वाराणसी

मां गंगा से भी पुराना है काशी का यह कुंड, मृत्यु चाहे जैसे हुई हो मिलती है प्रेत योनि से मुक्ति

-भादो की पूर्णिमा (13 सितंबर) से शुर हो गया पितरों के तर्पण का विशेष पखवारा पितृपक्ष-देश-विदेश से पहुंचने लगे हैं श्रद्धालु-काशी में ही है ऐसा कुंड जहां हर तरह की मृत्यु पर मिलती है प्रेत योनि से मुक्ति-खुद भोले नाथ बसते हैं इस कुंड के इर्द-गिर्द

वाराणसीSep 14, 2019 / 06:04 pm

Ajay Chaturvedi

वाराणसी का ऐतिहासिक पिशाचमोचन कुंड

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी
वाराणसी. वैसे तो मान्यता है कि काशी नगर में प्राण निकलने मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। “काश्यां मरणं मुक्ति।” कहते हैं, काशी में मरने वाले के कानो में स्वयं भगवान शिव मोक्ष का मंत्र (राम) फूंकते है, शिव पुराण में ये लिखा है कि भगवान शिव काशी में मरने वाले के लिए हमेशा ही तपस्या रत रहते है। इन सब के बीच काशी में एक अति प्राचीन कुंड भी है जहां श्राद्ध करने से प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। पुराणो के अनुसार यह अति मनोरम और सबसे सुदर कुंड है। ऐसे में इस पितृ पक्ष में पितरों को तारने की इच्छा रखने वाले श्रद्धालुों के आने का सिलसिला शुरू हो चुका है।
श्रद्धालुओं को किसी तरह की दिक्कत न हो इसके लिए कुंड तीर्थ पर पंडाल भी लगाए गए हैं। थोड़ी-थोड़ी दूरी पर झुंड में लोग श्राद्ध कर्म में जुट गए हैं। यह अलौकिक दृश्य केवल काशी में ही मिलता है। इस तरह की आध्यात्मिकता कहीं और नहीं दिखेगी।
‘काशी’ की प्रसिद्धि का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष जिसके कारण असंख्य लोगों का यहां तांता लगा रहता है, वह है इसका ‘मोक्षप्रदायिनी’ स्वरूप। ऐसी मान्यता है, जिस भी व्यक्ति की मृत्यु वाराणसी में होती है, वह जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। स्कंदपुराण में उल्लिखित है कि काशी जगत की सीमाओं में बंधी होने के बावजूद भी सभी के बंधन काटने वाली है,- ‘…या बुद्धा भुवि मुक्तिदा स्युरमृतं यस्यां मृता जन्तवः’ अर्थात काशी मोक्ष प्रदायिनी है।
इसी काशी में है एक ऐसा कुंड जिसके बारे में मान्यता है कि यह मां गंगा से भी पुराना यानी गंगा अवतरण से पूर्व ही यह जलाशय रहा। इतना ही नहीं इस जलाशय पर बाबा विश्वनाथ की कृपा हमेशा बनी रहती है। यह कुंड मृत्युपरांत होने वाले सभी श्राद्ध कर्म के लिए है। यहां हर तरह के श्राद्ध होते हैं।
पिशाचमोचन कुंड के प्रधान तीर्थ पुरोहित मुन्नालाल पांडेय
पत्रिका ने इस कुंड के बाबत इस अति प्राचीन पिशाच मोचन कुंड के बाबत वहां प्रधान पुरोहित मुन्ना लाल पांडेय से बात की। मुन्ना लाल पांडेय ने बताया कि यह पिशाचमोचन विमलोदत्त कुंड है, विमलोदत्त कुंड में यानी सबसे सुंदर कुंड के रूप में इसे मान्यता प्राप्त है। यह कुंड गंगा से भी प्राचीन है। रामावतार से भी पहले का है। बताया कि प्राचीन काल में एक पिशाच नामक ब्राह्मण यहां आया और भगवान शंकर से प्रार्थना की। उसका पूरा शरीर कई रोगों से खराब हो गया था। तब यहां बाल्मीकि भी थे और यहीं कपिलदेश्वर महादेव का मंदिर भी था। उस ब्राह्मण की याचना पर भगवान शंकर ने खुद तपस्या कराई। जब वह ब्राह्मण ठीक हो गया तो भोले नाथ ने उसे जाने को कहा। तब उसका जवाब था कि जब इस वक्त मेरी यह दुर्दशा है तो आने वाले युगों में क्या होगा। वह कहीं नहीं गया और कहा जाता है कि उन ब्राह्मण महाराज की कृपा से इस कुंड पर होने वाले श्राद्ध कर्म के बाद इस भू लोक के हर प्राणि को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है।
पिशाचमोचन कुंड का मंदिर
पांडेय ने बताया कि यहां अकाल मृत्यु, त्रिपिंडी, गया श्राद्ध, वार्षक श्राद्ध, षोडसी, तीर्थ श्राद्ध, नारायण बलि, पारवण आदि सारे श्राद्ध होता है। यहां हर तरह के श्राद्ध होता है। इसमें कम उम्र में होनी वाली मौत, अचानक किसी दुर्घटना या बीमारी से होने वाली मौत के लिए भी श्राद्ध होता है और यहां श्राद्ध के बाद आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है और वह वैकुंठ धाम में चली जाती है। जन्म-मृत्यु के आवागमन से मुक्ति मिल जाती है।
पिशाचमोचन कुंड का विशेष पूजा स्थल
उन्होंने बताया कि जो लोग अपने पितरों को स्थाई रूप से स्थापित करने गया जाते हैं उन्हें भी पहले यहां आना होता है, यहां श्राद्ध करने के बाद ही वो गया जाते हैं। कारण जाने-अनजाने किसी कुल में किसी की अकाल मृत्यु हुई हो या किसी के श्राद्ध कर्म में किसी तरह की त्रुटि रह गई हो तो यहां श्राद्ध करने से वो त्रुटियां दूर हो जाती हैं।
बताया कि आम दिनों में भी यहां 100-50 लोग रोजाना आते हैं लेकिन पितृ पक्ष में पूरे देश व विदेश से प्रतिदिन 10,000 से 15,000 श्रद्धालु आते हैं पितरों के श्राद्ध के लिए। इस बार भी हालांकि पितृ पक्ष की प्रतिपदा 14 सितंबर और उससे पहले 13 सितंबर को पूर्णिमा है ऐसे में श्रद्धालुओं के आने का क्रम शुरू हो गया है।

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