scriptकाशी में गणेशोत्सव-जानें विश्वनाथ की नगरी में उनके पुत्र भगवान श्री गणेश के पूजन का क्या है महत्व | Know how many Lord Ganesha temples in Kashi and Their importance | Patrika News

काशी में गणेशोत्सव-जानें विश्वनाथ की नगरी में उनके पुत्र भगवान श्री गणेश के पूजन का क्या है महत्व

locationवाराणसीPublished: Aug 30, 2019 01:30:58 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

काशी में गणेशोत्सव- क्यों हैं यहां अनेक विनायक-काशी में कितने हैं प्रधान गणेश पीठ और विनायक–क्या है गणेश व विनायक की विशेषता और कार्य

भगवान श्री गणेश

भगवान श्री गणेश

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी


वाराणसी. धर्म नगरी काशी, श्री काशी विश्वनाथ की नगरी काशी जहां हर देव पूजे जाते हैं। हर देव से जुड़े पर्व धूम-धाम से मनाए जाते हैं। हर देवी-देवता का विग्रह है यहां। ऐसे में भोले नाथ और माता पार्वती के पुत्र प्रथमेश गणेश भला कैसे छूट सकते हैं। इस काशी में गणेश के एक-दो नहीं बल्कि 67 पीठ है। इसमें 11 गणेश पीठ और 56 विनायक पीठ है। इन सभी का अलग-अलग महत्व है। अलग-अलग छवि और कार्य बताए गए हैं। महाराष्ट्र के बाद काशी ही है जहां पूरे उत्साह के साथ गणेशोत्सव मनाया जाता है। मां दुर्गा और मां सरस्वती पूजन की तरह गणेश पूजा पंडाल सजाए जाते हैं। अब इसकी तैयारी अंतिम दौर में है। अगले महीने की दूसरी तारीख यानी 2 सितंबर को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी और उसी दिन से शुरू हो जाएगा गणेश उत्सव।
गणेश उत्सव से नजदीक से जुड़े और काशी में गणेश पूजन क्यों के एक मात्र ज्ञाता गणेश भक्त डॉ उपेंद्र विनायक सहस्त्रबुद्धे, पत्रिका से बातचीत में बताते हैं, काशी में क्यों हैं अनेक विनायक? जवाब है काशी में गणेश-विनायक के प्रधान 67 पीठ हैं। इन पीठों में 11 गणेश और 56 विनायक पीठ हैं। इनके अतिरिक्त काशी में चतुर्थ विनायक यात्रा, पंचामृत विनायक यात्रा तथा अष्ट प्रधान विनायक यात्रा का संदर्भ उल्लेख मिलता है। लेकिन अन्य यात्राओं के नाम वैविध्य में श्री स्वरूप स्थान में एकरूपता सामने आती है। अष्ट विनायक यात्रा में प्रथम स्थान यात्रा निर्देश सिद्धि विनायक को प्राप्त है जबकि 56 विनायक के प्रथम आवरण में आठवां स्थान निर्देश भी इसी सिद्धि विनायक रूप को प्राप्त है। इसी प्रकार 56 विनायक के यात्रा क्रम में तृतीय आवरण में चतुर्थ स्थान निर्देश पंचाएम विनायक का है, चतुर्थ विनायक यात्रा निर्देश क्रम में है और चतुर्थ विनायक यात्रा निर्देश में कपर्दीश्वर गणेश नाम से ही यही का स्थान निर्देश प्राप्त होता है। इसी प्रकार से दूसरे आवरण में तीसरे नंबर पर शालटंक विनायक का स्थान निर्देश है। अन्य सभी संदर्भो में शूलटंक विनायक (शूलटंकेश्वर) का रूप ही शालटंक विनायक है। बड़ा गणेश का वर्णन 56 विनायक यात्रा क्रम में तीसरे आवरण में प्रथम स्थान पर वक्रतुंड विनायक के रूप में मिलता है और अष्ट प्रधान विनायक यात्रा में संदर्भ स्थान पर भी यही स्थान है।
