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कहीं आपको भूलने की बीमारी (Dementia) तो नहीं, हो जाएं सावधान

locationवाराणसीPublished: Dec 15, 2019 09:06:09 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

-कैंसर से ज्यादा घातक है ये बीमारी (Dementia)- 85 फीसद लोगों ने ठीक न होने का है खतरा-60 साल या उसके ऊपर के लोग एक बार सिटी स्कैन जरूर कराएं-ऐसे रोगियों को ज्यादा पुरानी बातें तो रहती हैं याद पर तत्काल की बातें जाते हैं भूल

डिमेंशिया से पीड़ित मरीज (प्रतीकात्मक फोटो)

डिमेंशिया से पीड़ित मरीज (प्रतीकात्मक फोटो)

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. देश की बड़ी आबादी के लिए भूलने की बीमारी (Dementia) कैंसर से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है। खास तौर पर मजदूर और किसानों को इससे बचाना ज्यादा जरूरी है। यह बेहद खतरनाक है, क्योंकि इसमें दिमाग के न्यूरो सेल मरने लगते हैं और एक बार दिमाग के इन सेल्स के मृत होने के बाद उन्हें जिंदा नहीं किया जा सकता। ऐसे में रोगी जीवित तो रहता है पर उसे कुछ भी याद नहीं रहता है। यहां तक कि मल-मूत्र त्याग पर भी उसका नियंत्रण जाता रहता है। कई बड़े-बड़े राजनेता मसलन जार्ज फर्नांडीज, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी इसी रोग से पीड़ित रहे।
भूलने की बीमारी यानी (Dementia) एक मनोरोग है और यह अत्यंत घातक है। बता दें कि पत्रिका ने मनोरोग के विभिन्न प्रकारों पर श्रृंखला शुरू की है। इसके तहत हम नित्य बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के जाने-माने मनोचिकित्सक प्रो संजय गुप्ता से बात करते हैं। प्रस्तुत है dementia रोग के बाबत हुई बातचीत के अंश…
प्रो गुप्ता ने बताया कि भूलने की बीमारी शिक्षित वर्ग में तो पकड़ में आ जाती है, ऐसे शिक्षित रोगी या तो खुद मनोचिकित्सक के पास चले आते हैं या उनके परिवार के लोग उन्हें लेकर चले आते हैं। लेकिन देश की बड़ी आबादी जिनमें किसान और मजूदर आते हैं उन्हें या उनके परिवार को इस रोग का पता नहीं चल पाता है। ऐसे रोगी चिकित्सक के पास तब आते हैं जब रोग बहुत बढ़ जाता है। ऐसे रोगियों को ठीक कर पाना आसान नहीं होता या यूं कहें कि उनका सटीक उपचार संभव नहीं तो गलत नहीं होगा, क्योंकि दिमाग के न्यूरो सेल्स अगर एक बार मृत हो गए तो उन्हें दोबारा जिंदा नहीं किया जा सकता।
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उन्होंने बताया कि ऐसे रोगियों के लिए सिर्फ दवा ही एक मात्र इलाज है इसके अलावा किसी तरह की थिरैपी काम नहीं करती। प्रो गुप्ता ने बताया कि यादाश्त दो तरह की होती है, एक शार्ट टर्म और दूसरी लॉंग टर्म। ऐसे रोगियों को लांग टर्म मेमोरी तो रहती है पर शार्ट टर्म मेमोरी का लॉस होने लगता है। तात्कालिक बातों यानी एक-दो दिन पूर्व की बातें याद नहीं रहती हैं। यहां तक कि वह अपना घर भी भूल सकता है। ग्रामीण इलाकों में ऐसा पाया जाता है कि ऐसे रोगी दूसरे गांव में चले जाते हैं, वहां पूछने पर वे अपना पता भी नहीं बता पाते। ऐसे लोगों को शाम ढलने के वक्त या अंधेरे में ज्यादा दिक्कत होती है। बताया कि ज्यादा देर होने पर ऐसे रोगियों का मल-मूत्र त्याग से नियंत्रण भी समाप्त हो जाता है। बताया कि ऐसे रोगी अक्सर बहकी-बहकी बातें करने लगते हैं। सामान्यता जिन्हें क्रोध नहीं आता वो क्रोधित होने लगते हैं और बात-बात पर झगड़ने वाला शांत हो जाता है।
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उन्होंने बताया कि आम तौर पर 60 साल से ऊपर के लोगों में भूलने की बीमारी होती है, लेकिन अक्सर लोग इन्हें ‘सठियाना’ मान लेते हैं जो गलत है। अगर किसी को तात्कालिक बातें भूलने लगे तो उसे तत्काल मनोचिकित्सक के पास ले जाना चाहिए वह भी जेरियाट्रिक मनोचिकित्सक के पास। बताया कि बीएचयू में डॉ गुप्ता के अधीन 20 साल से इस रोग पर काम हो रहा है।
प्रो गुप्ता ने बताया कि दिमाग में हिप्पो कैंपास, कॉर्टेक्स, एमेग्डिला नामक रसायन व सेल्स एक-एक कर डैमेज होने लगते हैं। इससे 50 फीसद तक न्यूरॉन मृत हो जाते हैं। इससे दिमाग काम करना बंद देता है। बताया कि यह रोग दिमागी चोट के कारण भी हो सकता है, अगर ऐसा है तो 15 फीसद रोगियों को बचाया जा सकता है। इसके लिए सबड्यूरल हेमा टोमा, नार्मल प्रेशर हाइड्रोटेफेलेस, थायरॉयड हार्मोन की कमी और विटामिन B-12 की कमी से होता है। लिहाजा इन सबका पैथॉलॉजिकल परीक्षण कराया जाता है। थायरॉयड हार्मोन की कमी और विटामिन B-12 की कमी को तो आसानी से दूर किया जा सकता है। लेकिन अन्य दो मामलों में स्थिति गंभीर हो जाती है।
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बताया कि किसी के व्यक्तित्व में परिवर्तन दिखे तो मनोचिकित्सक के पास तत्काल ले जाएं। कहा कि यह रोग, शराब का सेवन करने वालों या ऐसे व्यक्ति जिन्हें नींद न आने की दिक्कत हो उनके इसकी चपेट में आने की संभावना ज्यादा रहती है। उन्होंने बताया कि ऐसे रोगियों की एमआरआई और सिटी स्कैन करा कर दिमाग के सेल्स की स्थिति का पता लगाया जाता है। फिर दवाएं दी जाती हैं। दवाएं अब पर्याप्त मात्रा में आ चुकी हैं। लेकिन रोगी समय से मनोचिकित्सक के पास पहुंचे तो ही उसे बचाया जा सकता है। ऐसे रोगियों को 80 फीसद तक ठीक किया जा सकता है।
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