script#Once upon a time-…जब गांधी जी के दो मिनट के संबोधन ने पूरे मोहल्ले को कर दिया आंदोलित | Once Upon Time Story of independence Fight in Varanasi | Patrika News

#Once upon a time-…जब गांधी जी के दो मिनट के संबोधन ने पूरे मोहल्ले को कर दिया आंदोलित

locationवाराणसीPublished: Aug 09, 2019 04:29:06 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

#Once upon a time- जब गांधी आए थे बनारस के इस मोहल्ले में-महज दो मिनट रुके और पूरे मोहल्ले को बना दिया क्रांतिकारी-बच्चे से बुजुर्ग तक कूद पड़े थे स्वाधीनता आंदोलन में-ब्रितानी पुलिस के नाक में कर दिया था दम

Gandhi chabutra of Khojwan Varanasi

Gandhi chabutra of Khojwan Varanasi

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी


वाराणसी. Once upon a time- जब गांधी आए थे बनारस के इस मोहल्ले में, महज दो मिनट रुके, भीड़ को संबोधित किया। बस क्या था उस दो मिनट में ही पूरी की पूरी जनता जैसे सम्मोहित हो गई। सभी पर गांधी जी का जादू सा चल गया। वह तो चले गए पर पूरा मोहल्ला उस पल से ही आजादी का दीवाना हो गया। बस एक ही जुनून था, अंग्रेजों को भारत से भगाना। वह दौर था 1942 का जब गांधी जी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया था।
महात्मा गांधी का बनारस से अटूट रिश्ता था। नौ बार वह आए इस धर्म, आध्यात्म और सर्व शिक्षा की नगरी काशी में। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना का मौका हो या काशी विद्यापीठ की स्थापना हो। विद्यापीठ की स्थापना तो उन्होंने ही कराई। इसके अलावा बनारस का ऐतिहासिक टाउनह़ॉल मैदान, सेंट्रल हिंदू स्कूल, राजघाट आदि ऐसे कई स्थान है जहां बापू के आने का सिलसिला जारी रहा।
लेकिन वह 1942 का दौर था, जब उन्होंने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया और बनारस पहुंचे। वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय में रुके थे। वहां से पैदल ही काशी विद्यापीठ के लिए निकले। उनके पीछे भारी भीड़ थी उनके अनुयायियों की। रास्ते में पड़ा ये काशी का पुराना बाजार खोजवां। गांधी के इस खोजवां बाजार में पहुंचने पर क्या हुआ वह बताते हैं स्थानीय नागरिक व किराना व्यवसायी वृद्ध भरत लाल गुप्ता, ओम प्रकाश गुप्ता और श्याम मनोहर। तीनों ने पत्रिका से उस मौके की घटना को विस्तार से बताया।
वृद्ध भरत लाल बताते हैं, ‘मेरी उम्र तब महज छह साल थी, बड़े पिता जी लल्लन प्रसाद गुप्ता उर्फ “मुनीम जी” स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वह 1942 का दौर था जब गांधी जी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का नारा दिया था। उसी दौरान गांधी जी बनारस आए थे, बीएचयू मे रुके थे, वहां उनकी सभा हुई, फिर वह पैदल ही निकल पड़े काशी विद्यापीठ के लिए। इस यात्रा के दौरान गांधी जी अपने समर्थकों संग खोजवां पहुंचे। यहां करीब दो से तीन मिनट ही रुके और लोगों के बीच अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया, उसके बारे में बताया और आगे बढ़ लिए। उनके पीछे पूरी जमात थी। वह बताते हैं कि गांधी जी के उस दो मिनट के उद्बोधन का ये असर रहा कि मोहल्ले का बच्चा-बच्चा आजादी की लड़ाई में कूद पड़ा। अंग्रेज सिपाहियों के नाक में दम कर दिया। रोज कुछ न कुछ होता रहा। न दिन देखा न रात। बस निकल पड़ते थे। विदेशी सामानों की होली जलाई जाती रही। अंग्रेजी हुकूमत का कोई भी फरमान हो उसे नकारना इस मोहल्ले वालों की आदत में शामिल हो गया था। सैकड़ों लोग जेल गए। लाठियां खाईँ लेकिन झुके नहीं, थके नहीं।