काशी के 56 विनायकों में शामिल चतुर्थ से अंतिम आवरण में मान्यता प्राप्त विनायकों की स्थिति में भी चतुर्थ आवरण में उपस्थित क्षिद्र प्रसाद विनायक की मान्यता अष्ट विनायक यात्रा क्रम में चौथे स्थान यथावत नाम-स्थान के साथ है। चतुर्थ विनायक यात्रा में मान्यता प्राप्त भगीरथ गणाध्यक्ष और अष्ट विनायक यात्रा के क्रम में त्रिसंध्य विनायक के नाम भेद है लेकिन मान्यता प्राप्त नाम रूप में फुटहा गणेश के रूप में इनका स्थान मान्यता व रूप मान्यता यथावत अर्थात समान है। यात्रा क्रम में इनका नाम भिन्न है। सातवें आवरण में आशा विनायक शामिल हैं, अष्ट विनायक यात्रा क्रम में तीसरे स्थान पर आशा विनायक की ही मान्यता है। इसी प्रकार मणिकर्णिका विनायक और अष्ट विनायक यात्रा के सिद्धि विनायक में स्थान भेद नहीं है।
अष्ट विनायक में ज्ञान विनायक में और 56 विनायक के अंतिम आवरण में शामिल विनायक में कोई भेद नहीं है। न नाम भेद न रूप भेद न स्थान भेद। सातवें आवरण में शामिल गणनाथ विनायक और ढुंढिराज विनायक में भी स्थान के आधार पर एकरूपता पायी जाती है। ऐसा ही अविमुक्त विनायक के संदर्भ में भी है। 56 विनायक यात्रा क्रम में इसकी मान्यता उपलब्ध ध्वंसावशेषों में मान्यता है लेकिन अष्ट विनायक यात्रा क्रम में इसकी मान्यता उपरोक्त स्थान के साथ ही विश्वनाथ मंदिर (वर्तमान) के नैऋत्य कोण में मानी जाती है।
वह बताते हैं कि वास्तव में चतुर्थ विनायक यात्रा, पंचामृत विनायक यात्रा और अष्ट प्रधान विनायक यात्रा के साथ ही 56 विनायक के क्रम में वर्तमान में जो नाम भेद के बाद भी स्थान भेद का अभाव है, ऐसा होना नहीं चाहिए। सभी यात्राएं करने के स्पष्ट संदर्भ और निर्देश मिलते हैं। इन सबकी अलग-अलग स्थिति होने पर काशी और चतुर्दिक परिक्रमा मार्ग पर कुल मिलाकर 74 गणेश- विनायक मंदिर होने की स्थिति बनती है। लेकिन प्रमुखतः 67 विनायक-गणेश के संदर्भ में ही मिलते है और एक स्थान संभवतः सबको मिला कर ही 74 विनायक-गणेश के मंदिर स्थिति का वर्णन मिलता है।
अनेक विनायकों के नाम तथा स्थान ही उसकी काशी की रक्षा की भूमिका स्पष्ट करते हैं। गणेश का विनायक नाम ही यह प्रमाण है कि गणेश देव सेना के नायक रूप में ही विनायक और काशी की व्यवस्था, रक्षा और सुचारु व्यवस्था में स्वंय ढुंढिराज ने विनायक रूप में कार्य-व्यवहार दायित्व का विभाजित निर्धारण करने के पश्चात उसका दायित्व यथास्थान-यथारूप स्थापित किया। यही स्थान रूप में अनंत विनायक आधीन स्थानीय स्तर पर कार्यगत विनायक रूप में रूपांतरित हो गए। संभव है कि ऐसी स्थिति में चतुर्थ विनायक जो चार दिशाओं के रक्षक हैं और अष्ट विनायक जो आठ दिशाओं के आधिपति हैं, इनको स्थानीय स्तर पर दो या अधिक दायित्व सौंपे गए हैं और इसी कारण कई स्थान दो-दो यात्राओं के संदर्भ में शामिल किए जाते हैं।
