बता दें कि पिछली बार भी जब संगठनात्मक चुनाव हुए थे तो बनारस में जिला कमेटी औरंगाबाद हाउस के वारिश राजेशपति त्रिपाछी के पास गई थी और शहर की कमेटी पूर्व सांसद डॉ राजेश मिश्र के पाले में। इसके तहत ही प्रजानाथ शर्मा को जिलाध्यक्ष बनाया गया था जबकि सीता राम केशरी को महानगर का अध्यक्ष बनाया गया। लेकिन सूत्र बताते हैं कि यूपी विधानसभा चुनाव के वक्त से ही राजेश मिश्र और सीताराम केशरी के रिश्ते में खटास आ गई थी। उसके बाद से ही यह माना जा रहा था कि उनके पर कतरे जाएंगे। लेकिन केवल वक्ता का इंतजार था। इसी बीच निकाय चुनाव की घोषणा हो गई। ऐसे में यह सोच कर कोई छेड़छाड़ नहीं की गई कि प्रधानमंत्री के क्षेत्र में चुनाव कहीं गड़बड़ा न जाए। लेकिन जिस तरह से पार्षद प्रत्याशियों का चयन किया गया और जिस तरह से बागियों की भरमार हो गई। उसके बाद से ही एक बार फिर से लगने लगा था कि भले ही चुनाव तक सीताराम को न हटाया जाए लेकिन चुनाव बीतते ही उनका पत्ता कटना तय है। लेकिन प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने चुनाव के बीच ही कार्यवाहक अध्यक्ष की तैनाती करके अपने रुख स्पष्ट कर दिया है।
हालांकि यह भी बता दें कि पार्टी में संगठनात्मक चुनाव का दौर भी जारी है। गुजरात, हिमांचल और यूपी में हो रहे निकाय चुनाव के चलते ही कोई परिवर्तन नहीं किया जा रहा है। हालांकि कई जिलों में जिला व महानगर में कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किये जा चुके हैं। बस बनारस ही बचा था जहां पदाधिकारियों को लेकर लंबे अरसे से विरोध चल रहा था। लेकिन अब यहां भी जिस तरह से पार्टी ने निकाय चुनाव के बीच ही मणिंद्र नाथ मिश्र को यह दायित्व सौंपा है उससे कयास लगाए जाने लगे हैं कि हो न हो जल्द ही जिलाध्यक्ष पद पर भी कोई कार्यवाहक की नियुक्ति हो जाए। हालांकि एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि महानगर अध्यक्ष सीता राम केशरी खुद उम्मीदवार हैं ऐसे में चुनाव संचालन में दिक्कत आ सकती है लिहाजा कार्यवाहक अध्यक्ष की तैनाती की गई है। लेकिन बता दें कि सीताराम केशरी न केवल पार्षद प्रत्याशी हैं बल्कि उन्हें शहर दक्षिणी का प्रभारी भी बनाया गया है।