
maa Annapurna
वाराणसी. Sharadiya Navratri में यूं तो माता रानी के सभी नौ स्वरूपों का अपना अलग-अलग खास महत्व है। सबकी अपनी प्रधानता और विशेषता है। हर मां भक्तों की हर मनोकांक्षा को पूर्ण करती हैं। ऐसे में पूरे मनोयोग व भक्ति भाव से सभी नौ विग्रह का पूजन-अर्चन करने वाले साधक का कल्याण निश्चित माना जाता है। उसे किसी तरह का कोई कष्ट छू भी नहीं पाता।
वैसे तो यह सर्वविदित है कि शारदीय नवरात्र के आठवें दिन नव दुर्गा के दर्शन-पूजन के क्रम में महागौरी (मां अन्नपूर्णा) की उपासना की मान्यता है। इनका मंदिर विश्वनाथ गली में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप स्थित है।
माता अन्नपूर्णा मंदिर के महंत रामेश्वर पुरी बताते हैं कि माता का वो तेज ही है कि श्री काशी विश्वनाथ को भी अपनी प्रजा यानी काशीवासियों के लिए भिक्षा मांगनी पड़ी। यह इन माता रानी के आशीर्वाद का ही प्रताप है कि माना जाता है कि काशी में कोई भी भूखा नहीं सोता।
मंदिर के प्रबंधक काशी मिश्रा बताते हैं कि इन्हीं माता रानी के दरबार में प्रथम तल पर वो विलक्षण तेजोमयी माता अन्नपूर्णा की स्वर्ण प्रतिमा है जिनका दर्शन साल के चार दिन ही होता है। मंदिर का पट ही चार दिन के लिए खुलता है। वह दिन विशेष होता है धनतेरस। धनतेरस से अन्नकूट तक इन माता रानी के दर्शऩ होते हैं। धनतेरस को मंदिर के महंत रामेश्वर पुरी माता रानी के प्रसाद स्वरूप भक्तों के बीच खजाना वितरित करते हैं। खजाने के रूप में अप्रचलित सिक्का और धान का लावा वितरित किया जाता है। इस सिक्के को हर भक्त अपनी तिजोरी में संभाल कर रखता है। माना जाता है कि इससे भक्त का खजाना कभी खाली नहीं होता। वहीं धान का लावा अन्न भंडार में रखने से अन्न की कमी नहीं होती।
मंदिर परिसर में प्रथमेश श्री गणेश, माता पार्वती, सूर्य नारायण, कुबेर के अलावा सत्यनारायण भगवान और पवनसुत हनुमान का विग्रह भी है। इससे सटे एक और परिसर है जिसमें मां काली, भगवान शंकर, माता पार्वती, श्री गणेश, कार्तिकेय, श्री राम दरबार, माता सरस्वती के विग्रह भी हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर के आचार्य डॉ देवी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार भगवती का सौम्य, सुंदर, महकरूपी स्वरूप महागौरी में ही है। इस सिद्ध मंत्र का जप करने से भक्तों को तमाम संकटों से मुक्ति मिलती है। भौतिक सुख समृद्धि मिलती है...
मंत्र इस प्रकार है....
ऊं सिंहस्था शशिशेखरा मकरत
प्ररण्यैश्चतुर्मिर्भुजः शंख चक्रधनु शंरांश्च
दधती नत्रैस्तिमि शोभिता आमुक्तांग
दाहकरकं कणाश्णारका च्यीरणत्रुपरा दुर्गा
दुर्गातिहारिणी भवतु नो सत्नोल्लसरकुण्डला।।
अर्थात जो सिंह की पीठ पर विराजमान हैं, जिनके मस्तक पर चंद्रमा का मुकुट है, जो मरकालिमणि के समान कांतिवाली अपनी चार भुजाओं में संख, चक्र, धनुष और वाण धारण किए रहती हैं। तीन नेत्रों से सुशोभित होती हैं। जिनके भिन्न-भिन्न बांधे हुए बाजुबंद, हार, कंकठा खनखनाती हुई करधनी और झुनझुन करते हुए नूपुरों से विभूषित हैं। जिनके कानों में रत्न जड़ित कुंडल झिलमिलाता है। वे भगवती दुर्गा हमारी दुर्गती दूर करने वाली हैं।
Published on:
06 Oct 2019 06:00 am
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