बता दें कि पत्रिका ने 14 सितंबर को ही खबर चलाई थी, “जनता की जेब काटने वाला एक और कानून चुपके से लागू, सपा सरकार थी तो भाजपा ने किया था विरोध”। तब इस खबर को नगर निगम के अधिकारियों ने संज्ञान नहीं लिया। लेकिन जब शनिवार को नगर निगम सदन का अधिवेशन बुलाया गया तो पार्षदों ने यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया। पार्षदों का कहना था कि निगम प्रशासन 2014 से 2019 की अवधि में 5 लाख रुपये तक के नोटिस भेजे जा रहे हैं जो सरासर गलत है। इस पर पीठासीन अधिकारी और मेयर मृदुला जायसवाल ने नई दरों के नोटिस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का निर्देश दिया।
ये भी पढें- जनता की जेब काटने वाला एक और कानून चुपके से लागू, सपा सरकार थी तो भाजपा ने किया था विरोध इस मुद्दे पर मेयर ने नाराजगी जताते हुए कहा कि, जब उत्तर प्रदेश शासन ने 2014 में नई दरें लागू कर दी थीं तो अब तक अधिकारी सो रहे थे क्या? फिर अब अचानक क्यों जाग गए और लोगों को नोटिस जारी करने लगे। अधिकारियों की गलती का खामियाजा आम जनता क्यों भुगते। उन्होने पूछा कि क्या अफसरों के पास नई दर से गृहकर वसूली का कोई नया शासनादेश जारी हुआ है। अगर है तो उसे सदन पटल पर रखा जाए।
इस दौरान चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा पार्षद और कार्यकारिणी समिति के उपसभापति नरसिंह दास ने सवाल उठाया कि 6 साल तक अधिकारी सोते रहे और अब चक्रवृद्धि ब्याज जोड़ कर डिमांड नोटिस भेज रहे हैं। मेयर व पार्षदों के किसी सवाल का जवाब अफसरों के पास नहीं था। उन्होने माना कि 6 साल में कोई वसूली नहीं की गई। इस दौरान यह तय किया गया कि नगर निगम प्रशासन इस मुद्दे पर विधिक राय लेगी।