट का एक नया रूप ही सामने आ गया। संपूर्णानंद संस्कृत युनिवर्सिटी के मैदान पर और काशीवासियों ने नई तरह के क्रिकेट से परिचय प्राप्त किया। इसके बाद तो हर साल होने वाला यह आयोजन भारतीय संस्कृति और देवभाषा से जुड़ने के चलते काशी ही नहीं बल्कि देश भर के संस्कृत और क्रिकेट को पसंद करने वालों लिये आकर्षण बन गया है।
भारतीय संस्कृति और संस्कृत को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न स्तर पर प्रयास कर रही केन्द्र की मोदी सरकार ने भी जब इस अनोखे संस्कृत क्रिकेट के बारे में सुना तो वह भी इसके आकर्षण से बच नहीं सकी। पीएमओ का इसमें रुचि लेना आने वाले दिनों में इसके लिये एक सुनहरा समय लेकर आएगा। कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल ने कहा है कि विश्वविद्यालय परिसर में होने वाले इस आयोजन के जरिये हम भारतीय संस्कृति का विश्व स्तर पर प्रचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा क इस आयोजन को और भव्य बनाने की कोशिश जारी है। इस साल भी कोविड-19 के नयिमों का पालन करते हुए आयोजन कराया गया। आगे इसे और भव्य स्वरूप देने की योजना है। उन्होंने उम्मीद जतायी है कि पीएमओ द्वारा इसका संज्ञान लेने से छात्रों का और भला ही होगा।
संस्कृत में क्रिकेट की शुरआत को लेकर शास्त्रार्थ महाविद्यालय के प्राचार्य व संस्कृत क्रिकेट संयोजक डॉ. गणेश दत्त शास्त्री बताते हैं कि 10 साल इसे एक मैत्री मैच से इसकी शुरआत हुई। उस मैच ने आयोजकों को खुद बड़ा प्रभावित किया, जिसके बाद इसे संस्कृत कलेवर देने के लिये पूरी तैयारी की गई। संस्कृत के आचार्यों ने मेहनत से क्रिकेट की शब्दावलियों का संस्कृत वर्जन तैयार किया। चार साल पहले इसका नया खाका खींचा गया। अब पूरा खेल ही नहीं कमेंट्री भी संस्कृत में होती है।
कुछ खास क्रिकेट शब्दावलियों का संस्कृत वर्जन
टीम- दल
कप्तान- दल नायक
टॉस- मुद्रा क्षेपणम
स्टेडियम- दर्शक दीर्घा:
मैदान- क्रीणा क्षेत्रम
बैट्समैन- फलक धारक:
गेंदबाज- कंदुक प्रक्षेपक:
स्कोर: धावनांक परिणाम:/गणना
विकेट- त्रिदंडम
बल्ला- फलकम
गेंद- कंदुकम