ब्रह्मचारी आत्मबोधानन्द जी के अनशन का रविवार को 82 वां दिन था और उनके स्वास्थ्य में दिनों दिन गिरावट हो रही है। मां गंगा की अविरलता एवं निर्मलता के लिए बांधों एवं खनन के विरोध में किये जा रहे साधू संतो के बलिदान के प्रति उत्तराखंड और केंद्र सरकार की उदासीनता से गंगाप्रेमियों में निराशा है।
सत्याग्रह के मौके पर वक्ताओं ने कहा कि गंगा सहित सभी सहायक नदियों को स्वस्थ, अविरल और निर्मल बनाने के लिए प्रभावी प्रयास किए जांय और बलिदानी संत स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के बलिदान के क्रम में तपस्यारत आत्मबोधानंद की मांगो को तत्काल संज्ञान में लेते हुए ठोस कदम उठाने की इच्छाशक्ति दिखाएं।. यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। एक के बाद एक संतो का बलिदान व्यर्थ नही जाने पाए इसका संकल्प हर भारतवासी को लेना होगा।
उन्होंने कहा कि बांधों, हिमालयी क्षेत्र में वन कटाव, पत्थर खनन, प्रदूषण और अतिदोहन के कारण नदियों का जीवन नष्ट हो रहा है। हमे नदियों को जीवंत मानकर उनके अधिकार के संघर्ष को तेज करना होगा। गंगा एवं उसकी तमाम नदियों सहित कुंडों, लालाबो एवं अन्य जलस्रोतो के पुनर्जीवन के लिए हम केवल सरकारी योजनाओ के भरोसे बैठे नही रह सकते। इन योजनाओं से नदियों को पुनर्जीवित करना कदापि संभव नही होगा। आम जनता और जन प्रतिनिधियों की सक्रिय और इमानदारी पूर्ण भागीदारी से ही नदियों को समृद्ध और स्वस्थ बनाया जा सकता है।
सत्याग्रह के अध्यक्ष कगांधीवादी चिन्तक राम धीरज भाई ने कहा कि बांधों ने मां गंगा का गला अवरुद्ध कर रखा है। बांधों से मुक्ति ही गंगा की दशा में सुधार का एकमात्र कारगर उपाय है। बड़ी बांध परियोजनाओं को तत्काल बंद करने के लिए सर्कार को निर्णय लेना चाहिए।
सत्याग्रह के माध्यम से राष्ट्रपति, केंद्र सरकार और उत्तराखंड की राज्य सरकार से अपील की गयी कि स्वामी जी के जीवन पर आसन्न खतरे को देखते हुए तत्काल उनसे वार्ता की जाय और उनकी मांगों पर सहृदयता पूर्वक विचार प्रारम्भ किया जाय।
सत्याग्रह में वल्लभाचार्य पांडेय, चेतन उपाध्याय, कपीन्द्र तिवारी, डॉ आनंद प्रकाश तिवारी, डॉ इन्दू पांडेय, दीन दयाल सिंह, जागृति राही, डॉ अनूप श्रमिक, विशाल त्रिवेदी, सुरेश राठौर, महेंद्र, हरिश्चन्द्र बिंद, सुरेश प्रताप सिंह, रामधीरज भाई, त्रिलोचन शास्त्री, मुन्ना राय, राकेश सरोज, नीलम पटेल, दीपक पुजारी, आदि प्रमुख रूप से शामिल रहे।