बता दें कि मायावती ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए इस बार अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया है। यह उनका यूपी की सियासत में तीसरा चुनाव पूर्व गठबंधन है। इससे पहले उन्होंने पहली बार 1993 में मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया था। उस वक्त 1991 में 9.44 प्रतिशत वोट शेयर वाली बसपा ने 1993 में सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। उस गठबंधन के परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश में 12 विधायकों वाली बसपा के 67 विधायक हो गए और वोट शेयर 11.12 फीसदी तक पहुंच गया। लेकिन प्रभावशाली भूमिका वाले मुलायम की नवगठित सपा को 17.94 प्रतिशत वोट मिले थे। यह दीगर है कि 19गठबंधन बहुत दिनों तक टिक नहीं पाया और 1995 गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा से गठबंधन टूटा गया।
गेस्ट हाउस कांड के बाद जब सपा-बसपा का गठबंधन 1995 में टूटा तो अगले साल यानी 1996 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने कांग्रेस से हाथ मिलाया। इस बार बसपा को जबरदस्त फायदा हुआ। इसके उलट कांग्रेस औंधे मुंह गिर गई। आलम यह रहा कि 1991 में 46 सीटें और 17.32 प्रतिशत वोट शेयर तथा 1993 में 28 सीटें और 15.08 प्रतिशत वोट शेयर वाली कांग्रेस का वोट शेयर बसपा ने अपनी तरफ खींच लिया। यह अलग बात है कि 1996 में बसपा की सीटें तो 1993 के समान ही 67 ही रहीं लेकिन उसने कांग्रेस का बेस वोट शेयर अपनी ओर खींच लिया। बसपा को कांग्रेस से गठबंधन में 19.64 फीसदी वोट मिला था जबकि कांग्रेस महज 8.35 प्रतिशत वोट शेयर पर ही सिमट गई थी। कांग्रेस के लिए स्वतंत्र भारत के सियासी समीकरण का यह सबसे बड़ा झटका रहा। उधर बसपा यह वोट बेस अब तक कायम है। 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट न पाने के बावजूद बसपा का वोट शेयर 19.60 प्रतिशत रहा वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में महज 19 सीटें जीतने के बावजूद उसे 22.20 प्रतिशत वोट मिले थे।
आंकड़ों पर नजर डालें तो बसपा समर्थक मतदाता सपा या कांग्रेस के विकल्प में आने पर अपने को उनके साथ सहज महसूस नहीं करता है, ऐसे में जब भी गठबंधन हुआ है, उसने अन्य विकल्पों को तवज्जो दी। 1991 में 221 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने वाली भाजपा, 1993 में सपा-बसपा के गठबंधन के बाद सत्ता से तो बाहर हो गई लेकिन उसका बेस वोट बढ़कर 33.30 प्रतिशत पहुंच गया। इसी तरह 1996 में बसपा-कांग्रेस से गठबंधन के दौरान उसे 32.52 फीसदी वोट मिले थे।