अनेक विनायकों के संदर्भ में जब उनका कार्य दायित्व अनेक नाम से ही स्पष्ट हो जाता है और अनेक स्थितियां ऐसी भी हैं जहां वर्तमान विग्रह और स्थान संदर्भ के विषय में अतिरिक्त सूक्ष्म और शोधपूर्ण चिंतन आवश्यक प्रतीत होत है। पंचामृत विनायक के पांचों स्वरूपों से ही उनका कार्य क्षेत्र संरक्षण दायित्व स्पष्ट है। लेकिन इनमें से कई एक स्थिति पंचामृत की आधिपति स्थिति स्पष्ट नहीं है। इनको 56 विनायक, चतुर्थ विनायक, अष्ट विनायक यात्रा क्रम में भी शामिल नहीं किया गया है। दुर्ग विनायक का दायित्व दुर्ग की रक्षा से संबद्ध होना प्रतीत होता है। इसी तरह देहली विनायक, काशी में प्रवेश की सुरक्षा, (यह स्थान पंचक्रोशी मार्ग पर है, जो काशी का वाह्य आवरण है।), पाशपाणि विनायक-दंडाधिकारी, अविमुक्त विनायक- अविमुक्तेश्वर की निजी सुरक्षा, ज्ञान विनायक- काशी की ज्ञान संपदा (ब्राह्मण वेदपाठी आदि) का संरक्षण, गणनाथ विनायक-गणेश के प्रमुख स्वरूप और काशी के समस्त गणेश विनायक स्वरूपों पर नियंत्रण का दायित्व (गणों के नाथ अर्थात गणनाथ)। इसके अतिरिक्त चतुर्थ विनायकों में शामिल विनायकों में भागीरथी गणाध्यक्ष, भागीरथी अर्थात गंगा की सुरक्षा और बिंदु विनायक-बिंदु माधव की निजी सुरक्षा और काशी में गंगा के उत्तर वाहिनी स्वरूप के केंद्र की सुरक्षा भी संभव है।
चतुर्थ विनायक यात्रा
1-भागीरथी गणाध्यक्ष- लाहौरी टोला, मकान नंबर-1/40 फुटहा गणेश
2- हरिश्चंद्र विनायक-संकठाघाट के पास, सीके 7/166
3- कपर्दीश्वर गणपति- पिशाचमोचन सी 21/40
4- बिंदु विनायक- बिंदु माधव मंदिर पंचगंगा घाट के 22/36

पंचामृत विनायक यात्रा
1- दुग्ध विनायक -दूध विनायक- के 23/66
2- दधि विनायक- —– —– के 23/65
3-घृत विनायक- —— —– के 23/56
4- मधु विनायक- —— —– के 23/63
5- शर्करा विनायक- —– —– के 28/53
अष्ट विनायक यात्रा (अष्ट प्रधान विनायक यात्रा)
1- सिद्धि विनायक- अमेठी मंदिर मणिकर्णिका घाट के निकट
2- त्रिसंध्य विनायक- लाहौरी टोला
3- आशा विनायक- मीरघाट
4- क्षिप्र प्रसाद विनायक- पितरकुंडा
5- ढुंढ़िराज विनायक- अन्नपूर्णा मंदिर मार्ग
6- अविमुक्त विनायक- ज्ञानवापी क्षेत्र ध्वंसावशेष में तथा विश्वनाथ मंदिर के नैऋत्य कोण में
7-वक्रतुंड विनायक- बड़ा गणेश लोहटिया, राणा महल, चौसट्टी घाट पर सरस्वती विनायक नाम से
8- ज्ञान विनायक- गणनाथ विनायक के नाम से खोजवां बाजार
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