दरअसल बात उस मूरत की हो रही है जिसे उसके सगे संबंधियों (पट्टीदारों) ने ही प्रशासनिक मशीनरी से सांठगांठ कर उन्हें सरकारी दस्तावेजों में मृत घोषित कर उनकी संपत्ति हड़प ली। अब 20 साल से मूरत खुद को जिंदा साबित करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। लेकिन सफलता नहीं हासिल हुई तो उन्होंने चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा ले कर खुद को जीवित साबित करने का प्रयास किया लेकिन यहां भी उन्हें मायूसी ही हाथ लगी।
ये भी पढें- पर्यटन के वैश्विक मानचित्र पर अब काशी होगी सांस्कृतिक राजधानी, SCO के दस्तावेजों में दर्ज होगी पहचान मूरत ने शिवपुर विधानसभा सीट से परचा दाखिल किया था, लेकिन वो भी खारिज हो गया। परचा खारिज हो गया तो वो फूट-फूट कर रो पड़े। अपनी पीड़ा को आला अफसरों तक पहुंचाने के लिए वो पुलिस कमिश्रर की गाड़ी के आगे लेट गए। इस पर भी उन्हें न्याय तो नसीब नहीं हुआ पर हवालात जरूर पहुंचा दिया। मूरत बताते हैं कि उन्होंने जनसंघ पार्टी के टिकट पर परचा भरा था जिसे खारिज कर दिया गया।
गले में "मैं जिंदा हूं" की तख्ती लटकाए मूरत वाराणसी से कानपुर तक गए चुनाव लड़ने लेकिन वहां तो वो नामांकन पत्र तक दाखिल नहीं कर पाए। वो बताते हैं कि कानपुर पहुंचे और माधोगंज सीट से नामांकन करने की कोशिश की तो पहले तो पहले तो पुलिस वालों ने रोक दिया। फिर जब वो नामांकन कक्ष तक पहुंचे तो रिटर्निंग ऑफिसर ने वक्त का तकाजा बताते हुए उन्हें वापस कर दिया।