पंडित ओंकारनाथ ठाकुर की परंपरा के वाहक हैं डॉ आचार्य
काशी की जिन चार हस्तियों को पद्म पुरस्कारों को लिए चयनित किया गया है। उनमें संगीत जगत की जिन दो शख्सियतों को पद्मश्री के सम्मान से नवाजा गया उनमें एक हैं ध्रुपद गायक और जलतरंग वादन में महारत हासिल किए विख्यात संगीतकार डॉ. राजेश्वर आचार्य। पं. ओंकारनाथ ठाकुर की परंपरा के संगीताचार्य प्रो. आचार्य काशी के भदैनी क्षेत्र के रहने वाले हैं। उन्होंने संकटमोचन फाउंडेशन के साथ मिलकर न केवल ध्रुपद मेले का आयोजन शुरु करवाया बल्कि विश्वविख्यात संकटमोचन संगीत समारोह में तत्कालीन महंत स्व. प्रो. वीरभद्र मिश्र के साथ अहम भूमिका निभाई। प्रो. राजेश्वर आचार्य को जितनी महारत संगीत के क्षेत्र में उतनी ही शिद्दत से वह काशी को जीते हैं। खांटी बनारसी अंदाज, अगर उन्हें बनारस का इन्साइक्लोपीडिया कहा जाय तो अतिशयोक्ति न होगी। लोगों ने किताबों में पढ़ कर बनारस को जाना होगा लेकिन डॉ आचार्य ने काशी को जीया है तब जाना है। इन सब से अलग हंसमुख मिजाज आचार्य पक्के बनारसी हैं जिन्हें स्वाभिमान सबसे प्यारा है। उसके साथ कोई समझौता कर ही नहीं सकते। एक बात और कि वह महामना की बगिया के खूबसूरत नगीने भी हैं। देश विदेश में उनके शिष्यों की लंबी शाखाएं हैं।
पं. ओंकारनाथ ठाकुर की परंपरा के संगीताचार्य ने इस सम्मान को बाबा विश्वनाथ के श्री चरणों में समर्पित किया। कहा, अधिकारी तो वही है, हम लोग तो महज पात्र हैं। हमारी इच्छा तो बस इतनी है कि जब तक सांस चले संगीत की सेवा करता रहूं। बता दें कि डॉ आचार्य न केवल बीएचयू से जुड़े रहे बल्कि दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के फाइन आर्ट्स और संगीत विभाग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उन्हें 1966 में ऑल इंडिया रेडियो म्यूजिक कंपटीशन में पहला स्थान मिला था। वह ग्वालियर घराने से ताल्लुकात रखने वाले कलाकार हैं। उन्होंने पत्रिका से कहा काशी और काशी की विरासत यानी संस्कृति को जिंदा रखना ही मेरा लक्ष्य है। बता दें कि संगीत की दुनिया से लुप्त हो रहे पखावज को पुनर्जीवित करने के लिए उन्होंने ध्रुपद मेला का आयोजन शुरू किया जिसे इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय दर्जा हासिल हो गया।
काशी की माटी के लाल, काशी की लोक संस्कृति को जीने वाले लोक गायकी के सरताज हीरालाल यादव को मिला देश का प्रतिष्ठित पद्म सम्मान पद्मश्री। वैसे तो काशी के नाम इस बार चार-चार पद्म सम्मान की घोषणा की गई है। लेकिन उन सब में हीरालाल वो हस्ती हैं जिनके अपनेपन का हर शख्स कायल है। इनके कंठ में वो कशिश व मधुरता है कि एक बार जो इन्हें सुन ले वो इनका कायल हुए बिना रह नहीं सकता।
25 जनवरी 2019 को जब लोक गायकी के सरताज हीरालाल को पद्मश्री सम्मान मिलने की सूचना मिली तो सबसे पहले उन्होंने अपनी जन्म व कर्मभूमि को प्रणाम किया। दरअसल वह इन दिनों काफी अस्वस्थ चल रहे है। वो ठीक से बोल भी नहीं पा रहे हैं। 1950 के दशक से पूर्वांचल में लोक गायकी में हीरा और बुल्लू की चर्चित जोड़ी रही। हीरालाल की गायकी में शास्त्रीय संगीत का भी पुट मिलता है। होरी खलीफा और गाटर खलीफा के शिष्य गुरु रम्मन दास अखाड़े से जुड़े लोक गायक हीरालाल ने 05 वर्ष की उम्र से बिरहा गायन शुरू कर दिया था। काशी रत्न और मंजुश्री से अलंकृत 82 वर्षीय होरी लाल ने सात दशक से ज्यादा समय तक संगीत की सेवा कर दर्जनों लोक गायकों की शिष्य परंपरा तैयार की है।