वाराणसी

PM मोदी के गोद लिए गांव जयापुर का सच- उज्जवला योजना से मिला सिलेंडर, पर पैसे नहीं तो चूल्हे पर पका रहीं खाना

-महिलाओं का सवाल, सिलेंडर खाली होने पर उसे दोबारा भरवाने के लिए आठ सौ रुपये कहां से लाएं?

वाराणसीApr 09, 2019 / 01:44 pm

Ajay Chaturvedi

PM Modi sansad Adarsh gaon Jayapur women cook on Chulha

वाराणसी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र बनारस। सांसद आदर्श गांव योजना के तहत पीएम का गोद लिया गांव जयापुर। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले आराजीलाइन विकास खंड के जयापुर गांव को गोद लिया। गांव वालों की खुशी का ठिकाना नहीं था। अब तो गांव के दिन बहुरेंगे। केंद्र से लेकर राज्य और स्थानीय प्रशासन तक ने इस गांव को आदर्श बनाने के लिए सारी ताकत झोंक दी। फिर प्रधानमंत्री ने जब उज्ज्वला योजना लागू की तो यहां के गरीब तबके को भी योजना के तहत गैस सिलेंडर दिए गए। लेकिन ये क्या, यहां की दलित बस्ति के जिन घरों की महिलाओं के नाम गैस सिलेंडर आवंटित हुआ वो तो अब भी परंपरागत तरीके से लकड़ी के चूल्हे पर ही खाना पका रही हैं। वहीं धुआं उनके फेफड़ों में जा रहा है। सवाल उठता है कि जब उन्हें गैस सिलेंडर दे दिया गया तो फिर क्या उन्हें अपने या अपने बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता नहीं। वो इतनी लापरवाह कैसे हो सकती हैं। पत्रिका ने इसकी पड़ताल की तो जो सच सामने आया वह कम चौंकाने वाला नहीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गरीबों के हित वाले दो डीम प्रोजेक्ट हैं, जिनमें एक हर घर में शौचालय और गरीबों को सस्ती दर पर गैस सिलेंडर मुहैया कराना। दलित, आदिवासी अंचल में जाकर यही लगता है कि ये दोनों योजनाएं सिर्फ कुछ इलाकों तक ही सिमट कर रह गई हैं। कम से कम पीएम मोदी के गोद लिए गांव जयापुर के अटल नगर के दलित व आदिवासी इलाके का तो कमोबेश यही हाल है।
आराजी लाइन विकास खंड का जयापुर गांव। गांव का दलित बहुल टोला ‘अटल नगर।’ यहां 14 परिवार के लिए पक्का आवास बनवाया गया तो वही आधा दर्जन से अधिक लोगों को उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर और चूल्हा वितरित किया गया। सिलेंडर पहली बार तो तो मिल गया लेकिन इन परिवारों ने दोबारा सिलेंडर लेने की जहमत नहीं उठाई या उनमें इतनी क्षमता नहीं थी कि वो गैस सिलेंडर ले सकें। लिहाजा, वह फिर से लकड़ी की आंच पर खाना बनाने को मजबूर है।
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यहां की गृहणीओं ने खुलकर अपनी व्यथा बताई। वह कहती हैं कि सरकार की योजना अच्छी है। गैस सिलेंडर और चूल्हा नि:शुल्क मिल गया। मगर सिलेंडर खाली होने पर उसे दोबारा भरवाने के लिए आठ सौ रुपये कहां से लाएं? सब्सिडी का पैसा तो बाद में न आएगा। यानी यहां की गृहणियों के लिए हर महीने आठ सौ रुपये ईंधन पर खर्च करना आसान नहीं है। वह मुश्किल से दिन में 100 रुपये कमाती हैं जिसमें पूरे परिवार का पालन पोषण करना है। पति बटाईदारी वाली खेती और मजदूरी करते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी लगातार इस बात का हवाला देते हुए नहीं थकते हैं कि लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाने वाली महिला के शरीर में हर रोज कई सौ सिगरेट के धुएं के बराबर धुआं जाता है। इससे उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। महिला स्वस्थ्य रहे, इसलिए उसे चूल्हे के धुएं से दूर रखना होगा, लिहाजा उसे सस्ती दर पर गैस सिलेंडर दिया जा रहा है। इसके बावजूद जो हकीकत है, वह गांव और जमीन पर पहुंचकर सामने आती है, आंकड़े भले ही चाहे जो गवाही दें।
कोट
” क्षेत्र के अधिकांश घरों का यही हाल है कि वो उज्ज्वला योजना के तहत प्राप्त गैस सिलेंडर के खाली होने पर उसे बदलने नहीं आते। ये उनकी आर्थिक स्थिति के कारण हो सकता है। पर कुछ लोग हैं जो पांच-छह महीने में एक बार आते है सिलेंडर के लिए।”- राजनारायण यादव, वितरक भारत पेट्रोलियम

” लोग आते हैं, उज्ज्वला योजना का सिलेंडर ले जाते हैं। जब से योजना लागू हुई है, सिलेंडर का वितरण हो रहा है।” राजेश कुमार सोनकर, दीपापुर गैस एजेंसी
” ज्यादातर लोग उज्ज्वला योजना का लाभ उठा रहे हैं। हां! कुछ दलित व आदिवासी परिवार ऐसे हैं जिनकी माली हालत ठीक नहीं है, वो ही चूल्हे पर खाना पका रहे हैं। -नारायण पटेल, ग्राम प्रधान, जयापुर
” उज्ज्वला योजना के सिलेंडर का उपयोग समर्थवान लोग धड़ल्ले से कर रहे हैं। हकीकत यही है कि यह योजना जो गरीबो के लिए बनी थी उसका लाभ उठा पाने में वो सक्षम नहीं हैं।” राजकुमार गुप्ता, सामाजिक कार्यकर्ता
“खेतिहर मजदूरों का बुरा हाल है। अगर वास्तव में सरकार चाहती है कि दलित, आदिवासी और गरीब महिलाओं की आंखें सुरक्षित रहें, वे स्वस्थ्य रहें तो उसे मुफ्त में गैस सिलेंडर देना होगा, तभी गरीब लोग उसका उपयोग कर पाएंगे, नहीं तो चूल्हा और सिलेंडर सिर्फ घर की शोभा ही बढ़ाएंगे।” राजेश बनवासी और सुखराम बनवासी, क्षेत्रीय नागरिक
 

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