अभी हाल ही की बात है, वो शुरमई शाम, एक तरफ सुर, ताल और लय की महफिल सजी थी, नामचीन कलाकारों की कला परवान चढ़ रही थी, तो दूसरी तरफ कला वीथिका में एक अकेली किशोरी अपनी भावनाओं को आकार देने में तल्लीन थी। कैनवास पर तूलिका से अपनी कल्पनाओं को साकार करने में जुटी थी। यह सब चल रहा था संकट मोचन संगीत समारोह के दौरान। इस समारोह में उमड़ी संगीत रसिकों की भीड़ से उस बेटी का कोई लेना देना नहीं था, वह तो अपनी ही धुन में थी। अपने कल्पानाओं को मूर्त रूप देने में तल्लीन वह बेटी और कोई नहीं एम. विजया थी। विजया जिसने विकलांगता को लाचारी नहीं मजबूती बनाया। अपनी प्रतिभा को पहचाना और उसे निखारा ही नहीं बल्कि उसे ऊंचाई प्रदान की।
एम विजया से बातचीत शुरू हुई तो उसने बताया कि एक दुर्घटना में मैनें अपने दोनों पैर खोए दिए। वह जख्म अभी भरा भी न था कि किस्मत ने एक और झटका दिया। जानलेवा बीमारी कैंसर ने जकड़ लिया। लेकिन मन में एक जिजिविषा थी कुछ कर गुजरने की। लिहाजा मैनें हार नहीं मानी और कैंसर को पराजित किया। शुरू की पेंटिंग। विजया कहतीं बस एक ही तमन्ना है कि कुछ ऐसा करूं कि जमाना याद रखे। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी विजया की हिम्मत और कला के मुरीद हो चुके हैं। वह कहती है संकटमोचन दरबार में आकर जो सम्मान की अनुभूति हुई उसे शब्दों में नहीं बयां कर सकती। बस अब यही इच्छा है हर वर्ष आने का मौका मिले और लोगों को कुछ कला के माध्यम से दिखा सकूं।