भरत लाल थोडी देर रुकते हैं फिर बताते हैं कि 14 अगस्त 1947 को आधी रात के करीब, बड़े पिता जी गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन के तहत जेल जाने की तैयारी में थे। उनके साथ खोजवां के कई लोग थे, तभी एक युवक दौड़ते हुए आया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा कि देश आजाद हो गयल, देश आजाद हो गयल। बड़े पिता जी जो जेल जाने की तैयारी में थे, मुझे सीने से चिपकाए थे, उन्होंने उस युवक को बुलाया, उसकी बात की तस्दीक करने के लिए कुछ लोगों को भेलूपुर भेजा गया। फिर वहां से लौट कर आए लोगों ने आजादी की तस्दीक की तो वहां जश्न मना, व्यापारियों ने पीतल और तांबे के गगरों (कलश) से वंदन द्वार बनाया। रात भर क्या, कई दिनों तक आजादी का जश्न मनाया जाता रहा।
उन्होंने कहा कि उसके बाद ही यह फैसला हुआ कि जिस स्थान पर गांधी जी ने 1942 में भाषण दिया था वहां एक चबूतरा बनवाया जाए। तब मोहल्ले के लोगों ने ही चबूतरा बनवाया। उसका नाम रखा गया गांधी चबूतरा और इस चौक का नाम हो गया गांधी चौक। पहले इसे खोजवां के नाम से जाना जाता था।’
भरत लाल के पड़ोसी ओम प्रकाश गुप्ता बताते हैं कि इस चबूतरे को 1964 में पक्का कर मंच का स्वरूप दिया गया। वहीं दीवार पर मशहूर चित्रकार भानू जी ने महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी का चित्र बनवाया। भरत लाल, ओम प्रकाश और श्याम मनोहर बताते हैं कि हर साल गांधी जयंती को यहां हम सभी मोहल्ले के लोग और व्यापारी मिल कर पुराने लोगों की परंपरा का निर्वाह करते हुए बापू का जन्मदिन मनाते हैं। पहले तो कजरी, बिरहा दंगल भी होता था। लेकिन अब महज जन्मदिन मनाया जाता है। यहीं हम सब स्वतंत्रता दिवस भी पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। ये समारोह पहले कई-कई दिन चलता था। दिग्गजों का आना-जाना लगा रहता था। गोष्ठियां भी होती थीं।
ये तो रहा उस गांधी चबूतरे का इतिहास, अब उसकी हकीकत जान कर खुद को शर्म आती है। जिस दीवार पर गांधी और कस्तूरबा का चित्र बनाया गया था उसके ऊपर एक शिलापट्ट लग गया है, तैलिक साहू समाज का। जब पत्रिका संवाददाता वहां पहुंचा तो उस शिलापट्ट के ऊपर एक बैनर लगा देखा। चबूतरे के चारों तरफ गंदगी का अंबार है, उससे सटे ट्रांसफार्मर है जिसमें झाला लगा है। चबूतरे पर जानवरों के गोबर हैं। बगल में आमजन के पेयजल के लिए कभी सरकारी नल भी था जिसका अब कोई वजूद नहीं। जानवरों के पानी पीने को भी टैंक था छोटा सा वह भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। नागरिकों ने बताया कि इस चबूतरे से शासन-प्रशासन का कोई सरोकार न कभी रहा न है। कई बार नगर निगम को लिख कर दिया गया, दरख्वास्त की गई पर कोई सुनवाई नहीं।
क्षेत्रीय नागरिकों का कहना है कि यहां पंडित कमलापति त्रिपाठी अक्सर आया करते थे। कांग्रेसजनों का जमघट लगा करता था। लेकिन किसी भी कांग्रेस नेता ने खोजवां के उस गांधी चबूतरे को स्थाई रूप देने, उसकी नियमित साफ सफाई का इंतजाम कराने, वहां बापू की प्रतिमा लगाने की पहल नही की। किसी कांग्रेसी को यह तक ध्यान नहीं कि जिस स्थान पर महात्मा गांधी ने दो मिनट ही सही पब्लिक को जागरूक किया हो। भारत छोड़ो आंदोलन का शंखनाद किया हो उस स्थल को एक स्मारक के रूप में स्थापित किया जाए।
इसी इलाके में नगर निगम के दो मेयर हुए सरोज सिंह और कौशलेंद्र सिंह। भाजपा के कई मंत्रियों का आवास भी है, जिसमें भाजपा के दो प्रदेश अध्यक्ष, ओम प्रकाश सिंह और डॉ महेंद्र नाथ पांडेय का घर भी इसी इलाके में है। यहां तक खोजवां बाजार यानी इस गांधी चबूतरा से कुछ ही दूरी पर वर्तमान खेल व कानून राज्य मंत्री नीलकंठ तिवारी का आवास है। लेकिन इस गांधी चबूतरे की किसी ने भी सुधि कभी नहीं ली।
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