बता दें कि गत 15 मई को हुए हादसे के बाद जांच कमेटी के सदस्यों ने मौका मुआयना किया था। उनकी टीम में कुछ इंजीनियर भी शामिल रहे। मौका मुआयना करने के बाद कमेटी के सदस्य सोमवार को मीडिया से मुखातिब हुए तो कहा कि फ्लाइओवर निर्माण में मानकों की अनदेखी पर 20016 में ही सवाल उठाया गया था। उस वक्त तत्कालीन डीएम विजय किरन आनंद ने फ्लाइओवर निर्माण स्थल का निरीक्षण कर जो रिपोर्ट दी थी उसमें मानकों की अनदेखी का आरोप लगाया था। पूर्व डीएम ने तभी हादसे की अंदेशा भी जताया था। लेकिन तब भी केंद्र सरकार के जिम्मेदार महकमों ने उस रिपोर्ट की अनदेखी कर दी थी। नतीजतन जैसे-तैसे संकरे मार्ग पर निर्माण कार्य जारी रहा। जैसे-जैसे निर्माण कार्य बढ़ा हादस की आशंका बढ़ती गई। निर्माण स्थल पर आयरन वॉल लगाने को लेकर सेतु निगम और पुलिस महकमें के बीच शीत युद्ध की स्थिति बनी रही। दोनों महकमें अपनी गर्दन बचाने के लिए एक दूसरे पर कीचड़ उछालते रहे।
उन्होंने कहा कि इसी फरवरी में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने रोडवेज बस स्टेशन से लहरतारा पुल के बीच स्थलीय निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होने पाया कि निर्माण स्थल पर अराजकतापूर्ण स्थिति है। इसके चलते ट्रैफिक जाम होता है। इस बाबत एसएसपी के रीडर की ओर से 18 फरवरी 2018 को एक पत्र परियोजना प्रबंधक सेतु निगम को भेजा गया। एसपी ट्रैफिक ने भी इसी दिन एक पत्र सेतु निगम के परियोजना प्रबंधक को भेजा। इसके अगले दिन परियोजना प्रबंधक के खिलाफ रोडवेज चौकी प्रभारी धनंजय त्रिपाठी ने सिगरा थाने में एफआईआर दर्ज कराया कि निर्माण संबंधी व्यवधान के चलते उक्त मार्ग पर यातायात अवरुद्ध हो रहा है और पुलिस कर्मियों को ड्यूटी करने में दिक्कत हो रही है। इधर सेतु निगम के परियोजना प्रबंधक को जब अपने खिलाफ एफआईआर की जानकारी हुई तो उन्होंने वरिष्ठों को पत्र लिख कर गाए निर्माण करने से न केवल हाथ खड़ा कर लिया बल्कि अपना स्थानांतरण कहीं और करने की मांग कर डाली। उनका तर्क था कि मानकों का पालन करने में आयरन वॉल जब लगेगी तो सड़क संकरी होगी ही, ऐसे में कट डायवर्जन करने की बजाय आयरन वॉल को ही पीछे कराया जा रहा है। इसका विरोध करने पर उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज की गई। ऐसे में काम करना कैसे संभव है। जांच समिति ने पड़ताल में पाया कि सेतु निगम और पुलिस के बीच छिड़ी जंग लगातार चलती रही। इसी दौरान विकास कार्यों की कई समीक्षा बैठकें हुईं लेकिन इन बैठकों में भी इस विवाद को हल कराने का कोई प्रयास नहीं हुआ। हादसे के कई दिन गुजरने के बाद भी ठेकेदार का नाम अज्ञात होने पर भी समिति ने सवाल उठाया है। ठेकेदार के का नाम का खुलासा न होने से समिति को सरकरा की मंशा और जांच पर भी संदेह है। आरोप है कि ऐसा किसी सत्ता के करीबी को बचाने के लिए किया जा रहा है।
इस बाबत आम आदमी पार्टी के पूर्वांचल संयोजक संजीव सिंह ने बताया कि सर्वदलीय जांच कमेटी ने पड़ताल में पाया कि 16 मीटर, 80 सेमी चौड़े पुल के दोनों ओर दो-दो मीटर की दूरी पर लोहे की सुरक्षा दीवार बनानी चाहिए थी। लेकिन मानकों की अनदेखी कर इसे नीचे खिसका दिया गया। नतीजा रहा कि महज 7 से 10 फीट चौड़े मार्ग पर यातायात चल रहा था और पुल के नीचे से वाहन गुजर रहे थे। कमेटी ने पाया कि हादसे के बाद घटना स्थल के ठीक पहले से रूट डायवर्ट कर रेलवे कालोनी की तरफ से यातायात शुरू कर उ से कैंट रेलेव स्टेशन से निकाला गया है। यह काम पहले भी किया जा सकता था, लेकिन प्रशासन तब चेता जब 18 लोगों की जान चली गई। यही नहीं क्षेत्र के लोगों, संस्थाओं की शिकायतों की लगातार अनदेखी की गई। कमलापति इंटर कॉलेज प्रशासन की ओर से लगातार सिगरा थाने में सूचना दी गई कि निर्माणाधीन पुल से विद्यार्थी कभी भी हादसे के शिकार हो सकते हैं। लेकिन इस पर भी पुलिस ने ध्यान नहीं दिया। अगर इन शिकायतों पर समय से ध्यान दिया गया होता तो भी मानकों की अनदेखी की कलई खुल गई होती। समय से जांच होती तो भी हादसा टल सकता था। कमेटी ने पाया कि इलाके को लोग और उधर से गुजरने वाले आज भी दहशत में हैं।
सर्वदलीय जांच समिति की फाइंडिंग रिपोर्ट
-सर्वदलीय जांच समिति का मानना है कि यह हादसा विकास का सेहरा बांधने की होड़ में हुआ।
– हड़बड़ी इतनी की समीक्षा बैठकों में भी नजरंदाज किे गए मानक, हुआ घनघोर उल्लंघन
-कमिश्नर, डीएम, एसरी ट्रैफिक दोषी
-सेतु निगम-पुलिस में महीनों से चल रहा था शीत युद्ध
-सर्वदलीय जांच समिति का मानना है कि यह हादसा विकास का सेहरा बांधने की होड़ में हुआ।
– हड़बड़ी इतनी की समीक्षा बैठकों में भी नजरंदाज किे गए मानक, हुआ घनघोर उल्लंघन
-कमिश्नर, डीएम, एसरी ट्रैफिक दोषी
-सेतु निगम-पुलिस में महीनों से चल रहा था शीत युद्ध