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वरूण कॉरीडोर में जमकर खेल हुआ है इससे कोई भी इंकार नहीं कर सकता है। वरूणा कॉरीडोर का 50 प्रतिशत ही काम हुआ था लेकिन शासन ने कुल बजट का 70 प्रतिशत भुगतान कर दिया था। सवाल उठे तो नीद खुली और कार्रदायी संस्था पर शिकंजा कसा तो काम में तेजी आयी। इसके बाद जब सरकार ने कॉरीडोर से अपना ध्यान हटाया या कहे कि पुरानी व्यवस्था के तहत ही नये मंत्री चलने लगे तो काम की रफ्तार फिर मंद पड़ गयी।
एसटीपी में शोधन होगा वाराणसी वरूणा नदी में गिर रहा नाला
पीएम नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2019 में गोइठंहा व दीनापुर एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) का उद्घाटन किया था। वरूणा नदी में गिर रहे बड़े नालो को इन एसटीपी में जोडऩे की योजना है। चौकाघाट के पास सीवर को पानी को लिफ्ट करने के लिए एक छोटा स्टेशन भी बनाया है, जहां से पानी लिफ्ट करके एसटीपी तक पहुंचाना होगा। सीवर लाइन का रेल लाइन पार करनी है जिसकी अनुमति अभी तक नहीं मिली है इसके चलते आज भी वरूणा में गिर रही सीवर के पानी से वहां पर मलजल बह रहा है।
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वरूणा कॉरीडोर बनाने वाले कार्रदार्य संस्था अधीक्षण अभियंता आलोक जैन का कहना है कि वरूणा कॉरीडोर का जो शुरूआती प्रोजेक्ट बना था वह पूरा हो गया है। अतिरिक्त कार्य जो बढ़े थे उसे पूरा कराया जा रहा है।
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राजनीतिक दलों ने वरूणा का अपने हिसाब से उपयोग कर उसे छोड़ दिया है। इसके बाद से तिल-जिल कर दम तोड़ रही वरूणा के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिव्यूनल (एनजीटी) बड़ी आस बन कर उभरी है। एनजीटी के पूर्वी यूपी के चेयरमैन जस्टिस डीपी सिंह ने कई बार वरूणा नदी का स्थलीय निरीक्षण किया है और देखा कि स्लाटर हाउस का खून तक वरूणा में गिराया जा रहा है। वरूणा के किनारे हरियाली नहीं है। कूड़े से वरूणा को पाटा जा रहा है। जस्टिस डीपी सिंह की चेतावनी के बाद भी वरूणा के किनारे से कूड़ा नहीं हटाया गया था इस उन्होंने अधिकारियों को मई तक का समय दिया है जिसमे वरूणा नदी पर किये गये अतिक्रमण की सारी जानकारी देनी होगी। इसके बाद जुलाई तक वरूणा के किनारे एक लाख से अधिक पौधे लगाने को कहा है। एनजीटी का आदेश नहीं मानने पर सुप्रीम कोर्ट कार्रवाई का चाबुक भी चला सकता है।
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