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वाराणसी

महाशिवरात्रि विशेषः जानें क्या है शिव महात्म्य, भगवान शंकर को क्यों कहा जाता है सर्वहारा का देव

महाशिवरात्रि पर्व का विशेष महात्म्य है। सिर्फ काशी ही नहीं बल्कि दुनिया के किसी कोने में हों हिंदू परिवार इस दिन विशेष को शिवलिंग पर जल व बिल्व पत्र जरूर चढ़ाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। महाशिवरात्रि व्रत कथा में तो यहां तक वर्णित है कि अनजाने में भी इस दिन शिवलिंग पर जल व बिल्व पत्र चढ़ जाए तो उसे शिवलोक मिलता है। तो जानते हैं क्या है महात्म्य…

वाराणसीFeb 27, 2022 / 03:46 pm

Ajay Chaturvedi

महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा

महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा

वाराणसी. महाशिवरात्रि आज से दो दिन बाद पड़ रही है। काशी अपने आराध्य बाबा विश्वनाथ को पूजने, बाबा विश्वनाथ और गौरा के विवाह के जश्न की तैयारी में है। विश्वनाथ मंदिर से लेकर हर शिवालय में तैयारियां जोरशोर से चल रही हैं। लेकिन महाशिवरात्रि को लेकर इतनी तैयारी क्यों? आखिर क्या है वजह जानना जरूरी है तो यहां बता रहें कि आखिर इस दिन विशेष को लेकर हिंदू जनमानस आखिर इतना क्यों उतावला है…
महाशिवरात्रि का महात्म्य
महाशिवरात्रि व्रत कथा में वर्णित है कि प्राचीन काल में एक ब्याध (शिकारी) एक दिन शिकार करने के लिए जंगल गया। ढेर सारे जानवरों को मारा और उनके मांस को इकट्ठा करता रहा। इस बीच शाम ढल गई और चारों ओर अंधेरा हो गया। जंगली जानवरों की आवाज भी गूंजने लगी। ऐेसे में शिकारी शिकार का सारा माल एक पेड़ से बांध कर खुद भी उसी पेड़ की एक डाल पर चढ़ गया। लेकिन जंगली जानवरों का भय उसे लगातार सताता रहा। उसकी नींद उड़ गई। डर के मारे पूरा शरीर पसीने-पसीने हो गया। वह डर के मारे में उसका शरीर कांप रहा था। इसी तरह से उसने रात्रि के चारो प्रहर बिता दिए। शिकारी की कंपकी से पेड़ की डाल से पुराने पत्ते नीचे गिरते रहे और उसका पसीना भी बूंद-बूंद कर नीचे गिरता रहा। किसी तरह से सुबह हुई तो वो पेड़ से नीचे उतरा और शिकार का सारा मांस वगैरह लेकर घर लौट गया।
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नंदी-यमदूत संवाद
कुछ दिनों पर उसका निधन हो गया। निधन के पश्चात यमदूत उसे लेने आए तो देखा कि वहां पहले से ही नंदी महाराज मौजूद हैं। यमदूत ने नंदी महाराज को प्रणाम कर उनके यहां आने का मंतव्य जानना चाहा। इस पर नंदी महाराज ने बताया कि इस शिकारी को वो शिवलोक ले जाने आए हैं। इस पर यमदूत बोले कि ये कैसे संभव है। यह तो नितांत अत्याचारी, पापी और हत्यारा है। इसकी जगह तो नरक में है।
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नंदी ने बताया शिकारी कैसे है शिवलोक का भागी
यमदूत की बात सुन नंदी महाराज ने वो सारा वृतांत सुनाया जिसमें शिकारी शिकार के बाद पेड़ पर चढ़ा और रात भर पसीने-पसीने रहा। साथ ही बताया कि शिकारी जिस पेड़ पर चढ़ा था वो बेल का वृक्ष रहा और शिकारी की कंपकपी से वृक्ष से जो पत्तियां नीचे गिर रही थीं वो बिल्व पत्र थे। इतना ही नहीं उस बेल के वृक्ष के नीचे पुराना शिवलिंग था उसी पर ये पत्तियां गिर रही थीं और साथ में शिकारी के शरीर से जो पसीना निकल रहा था वो भी शिवलिंग पर गिरता रहा। और तो और जिस दिन ये सब हो रहा था उस दिन शिवरात्रि थी। ऐसे में शिवरात्रि को शिकारी से अनजाने में ही सही वो सब हुआ जो भगवान शंकर को प्रिय है। यानी शिवलिंग पर पसीना रूपी जल व बेल के वृक्ष से बिल्व पत्र भी चढ़ा। इस तरह अनजाने में ही शिकारी ने रात्रि के चारो प्रहर शिव की उपासना कर डाली। ऐेसे में वो तो शिवलोक का ही भागी हुआ।
शिव केवल कुलीनों के देव नहीं
इस तरह शिवरात्रि वर्त कथा से ये बोध होता है कि भगवान शिव न केवल कुलीनों के देवता नहीं हैं बल्कि वैभव उपचार प्रिया शिवगण के देवता हैं। यानी महाशिवरात्रि को अनजाने में भी भगवान शिव को जल व बिल्व पत्र चढ़ाने से वो सारे पुण्य लाभ हासिल हो जाते है जो पूरी तरह से संज्ञान में रहते हुए उस दिन कोई भक्त अपने आराध्य आदि देव की उपासना करने से मिलते हैं। ऐसे में जहां कही भी शिवलिंग हो वहां जलाभिषेक जरूर करना चाहिए और बिल्व पत्र भी चढ़ाना चाहिए।
शिव महिमा का अंत नहीं
शिव महिमा को लेकर यहां तक कहा गया है कि अगर नील गिरि पर्वत को सागर में घोल कर स्याही बना ली जाए और कल्पतरु को कागज बना कर माता सरस्वती शिव महिमा का बखान करें तो भी कम पड़ जाएगा।

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