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मेडल की चाह पर खिलाड़ियों की सेहत से बेपरवाह

locationवाराणसीPublished: Jan 14, 2018 01:43:08 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

पीएम, सीएम किसी से नहीं मिली मदद और खेल राज्य मंत्री के शहर में बीमारी से जिंदगी की जंग हार गई संगीता।

मास्टर एथलीट व क्रिकेकट संगीता मिश्रा

मास्टर एथलीट व क्रिकेकट संगीता मिश्रा

वाराणसी. खेल की दुनिया भी कितनी अजीब है। एक खेल और खेल का स्तर ऐसा कि दुनिया के सर्वाधिक पैसो वालों में गिनती होती है खिलाड़ी की। लेकिन उसी देश में किसी अन्य खेल और राज्य स्तरीय या राष्ट्रीय खिलाड़ी की इतनी भी हैसियत नहीं कि वह अपना समुचित इलाज करा सके। वह भी तब इस देश में मुख्यमंत्री से लगायत प्रधानमंत्री तक के पास एक ऐसा कोष होता है जिसका उपयोग जरूरतमंदों के लिए किया जा सकता है। यह कोष जिलाधिकारी के पास भी होता है। लेकिन आलम यह है कि उसके लिए भी जुगाड़ की जरूरत होती है। सबको वह सुविधा मुहैया नहीं हो पाती। कम से कम मास्टर्स एथलीट व विश्व रिकार्डधारी क्रिकेटर संगीता मिश्रा के साथ तो ऐसा ही हुआ। संगीता की किडनी खराब थी। वह पिछले दो साल से लगातार जीनव से संघर्ष कर रही थीं। अक्टूबर 2016 में तो वह 15 दिन तक कोमा में थीं। तब उन्हें देखने के लिए शहर के एक विधायक भी पहुंचे थे। संगीता की बड़ी बहन डॉ संध्या ओझा ने अपनी प्यारी छोटी बहन के इलाज के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक से गुहार लगाई। वह भी दो साल पहले। लेकिन पिछले छह जनवरी को पीएम के संसदीय क्षेत्र के राम कृष्ण मिशन अस्पताल में संगीता ने अंतिम सांस ली तब तक केंद्र व राज्य सरकार के सहायता के नाम पर फूटी कौड़ी नहीं आई। संगीता के पति करीब 24 साल पहले ही इस दुनिया से विदा हो चुके हैं। अब तो उन दोनों की निशानी तेजस्वी आनंद है जिसने अभी हाल ही में बंगलूरू से स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। पहड़िया के हरिनारायण बिहार कालोनी निवासी संगीता की बड़ी बहन डॉ संध्या को अब चिंता है तो तेजस्वी की, कि उसके साथ कुछ अच्छा हो जाए। उसे कोई काम मिल जाए। यह हाल है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र का जहां सूबे के एक खेल मंत्री भी रहते हैं। ये हादसा तब हुआ जब क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले संचिन तेंदुलकर सोशल मीडिया पर हर अभिभावक से अपने बच्चे को खिलाड़ी बनाने की दरख्वास्त कर रहे हैं।
मास्टर एथलीट व क्रिकेटर संगीता मिश्रा
पत्रिका ने जब अग्रसेन पीडी कॉलेज में असोसिएट प्रोफेसर डॉ संध्या से संगीता के बारे में जानकारी के लिए फोन किया तो संगीता का नाम सुनते ही डॉ संध्या का गला भर आया, वो विस्तार से बिना रुके सिलसिलेवार संगीता की एक-एक बात शेयर करने लगीं, बोली नहीं निकल पा रही थी पर संगीता से जुड़ी हर बात जैसे उनके आंखों के सामने तैर रही थीं। उन्होंने बताया कि संगीता केवल एथलीट नहीं थी, वह तो क्रिकेट कोच जी आर गोयल की शिष्या भी थी। उसने जी आर गोयल द्वारा 1981-82 में डॉ संपूर्णानंद स्पोर्ट्स स्टेडियम में जब विश्व रिकार्ड कायम करने के लिहाज से लगातार 144 घंटे क्रिकेट खेलने का कीर्तिमान बनाने का सपना देखा तब संगीता भी उस टीम की सदस्य रही। यह दीगर है कि दुर्भाग्यवश उस विश्व रिकार्ड को मान्यता नहीं मिल पाई लेकिन बनारस के तब के तकरीबन सभी युवा क्रिकेटरों ने उसमें भाग लिया था। बारिश में भी लगातार 144 घंटे तक क्रिकेट खेला गया था, पर जाने क्यों उसे विश्व रिकार्ड नहीं माना गया। इसकी तकलीफ जी आर गोयल को भी रही। लेकिन उस क्रिकेट मेले ने तब की मीडिया में खूब शोहरत हासिल की