वाराणसी

राजनीति का सबसे मजबूत समीकरण तोड़ने वाले महेन्द्र नाथ पांडेय को मोदी सरकार में मिला अहम पद

45 साल पहले कहां पता था कि कभी वो दिन भी आयेगा जब इसी शहर से जीतकर कोई सांसद देश का पीएम बनेगा और उस सरकार में वो खुद मंत्री रहेंगे

वाराणसीMay 31, 2019 / 05:30 pm

Ashish Shukla

राजनीति का सबसे मजबूत समीकरण तोड़ने वाले महेन्द्र नाथ पांडेय को मोदी सरकार में मिला अहम पद

वाराणसी. पढ़ाई के दिनों से ही राजनीति में रूचि रखने वाले महेन्द्र नाथ पांडेय को 45 साल पहले कहां पता था कि वो जिस बनारस के एक इंटर कालेज से अपने कैरियर की शुरूआत कर रहे हैं वही बनारस और महेन्द्र एक दिन राजनीति के केन्द्र बन जायेगें। 45 साल पहले कहां पता था कि कभी वो दिन भी आयेगा जब इसी शहर से जीतकर कोई सांसद देश का पीएम बनेगा और उस सरकार में वो खुद मंत्री रहेंगे।
जी हां मूल रूप से गाजीपुर जिले के पखनपुर गांव में 1957 को जन्मे महेन्द्र नाथ पांडेय की शिक्षा दीक्षा बनारस में ही हुई वो 1973 में बनारस के सीएम एंग्लो बंगाली इंटर कॉलेज में अध्यक्ष चुने गए थे। 1975-76 एवीबीपी के वाराणसी जिला संयोजक रहे। 1978 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से भी जुड़े। 1978 में ही वह बीएचयू छात्रसंघ के महामंत्री बने। पहली बार डॉ पांडेय 1991 में गाजीपुर जिले के सैदपुर विधानसभा सीट से भाजपा के विधायक चुने गए थे। 1996 में भी दोबारा सैदपुर का प्रतिनिधित्व किया।
डा. पांडेय उत्तर प्रदेश विधान मंडल के मंत्री रहे। भाजपा-बसपा गठबंधन सरकार में आवास एवं नगर विकास राज्यमंत्री, मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के कार्यकाल में नियोजन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहे। . प्रदेश में राजनाथ सिंह व स्वर्गीय रामप्रकाश गुप्ता के कार्यकाल में पंचायती राज्य मंत्री रहे।
2014 में पांडेय को चंदौली लोकसभा सीट से भाजपा ने उम्मीदवार बनाया। उन्होने जीत दर्ज किया। मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री का ओहदा भी मिला। इधर यूपी में भाजपा की सरकार आने के बाद भाजपा प्रदेशाध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या जब डिप्टी सीएम बने तो प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी खाली हो गई। पार्टी में मंथन शुरू हो गया कि अब किसके हाथ में कमान दी जाय़। भाजपा के लिए सबसे मुफीद चेहरा महेन्द्र पांडेय लगे जो सरकार और संगठन में सामंजस्य स्थापित कर सकते थे। ऐसे में उन्हे भाजपा की कंमान दे दी गई।
तोड़ा सबसे बड़ा राजनीतिक समीकरण

इधर महेन्द्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये रही कि यूपी में 2014 का परिणाम कैसे दोहराया जायेगा। ये काम उनके लिए और भी मुश्किल तब हो गया जब प्रदेश में सपा-बसपा और रालोद का गठबंधन हो गया। कहा जाने लगा कि अगर भाजपा को रोकने में ये दल कामयाब हुए तो केन्द्र में मोदी को भी रोका जा सकता है। लेकिन महेन्द्र ने अपने संगठन को बूथ स्तर पर पूरी तरह से मजबूत किया। उम्मीदवारों के चयन की बात हो या विरोधियों के पैंतरे कुंद करने हो उन्होने हर मोर्चे पर भाजपा को पीछे नहीं हटने दिया। परिणाम ये रहा कि बीजेपी ने गठबंधन के बावजूद शानदार प्रदर्शन करते हुए सत्ता पर काबिज किया। अब इस नेता को मोदी सरकार में कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय दिया गया है।

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