राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि योगी आदित्यनाथ की छवि पहले से ही कट्टर क्षत्रिय की रही है। ऐसे में मुख्यमंत्री बनने के बाद से उन्होंने जाति विशेष के लोगों को लाभान्वित करना शुरू कर दिया। विश्लेषकों का कहना है कि सीएम योगी ने अपने एजेंडे को ही ज्यादा तरजीह दी। जाति विशेष के लोगों पर ही विश्वास जताया। ऐसे में पीएम सवर्ण मतदाताओं के बीच का जातीय समीकरण गड़बड़ाने लगा था। लिहाजा इसे नि
यंत्रित करना मोदी और पार्ट अध्यक्ष शाह के लिए अनिवार्य हो गया। इसी के तहत पहले डॉ महेंद्र नाथ पांडेय को पार्टी की बागडोर थमा दी गई, फिर सूर्य प्रताप शुक्ल को केंद्र में मंत्री बना कर रही सही कसर भी पूरी कर दी गई। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि पीएम ने योगी को साफ संकेत दिया है कि भले ही योगी सूबे के सीएम हों, लेकिन राजनीति में संतुलन निहायत जरूरी है। केवल एक आदमी की मंशा और पंसद से सरकार नहीं चलाई जा सकती। राजनीतिक गलियारों में जो चर्चा है उसके मुताबिक पीएम राजनीति के मजे हुए खिलाड़ी हैं और उन्हें पता है कि सियासी शतरंज में कब कौन सा प्यादा चलना है। यह जरूर है कि संघ के दिशा निर्देशों का पालन करना भी उनकी मजबूरी है लेकिन उनके लिए पार्टीहित सर्वोपरि है। ऐसे मे योगी का मनमाने ढंग से सरकार चलाना शायद पीएम मोदी पचा नहीं पा रहे थे। ऐसे में जैसे ही मौका हाथ लगा उन्होंने योगी के प्रबल विरोधी माने जाने वाले शिव प्रताप शुक्ल को अपने मंत्रिमंडल में जगह देकर योगी को दूरगामी संकेत दे दिया।
इतना ही नहीं शिव प्रताप शुक्ल को मंत्री बनाकर नरेंद्र मोदी ने सबसे महत्वपूर्ण राज्य में जातिगत समीकरण को संतुलित करने की भी भरपूर कोशिश की है। शिव प्रताप शुक्ल गोरखपुर से आते हैं और पार्टी में ब्राह्मणों के प्रभावी चेहरे के तौर पर उन्हें देखा जाता है। शुक्ल लगातार चार बार 1989, 1991, 1993 और 1996 में विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। यूपी में मंत्री भी रहे। लेकिन योगी ने अपना सियासी वर्चस्व कायम करने के लिए शिव प्रताप के खिलाफ अपना प्रत्याशी खड़ा करके उन्हें चुनाव हराया था। यहीं से दोनों के बीच सियासी अदावत शुरु हो गई। योगी ने शिव प्रताप शुक्ल की पूरी सियासत ही लगभग खत्म कर दी थी। बीजेपी में वह एक तरह से हासिये पर चले गए थे। लेकिन पार्टी के प्रति निष्ठा से समझौता नहीं किया। ऐसे में जब नरेंद्र मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने तो शिव प्रताप शुक्ल की 14 साल बाद सियासत की मुख्य धारा में वापसी हुई। पहले वह राज्यसभा सदस्य बने। फिर पीएम मोदी कैबिनेट में मंत्री।
चर्चा यह भी है कि योगी आदित्यनाथ के यूपी का सीएम बनने के बाद से सूबे का ब्राह्मण समाज खुद को बेचैन महसूस कर रहा था। सूबे में डीजीपी से लेकर अन्य शीर्ष पदों पर स राजपूज समाज के लोगों को बिठा दिया गया। जिलास्तर पर भी अधिकारी और पुलिस अधीक्षक तक जाति विशेष के लोगों ही बना दिया गया। इतना ही नहीं सरकारी महाअधिवक्ता भी इसी समाज से बनाया गया है। पूर्वांचल के ब्राह्मण नेता माने जाने वाले हरिशंकर तिवारी के घर पुलिस ने छापेमारी की। ब्राह्मणों ने इसे योगी के इशारे पर की गई कार्रवाई माना। फिर आग में घी का काम किया रायबरेली में पांच ब्राह्मणों की हत्या ने। इससे ब्राह्मणों में बीजेपी के प्रति नाराजगी और भी बढ़ गई। ऐेसे में ब्राह्मण अपने आपको ठगा हुआ महसूस करने लगे थे। लिहाजा ऐसे में डैमेज कंट्रोल के तहत पीएम मोदी ने शिव प्रताप शुक्ल को अपनी कैबिनेट में जगह देकर और डॉ महेंद्र नाथ पांडेय को सूबे की कमान सौंप कर एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं। उधर डॉ महेंद्र नाथ पांडेय समर्थकों ने परशुराम वाला पोस्टर जारी कर अपनी मंशा भी जता दी है।