थी। होली के ठीक पहले जब 144 घंटे पूरे हुए थे तब स्टेडियम में खूब अबीर गुलाल उड़ा था, ढोल नगाड़े की थाप पर खिलाड़ियों ने डांस किया था। तब चाहे सुधा तिवारी रही हों या रणजी खिलाड़ी आमोद शर्मा, अरविंद श्रीवास्तव, पीएन सिंह राणा, फुटबालर लक्ष्मण यादव सभी उस क्रिकेट मेले के हिस्सेदार थे। उस टीम की सदस्य रही संगीता। इतना ही नहीं जी आर गोयल ने एक अन्य अनोखा प्रोयग किय़ा था वह 7 ए साइड क्रिकेट भी खिलवाया करते थे जिसमें लड़के-लड़कियां दोनों एक साथ खेलते थे उस प्रतियोगिता का भी हिस्सा रहीं संगीता।
क्रिकेट के साथ संगीता 200 मीटर की धाविका थी। राज्य स्तर पर उन्होंने कई मेडल जीते। बाद में जब वह बेसिक शिक्षा परिषद से जुड़ीं और सहायक अध्यापिका बनीं तो मास्टर्स एथलेटिक्स में उन्होंने अपना नाम रोशन किया। दो साल पहले ही उन्होंने चेन्नई में हुई नेशनल मास्टर्स एथलेटिक्स में हिस्सा लिया। लेकिन उनका खेल के प्रति यह जज्बा ही था कि उन्हें पता नहीं चला कि कब उनकी किडनी खराब हो गई। वह तो अक्टूबर 2016 में अचानक उन्हें कुछ तकलीफ शुरू हुई तो उसे साझा किया बड़ी बहन डॉ संध्या से। बड़ी बहन को फिक्र हुई वो लगातार उसे लेकर एक से दूसरे डॉक्टर के पास दौड़ती रहीं। अंत में महमूरगंज स्थित एक नर्सिंग होम में भर्ती कराया। वहां संगीता 15 दिनों तक कोमा में रहीं। सांसें कभी टूटती सी नजर आतीं पर उनका जीवन के प्रति जज्बा और इकलौते बेटे तेजस्वी की परवरिश की चिंता थी कि वह चैतन्य हो जातीं। अस्पलात में बेड पर लेटे हुए भी वह विक्रट्री का निशान दिखाती रहीं अपनीं अंगुलियों से।
बीमार संगीता को देखते विधायक रवींद्र जायसवाल
इसी बीच डॉ संध्या ने संगीत की तरफ से पीएमओ और सीएमओ के इलाज में मदद के लिए पत्र लिखा, मदद मिलनी तो दूर उस पत्र का जवाब तक नहीं आया आज तक जबकि संगीता को चिर निद्रा में लीन हुए आज आठ दिन बीत गए। यही नहीं डॉ संध्या ने बताय कि हर दूसरे दिन संगीता का डायलसिस होता रहा। इसके खर्च के लिए वह अंतिम दम तक स्कूल जाती रही। वह रहती थीं पहड़िया के हरिनारायण बिहार कालोनी में और पढ़ाने के लिए जाना पड़ता था उदयपुर हरहुआ प्राथमिक विद्यालय में। संध्या बताती हैं कि वह सिर्फ इसलिए स्कूल जाती रही कि सैलरी मिलेगी तो ही तो डायलसिस हो पाएगी। ये है एक खिलाड़ी का जज्बा। लेकिन वाह रे शासन और प्रशासन, जो इन खिलाड़ियों से अच्छे प्रदर्शन की लालसा तो रखते है पर सेहत खराब हो जाए तो मदद करना तो दूर उससे लगातार ड्यूटी भी कराते हैं। मानवता को तार-तार कर देने वाली घटना बताते हुए डॉ संध्या का गला फिर रुंध जाता है कहती हैं भैया, पिछले विधानसभा चुनाव या नगर निगम चुनाव से पहले जब मतदाता पुनरीक्षण का अभियान चला तो संगीता को बीएलओ बनया गया। उसने आग्रह किया, अपने स्वास्थ्य की जानकारी दी लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई तो वह बेहद खराब स्वास्थ्य के बीच उसने उस दायित्व का भी निर्वहन किया। यह सब तब हुआ जब कि समूचा प्रशासन, शिक्षा व खेल विभाग यह जानता रहा कि संगीता की क्या हालत है। यह ज्यादा पुरानी नहीं इसी एक जनवरी 2018 को संगीता ने बीएलओ ड्यूटी से मुक्ति के लिए आग्रह किया था जिसे प्रशासनिक अफसरों ने सिरे से खारिज कर दिया। वो संगीता जिसने छात्र जीवन में इसी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में उड़न परी पीटी ऊषा के दौड लगाई। लेकिन जिंदगी की दौड़ में वह जमाने की संवेदनहीनता से तो हार ही गई साथ ही उस ऊपर वाले को भी उस पर कोई रहम नहीं आई। डॉ संध्या बताती हैं कि अब तो बस हम सभी छह भाई बहनों की एक ही चिंता है कि तेजस्वी अपने पैरों पर खड़ा हो जाए।
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