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बेसिक शिक्षाः किस्से-कहानियों से शिक्षा देने की तैयारी, पहले परखी जाएगी शिक्षकों की कल्पनाशीलता और रचनाधर्मिता

locationवाराणसीPublished: Aug 29, 2022 12:01:47 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

बेसिक शिक्षा परिषद एक नई पहल करने जा रहा है। ये पहल राज्य हिंदीं संस्थान के सहयोग से होगी। इसके तहत अब बच्चों को किस्से-कहानियों के जरिए पढ़ाया जाएगा। दादी-नानी के किस्सों की तर्ज पर शिक्षक नई कहानियां लिखेंगे। उन्हें बच्चों को सुनाएंगे। यानी खेल-खेल में ही बच्चों को शिक्ष दी जाएगी। तो जानते हैं क्या होने जा रहा है….
 

शिक्षक (प्रतीकात्मक फोटो)

शिक्षक (प्रतीकात्मक फोटो)

वाराणसी. अब सरकारी स्कूलों के बच्चों को पढ़ाने का तरीका बदलने वाला है। पाठ्य पुस्तकों से दी जाने वाली शिक्षा को अब व्यावहारिक बनाने की कवायद शुरू की जा रही है। इसके तहत पहले गुरुजी खुद कहानी गढ़ेंगे। गुरुजी की कहानियों की एक प्रतियोगिता भी होगी। ये प्रतियोगिता जिला से राज्य स्तर तक आयोजित की जाएगी। जिनकी रचनाएं श्रेष्ठ होंगी उन्हें पुरस्कृत किया जाएगा। यानी एक तरह से शिक्षकों की कल्पनाशीलता और रचनाधर्मिता का इम्तिहान होगा। फिर इसमें निपुणता हासिल करने के बाद शिक्षक बच्चों को व्यावहारिक शिक्षा देंगे।
कहानियों की रचना इस आधार पर करनी होगी

योजना के तहत शिक्षक इलाकाई और मातृ भाषा के आधार पर संदेश देने वाली बाल कथाओं की रचना करेंगे। इन रचनाओं की स्क्रीनिंग होगी। स्क्रीनिंग जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) की स्क्रीनिंग कमेटी करेगी। हर जिले से दो-दो कहानियों का चयन होगा। उसके बाद इन जिला स्तरीय रचनाओं के आधार पर प्रदेश स्तर पर शिक्षकों की रचनाओं का मूल्यांकन होगा। फिर राज्य स्तर पर प्रतियोगिता आयोजित की जाएगी और उसके विजेता को पुरस्कृत किया जाएगा।
जिला स्तरीय प्रतियोगिता को 30 सितंबर तक देना होगा आवेदन

राज्य हिंदी संस्थान निदेशालय की ओर से जिला और राजय स्तरीय प्रतियोगिता के लिए प्रविष्ठियां जमा करने की अंतिम तिथि घोषित कर दी गई है। इसके तहत जिला स्तर पर 30 सितंबर और राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के लिए 20 अक्टूबर तक प्रविष्ठियां जमा करनी होंगीं।
मकसद पहले गुरुजी लोगों की रचनाधर्मिता का इम्तिहान होगा

इस पूरी प्रक्रिया का मकसद शिक्षकों की कल्पनाशीलता और रचनाधर्मिता का इम्तिहान होगा। इससे शिक्षक-शिक्षिकाओं के भाषा ज्ञान का भी पता चलेगा। साथ ही इसमें निपुण होने के बाद वो किस्से-कहानियों के जरिए बच्चों को व्यावहारिक शिक्षा प्रदान कर सकेंगे।
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